बिखराव की कगार पर गठबंधन

Jan 22, 2017

सुमन "रमन"

उत्तर प्रदेश सपा कांग्रेस और रालोद में भारतीय जनता पार्टी को पीछे धकेलने के लिए बनने वाला महागठबंधन लगभग बिखरता नजर आ रहा है। सपा और कांग्रेस में सीटों के बंटवारे को लेकर मनमुटाव बना है जो सुलझता नजर नहीं आ रहा, वहीं रालोद की भी सपा से पटरी नहीं बैठी। ऐसे में पूर्व में बनी चुनावी रणनीति टूटने के कगार पर आ चुकी है। सपा के द्वारा 207 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार देने के बाद सपा और कांग्रेस के बीच विवाद गहराता नजर आ रहा है। वहीं रालोद को सपा द्वारा दरकिनार किए जाने से भी सपा पर वादे से मुकरने का आरोप रालोद लगा रही है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि भारतीय जनता पार्टी को सपा मात दे पाएगी। वहीं दूसरी ओर बीजेपी भी इस मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहेगी। बीजेपी को लग रहा है कि इन छोटे दलों के बीच इसी तरह किट-किट मची रही तो गठबंधन हो जाने के बाद भी भाजपा को लाभ मिलेगा, क्योंकि ये दल चुनाव तक लड़ते ही रहेंगे।

  सपा- कांग्रेस और रालोद की चुनावी गठबंधन रणनीति सीटों के बंटवारे में उलझ कर रह गई है, लगता है। जहां सपा अपने उम्मीदवारों को 300 सीटों पर चुनाव लड़वाना चाहती है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी सपा से लगभग
आधी सीटों के समकक्ष की मांग कर रही है। रालोद भी कम से कम 40 सीटों की मांग कर रही है तो सपा अपनी सीटों को छोड़ने को तैयार नहीं है । ऐसे में चुनाव से पूर्व बना यह त्रिकोणीय गठबंधन लगभग बिख्रर गया। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद द्वारा सपा पर आरोप मढ़ा जाना कि सपा बीजेपी के दबाव में रालोद को परे धकेल रही है,  कहां तक सच है यह तो सपा ही जानती है। सपा उपाध्यक्ष किरणमय नंदा ने साफ तौर पर जाहिर कर दिया गया है कि सपा रालोद को अपनी सीटों में से बांटने को तैयार नहीं है, हां कांग्रेस द्वारा रालोद को अपनी सीटें बांटने पर भी आपत्ति नहीं है। वहीं रालोद के वरिष्ठ नेता त्रिलोक त्यागी के अनुसार पार्टी चौधरी अजीत सिंह की देखरेख में चुनाव लड़ेगी।

सपा उपाध्यक्ष किरणमय नंदा द्वारा मतभेद को दबाने की कोशिश करते हुए सफाई दी जा रही है कि कांग्रेस भी यदि भाजपा को हराना चाहती है तब सपा की हां में हां मिलाना होगा। ऐसा करने पर सपा द्वारा 2012 में कांग्रेस जिन सीटों पर जीती थी या जीत के करीब थी उन पूरी सीटों के अलावा सपा के उम्मीदवार जिन सीटों पर बहुत पीछे रही उन सीटों को भी कांग्रेस की झोली में डाल देगी। इस हिसाब से भी कांग्रेस के पास मात्र 50-55 सीटें ही होती हैं, लेकिन सपा गठबंधन को बरकरार रखने के लिए 25 से 30 सीटें और दे सकती है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर इस बिखराव को सिरे से नकारते हुए कह रहे हैं कि अभी गठबंधन पर चर्चा ही हुई है तय कुछ नहीं हुआ है। राज बब्बर के इस बयान से लग रहा है कि घर के अन्दर चल रहे शीतयुद्ध को बाहर आने से रोकने की कोशिश सपा और कांग्रेस दोनों ही कर रहे हैं।

सपा ने हापुड़, बिलासपुर के अलावा अन्य सात उन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं जिन पर 2012 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। इससे भी कांग्रेस तिलमिला गई है पर दर्द बयां नहीं कर पा रही है। अखिलेश द्वारा सीटों का बंटवारा बहुत ही दूरदर्शिता से किया जा रहा है, जहां एक ओर आपराधिक प्रवृत्ति वाले अतीक अहमद का टिकट  काट दिया गया । अल्पसंख्यक समुदाय नाराज न हो जाए एवं उनका वोट बैंक पाने के लिए 52 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं वहीं दूसरी ओर महिला वर्ग का वोट पाने के लिए 19 महिलाओं को पार्टी का टिकट देकर आगे किया है। टिकट को लेकर मचे इस घमासान में बसपा को लाभ मिलता नजर आ रहा है। मयावती की नजर उन नेताओं पर है जो सपा से नाराज होकर बाहर हो रहे हैं। मायावती मानती है कि इन नेतओं को बसपा में लेने से बड़ा राजनीतिक लाभ भले न हो लेकिन सपा की रणनीतियां और कमजोरियां पता पड़ जाएंगी, इसलिए टिकट कटने के बाद अंबिका चौधरी सहित चार विधायकों ने जब नाराजगी जाहिर की तो मायावती ने तुरन्त उन्हें अपने दल में ले लिया।

अखिलेश ने सिर्फ अंबिका चौधरी जैसे नेताओं का ही टिकट नहीं काटा बल्कि पिता द्वारा सौंपी गई सूची में से भी नाम उड़ा दिए। जिस तरह अखिलेश ने पिता मुलायम सिंह द्वारा दिए गए उम्मीदवारों की लिस्ट में से 11  को ‘‘साईकिल’’ पर सवार नहीं होने दिया वहीं चाचा शिवपाल को तो लगभग हाशिए पर कर दिया है। ऐसे में सिर्फ दोस्ती का दम भरने वाली कांग्रेस या रालोद को अखिलेश की शर्तों पर ही सपा के साथ होना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश की सत्ता पर भाजपा को काबिज होने से रोकने के लिए आखिरी अस्त्र शायद यही बचेगा।