सीएम की घोषणाओं पर पलीता लगाती अफसरशाही
सुमन “रमन”
अपनी कार्यशैली, छवि और योजनाओं की दम पर भाजपा को सत्ता में लाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर सबसे बड़ा राजनीतिक आरोप है कि वह घोषणावीर मुख्यमंत्री बन गए हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सहित अन्य विरोधी दल शिवराज सिंह पर घोषणाएं करके उन्हें पूरी न करने का आरोप लगाते हैं । विपक्ष के आरोपों की मानें तो शिवराज सिंह चौहान द्वारा तीसरे कार्यकाल की एक हजार घोषणाओं पर अमलीजामा पहनाना तो दूर उनका जिक्र तक नहीं हो रहा है। वहीं दूसरी ओर भाजपा सरकार अधिकांश घोषणाएं पूरी हो जाने का दावा करती है जो हकीकत से परे है। असल में प्रदेश की अफसरशाही मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर न तो गंभीरता से काम करती है और न ही ठीक से उन पर अमल करती है। अफसरों के लापरवाहीपूर्ण रवैये का खामियाजा सीएम और सरकार दोनों को भुगतना पड़ता है।
मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर अमल को लेकर हुई समीक्षा में अफसरशाही की गंभीर लापरवाही सामने आई है। मुख्यमंत्री प्रदेश में कहीं भी घोषणाएं करते हैं उन्हें कोई भी अधिकारी गंभीरता से नोट नहीं करता है। बाद में इधर-उधर से पूछताछ कर अधकचरा प्रस्ताव बना कर भोपाल में भेज दिया जाता है। इस तरह के प्रस्ताव या तो मंत्रालय में संबंधित विभाग में धूल खाते रहते हैं या फिर वित्त विभाग में जाकर गाड़ी अटक जाती है। असल में वित्त विभाग के पास घोषणाओं की न तो कोई सूचना होती है और न ही उस तरह का कोई बजट होता है। असल में विभागों की ओर से वित्त विभाग को भेजे जाने वाले प्रस्ताव में कई बार मुख्यमंत्री की घोषणा का फारमेट ही बदल जाता है इसके चलते वित्त विभाग उस पर आपत्ति लगा देता है। बाद में विभाग और वित्त विभाग दोनों ही इस मुद्दे को भूल जाते हैं।
कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री ने बड़वानी में कालेज खोले जाने की घोषणा की थी, इसका प्रस्ताव उच्च शिक्षा विभाग को बनाना था और वित्त विभाग के पास बजट भी था। लेकिन बड़वानी कलेक्टर ने खेल परिसर बनाए जाने का प्रस्ताव भेज दिया। वित्त विभाग के पास खेल परिसर की घोषणा की कोई सूचना नहीं थी इसलिए उसने प्रस्ताव को रोक दिया। जांच पड़ाताल में पता चला कि मुख्यमंत्री ने अपनी घोषणा में 15 करोड़ का तो कोई जिक्र ही नहीं किया था। जिला कलेक्टर ने गलत प्रस्ताव भेजा और शिक्षा विभाग ने उसे जस का तस आगे बढ़ा दिया। इस लापरवाही से पूरा मामला अटक गया। इस तरह मुख्यमंत्री की अनुसंशा के बावजूद न कालेज खुला और न ही खेल परिसर बन पाया।
इसी तरह मुख्यमंत्री ने जिले में उद्वहन सिंचाई योजना की घोषणा की थी। जिला कलेक्टर ने “पीने के पानी आपूर्ति” का प्रस्ताव भेज दिया। लगभग 110 करोड़ का यह प्रस्ताव आज भी मुख्यमंत्री सचिवालय, सिंचाई विभाग और वित्त विभाग के बीच भटक रहा है। मुख्यमंत्री ने जब खुद समीक्षा की तब यह लापरवाही सामने आई। इसी तरह उच्च शिक्षा विभाग ने मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार छात्रों को स्मार्टफोन देने के लिए 2400 रु. प्रति फोन की दर से प्रस्ताव भेजा। वित्त विभाग ने इसकी मंजूरी दे दी और फोन खरीद भी लिए गए। बाद में उच्च शिक्षा विभाग ने यही फोन 2200 रु. की दर से खरीदे। इसके बाद मुख्यमंत्री की घोषणा पर अमल के लिए सामाजिक न्याय विभाग ने 2600 रु. प्रति फोन की दर से प्रस्ताव भेज दिया। यह फोन मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत होने वाली शादियों में दिए जाने थे। सरकारी एजेंसी की खरीद के बावजूद फोन की दरों में इतना अंतर देख कर वित्त विभाग ने इस पर रोक लगा दी जिससे मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में कन्याओं को दिए जाने वाले फोन फिलहाल खटाई में पड़ गए।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ये मामने को कतई तैयार नहीं होते कि उनकी जनकल्याणकारी योजनाओं को प्रदेश की नौकरशाही किस तरह पलीता लगाती है जिससे उनकी छवि को कहीं न कहीं नुकसान तो पहुंचता है। जब भी यह मुद्दा उठता है मुख्यमंत्री उसे अपनी कार्यशैली पर आरोप मान लेते हैं और सफाई देते हैं कि सबके काम करने का अंदाज अलग-अलग होता है, लेकिन हकीकत तो यही है कि प्रदेश की नौकरशाही मुख्यमंत्री के साथ ठीक से कदमताल नहीं मिला पा रही है। नौकरशाही का यह रवैया न सिर्फ सरकार को शर्मसार करता है बल्कि कई बार मुख्यमंत्री को भी असमंजस की स्थिति में डाल देता है ।