आरएसएस की माइक्रो प्लानिंग ने महाराष्ट्र में महायुति को विजय दिलाई
खरी खरी संवाददाता
मुंबई, 29 नवंबर। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति गठबंधन की अप्रत्याशित विजय में आरएसएस (संघ) की माइक्रो प्लानिंग की बड़ी भूमिका रही है। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा और महायुति के निराशाजनक प्रदर्शन ने संघ को अलर्ट कर दिया था। संघ ने तभी से विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। उसी योजना के अनुसार संघ ने इस चुनाव में भाजपा से इतर काम कर उसकी मदद की और उसका परिणाम सामने आया तो हारने वाले के साथ जीतने वाले भी हतप्रभ रह गए।
भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में अपने स्टार प्रचारकों में से एक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी मैदान में उतार रखा था। उन्होंने 'बंटेंगे तो कटेंगे' वाला एक विवादित नारा भी दे दिया था। इस नारे पर विवाद हुआ तो पीएम मोदी ने 'एक हैं तो सेफ हैं' का नया नारा चुनाव मैदान में उछाल दिया। योगी और मोदी के नारों को रातों रात पूरे महाराष्ट्र में पोस्टर के जरिए जनता तक पहुंचाने का काम आरएसएस के प्रबंधन ने ही किया था। कहा तो यह भी जा रहा है कि नारों की उत्पत्ति भी आरएसएस की देन है। वरिष्ठ पत्रकार विकास वैद्य के अनुसार बहुत ज़माने बाद संघ के स्तर पर इस तरह की माइक्रो-प्लानिंग देखी गई, जिसके तहत प्रदेश के बाहर से क़रीब 30 हज़ार लोगों को चुनाव में मदद के लिए अलग-अलग समय पर बुलाया गया। दरअसल पिछले लोक सभा चुनाव के औसत प्रदर्शन के बाद आरएसएस ने राज्य के हर ज़िले में एक कमेटी बनाई थी जिसने लोगों से मिलकर ये टोह लिया कि प्रदेश की महायुति सरकार में और क्या बेहतरी की जा सकती है। इस काम के लिए देश के कई राज्यों से संघ में काम करने के लिए लोग बुलाए गए, जिसमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थे।ख़ास बात ये थी कि इसमें बीजेपी शासित राज्य जैसे; यूपी और मध्य प्रदेश के अलावा ग़ैर बीजेपी-शासित राज्यों के लोगों को भी बुलाया गया जो तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैस राज्यों से भी आए। नागपुर के वरिष्ठ पत्रकार भाग्यश्री राउत के अनुसार प्रचार के इस प्रोग्राम के तहत वोटरों को तीन श्रेणियों में बांटा गया। कैटेगरी 'ए' में पारंपरिक बीजेपी वोटरों को रखा गया, मगर कैटेगरी 'बी' और 'सी' में निशाना उन वोटरों को बनाया गया जो बीजेपी के पक्के वोटर नहीं रहे थे। धीमे स्वर में ही सही लेकिन प्रचार ऐसे मुद्दों पर हुआ कि आख़िर देश के लिए राम मंदिर किसने बनवाया या बाबा साहेब आंबेडकर को भारत रत्न किस सरकार ने दिया था।
मोदी और योगी के नारे पर विवाद छिड़ा तो नागपुर के संघ मुख्यालय में महत्वपूर्ण बैठक हुई जिसमें तय हुआ कि बीजेपी को किसी भी क़ीमत पर महाराष्ट्र में सत्ता से बाहर नहीं होने देना है। आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने अगले दिन कहा कि कुछ राजनीतिक ताक़तें हिंदुओं को जाति और विचारधारा के नाम पर तोड़ेंगी और हमें न सिर्फ़ इससे सावधान रहना है बल्कि इसका मुक़ाबला करना है. किसी भी क़ीमत पर बंटना नहीं है। संदेश शायद बीजेपी तक भी पहुंच चुका था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अन्तर्गत काम करने वाले तमाम संगठनों में से दो 'लोक जागरण मंच' और 'प्रबोधन मंच' को इस बात की ज़िम्मेदारी दी गई कि वे घर-घर जाकर 'एक हैं तो सेफ़ हैं' वाले नारे का न सिर्फ़ मतलब समझाएं बल्कि ''हिंदुओं को आगाह करें कि अगर वे संगठित नहीं रहे तो उनका अस्तित्व ख़तरे में पड़ सकता है।'' यह रणनीति कारगर साबित हुई और आखिरकार महायुति की सरकार में वापसी हो गई और बीजेपी ने विजय का इतिहास रच दिया।