मप्र में दोबारा भरी जाएंगी मेडिकल की सीटें

Aug 30, 2017

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 29 अगस्त। मध्यप्रदेश के मेडिकल कालेजों में स्टेट कोटे की एमबीबीएस और बीडीएस की सीटें दुबारा भरी जाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने काउंसलिंग के जरिए पहले हुई भर्तियों को निरस्त कर दिया है। अब मध्यप्रदेश के मूल निवासी छात्रों से ही ये सीटें भरी जाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने मप्र  सरकार की एक याचिका को खारिज करते हुए मप्र हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। इससे मेडिकल कालेजों में व्यापमं जैसे एक और घोटाले का अहसास हो रहा था।

मप्र में मेडिकल की पढ़ाई के लिए एमबीबीएस और बीडीएस की लगभग साढ़े पांच सौ सीटें नीट के माध्यम से भरी जानी थीं। मप्र हाईकोर्ट ने पिछले साल ही एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि इन सीटों को पहले मध्यप्रदेश के मूल निवासी छात्रों से भरा जाए। इस बार प्रवेश के लिए काउंसलिंग शुरू होने पर कुछ समय तो ठीक चला लेकिन फिर फर्जी मूल निवासी प्रमाणपत्रों के आधार पर एडमीशन दिए जाने लगे। इससे मप्र के मूल निवासी छात्रों के एडमीशन नहीं हो सके। लगभग 90 फीसदी सीटों पर अन्य राज्यों के विद्यार्थियों को एमबीबीएस और बीडीएस में प्रवेश मिल गया। इसके विरुद्ध कुछ छात्र हाईकोर्ट पहुंच गए। मप्र हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि सभी सीटें पहले मप्र के मूल निवासी छात्रों से ही भरी जाएं। राज्य सरकार ने तर्क दिया कि सभी सीटों पर एडमीशन हो चुके हैं, इसलिए अब यह संभव नहीं है कि दुबारा काउसलिंग कराई जाए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार का तर्त नही माना। इस पर राज्य सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट में सरकार की हार और छात्रों की जीत हुई। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मप्र शासन की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस शरद अरविन्द बोबड़े और जस्टिस नागेश्वर राव की युगलपीठ ने खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी एडमीशन रद्द करते हुए दस दिन के अंदर दोबारा काउंसलिंग कराने के निर्देश दिए हैं।  

इस मामले से  जुड़े छात्रों का कहना है कि तंत्र में बैठे लोग एक बार फिर मध्यप्रदेश में व्यापमं जैसे बड़े घोटाले की साजिश कर रहे हैं। इसमें मप्र के सरकारी कालेजों की करीब 200 और प्राइवेट कालेजों की करीब साढे तीन सौ सीटें संदेह के दायरे में हैं। इनके जरिए करोड़ों रुपए का लेन देन होने की आशंका जताई जा रही है।

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