डीएसपी देविंदर ने 2005 में भी की थी आतंकवादियों की मदद
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 18 जनवरी। आतंकियों से जुड़े कनेक्शन मामले में जम्मू-कश्मीर से गिरफ्तार डीएसपी देविंदर सिंह मामले में केन्द्रीय खुफिया एजेंसी आईबी की टीम को एक बेहद महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। देविंदर ने 2005 में आतंकवादी हाजी गुलाम मोइनुद्दीन की मदद की थी। सारे सबूत होने के बाद भी सुरक्षा बलों से चूक हो गई थी।
आईबी के खुफिया सुत्रों के मुताबिक साल 2005 में दिल्ली पुलिस द्वारा सात संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया गया था। उन गिरफ्तार आरोपियों के पास से AK-47 और काफी संख्या में नकली करेंसी भी जप्त हुई थी। उन गिरफ्तार आरोपियों में से एक संदिग्ध आतंकी का नाम है, "हाजी गुलाम मोइनुद्दीन डार उर्फ जाहिद''। जब हाजी गुलाम मोइनुद्दीन गिरफ्तार हुआ था तब उसके पास से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद हुआ था जिसको देविंदर सिंह द्वारा प्रदान किया गया था। उस दस्तावेज में इस बात का जिक्र था कि गुलाम मोइनुद्दीन जो पुलवामा का रहने वाला है, ये हमेशा अपने पास पिस्टल और एक वायरलेस सेट रखता है, इसलिए सभी फोर्स से अनुरोध है कि उसे बिना कोई पूछताछ/ जांच पड़ताल के जाने दिया जाए। कहीं भी उसे रोका नहीं जाए।" इस महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट को आरोपी डीएसपी देविंदर सिंह ने अपने लेटर हैड पर अपने हस्ताक्षर सहित दिया था।गुलाम मोइनुद्दीन की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली पुलिस की टीम ने उस वक्त देविंदर सिंह से बातचीत की थी और उस मामले में जानकारी मांगी थी। तब देविंदर सिंह ने फोन करके उस खत को सही ठहराया था। जिसका फायदा कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान हुआ और आरोपी को उसका फायदा मिल गया। लेकिन सवाल उस वक्त था कि किसी प्राइवेट शख्स को देविंदर सिंह कैसे वायरलेस सेट लेकर जाने की इजाजत दे सकता है? आर्म्स और उसके वायरलेस सेट को बिना कोई जांच पड़ताल के संदिग्ध युवक को लेकर जाने की इजाजत कैसे मिली? एक शख्स जिसके खिलाफ केंद्रीय खुफिया एजेंसी MI यानी मिलिट्री इंटेलिजेंस तफ़्तीश करके दिल्ली पुलिस को ये जानकारी दे रही है कि ये आतंकी है और उसको कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार किया जाए, लेकिन उसमें से एक संदिग्ध आतंकी के पास देविंदर सिंह का लिखा हुआ खत मिलना अपने आप में कई सवाल उठाता है। अगर उसी वक्त यानी साल 2005 में ही अगर जम्मू -कश्मीर पुलिस MI और दिल्ली पुलिस की इस रिपोर्ट को अगर गंभीरता से लेती तो आज देविंदर सिंह के चलते पुलिस और संस्था की इतनी बेइज्जती नहीं होती।