ब्रिटेन की मेम जिसने झारखंड को घर बनाया
झारखंड । चंदनक्यारी की गगलटांड़ बस्ती के घर में दरी पर कुछ महिलाएं गोल घेरा बनाए बैठी हैं, जिनमें अधिकतर दलित हैं. इन्हीं में एक हैं मिलन देवी।
जिनके सामने टीन का बक्सा और गत्ते से मढ़ा रजिस्टर रखा है और वह नाम ले-लेकर पैसों का हिसाब मिला रही हैं कि किसने पैसे जमा किए और जिन्होंने कर्ज़ लिए, वे कब तक चुकाएंगी. ये महिलाएं इसे बक्सा बैंक कहती हैं और उनकी बैठकें हफ़्ते में एक बार होती हैं।
मिलन देवी, झारखंड में बोकारो से 25 किलोमीटर दूर बसे पिछड़े इलाके चंदनक्यारी में चलने वाले कोऑपरेटिव बैंक से जुड़ी हैं, जिसके नीचे क़रीब 8000 महिलाएं, 450 स्वयं सहायता समूह चलाती हैं. जन चेतना कोऑपरेटिव बैंक का काम कुछ पुरुषों के साथ गांव की महिलाएं ही देखती हैं।
मिलन कहती हैं, "अब वो दिन नहीं रहे, जब पैसे की ज़रूरत के लिए महाजन के पास कांसे का कटोरा और मंगल सूत्र गिरवी रखना पड़ता था." इन महिलाओं को संघर्षों से जूझना सिखाया एक ब्रितानी महिला लिंडसे बर्न्स ने, जिन्हें सभी मास्टरनी जी कहती हैं. लिंडसे 1980 के दशक में धनबाद की कोलयरियों में मज़दूरों पर शोध करने आई थीं और फिर यहीं की होकर रह गईं। लिंडसे के साथ जेएनयू में कोलकाता के रंजन घोष भी पढ़ते थे और वे भी उनके साथ यहां आए थे। बाद में चंदनक्यारी के विधायक रहे हारू रजवार के अनुरोध पर वे कॉलेज में पढ़ाने लगे और लोग उन्हें मास्टर कहने लगे।