भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना

Aug 23, 2023

खरी खरी डेस्क

नई दिल्ली, 23 अगस्त। बुधवार की शाम दुनिया के विज्ञान जगत में इतिहास बन गई। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया। चंद्रयान-3 ने बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स देशों की मीटिंग से समय निकालक चंद्रयान की लैंडिंग लाइव देखी और सफलता मिलने पर इसरो की पूरी टीम को बधाई दी।

चंद्रयान की सफल लैंडिंग के साथ ही भारत को चंद्रमा का खजाना हाथ लग जाएगा। दरअसल, चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव वह हिस्सा है जो विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए हमेशा से रहस्य रहा है। दक्षिणी ध्रुव पर वह जगह है जहां पर कुछ हिस्सों में एकदम अंधेरा है तो कुछ पर रोशनी नजर आती है। इसके करीब धूप-पानी दोनों है। कुछ हिस्सों में स्थाई रूप से छाया के साथ बर्फ जमा होने की बातें भी सामने आई है। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नासा का दावा है कि, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कुछ गड्ढों पर तो अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है। इन गड्ढों वाली जगह का तापमान -203 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है।

दुनिया के वैज्ञानिकों का मानना है कि, चंद्रमा पर यह बर्फ दरअसल अंतरिक्ष का सोना है। इसका खनन पीने के पानी के लिए किया जा सकता है। साथ ही साथ या सांस लेने के लिए जरूरी ऑक्सीजन और रॉकेट फ्यूल के लिए भी इसे हाइड्रोजन में बांटा जा सकता है। जबकि वैज्ञानिकों की राय है कि, इस ईंधन का प्रयोग न सिर्फ पारंपरिक अंतरिक्ष यान के लिए किया जाएगा, बल्कि उन हजारों उपग्रहों के लिए भी किया जा सकता है उन्हें अलग-अलग मकसद के लिए अंतरिक्ष में भेजा जाता है।

भारत के चंद्रयान-3 द्वारा की गई खोज इस इस मून इकॉनोमी के लिए बड़े दरवाजे खोलेगी। क्योंकि कई अहम जानकारी हमारे पास होगी, तो व्यापार भी हमारे पास ही आएगा। साल 2040 तक मून इकॉनमी के 4200 करोड़ डॉलर के होने का अनुमान है। चांद तक ट्रांसपोर्टेशन का बिजनेस 2040 तक 42 अरब डॉलर तक जा सकता है। इसके अनुसार मून इकॉनमी के 2026 से 2030 तक 19 अरब डॉलर, 2031 से 2035 तक 32 अरब डॉलर और 2036 से 2040 तक 42 अरब डॉलर तक जाने का अनुमान जताया है।

इसके अलावा भारत के पास चंद्रमा का जो डेटा होगा, उससे भी व्यापार किया जा सकता है। कई देश हैं, जो चांद पर सफल लैंडिंग नहीं कर सकते हैं। वे रिसर्च के लिए भारत से करोड़ों डॉलर में डेटा खरीद सकते हैं। इससे वे बिना चांद पर जाए अपनी रिसर्च कर सकते हैं। चांद पर पानी मिलता है, तो उस पानी से ऑक्सीजन बनाई जा सकती है। इससे भविष्य में वहां बेस भी बनाए जा सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार साल 2030 तक चांद पर 40 और साल 2040 तक 1000 एस्ट्रोनॉट रह रहे होंगे। इसके लिए चंद्रयान-3 की रिसर्च काफी काम आएगी।