क्षेत्रीय समस्याओं से जूझते मिजोरम में चुनावी शोरगुल का हिस्सा नहीं बन रहे मुद्दे

Oct 22, 2023

खरी खरी डेस्क

आईजोल, 22 अक्टूबर। अगले महीने नवंबर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना जैसे बड़े राज्यों के साथ पूर्वोत्तर के छोटे राज्य मिजोरम में भी विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। इस छोटे से राज्य के मुद्दे और चुनौतियां बड़े राज्यों से अलग हैं। इसलिए इस राज्य मे चुनावी शोरगुल नहीं सुनाई पड़ रहा है। क्षेत्रीय समस्याओं से जूझते मिजोरम में मुद्दे हैं तो कई लेकिन वे चुनावी शोरगुल का हिस्सा नहीं बन रहे हैं। मिजोरम में विधानसभा की चालीस सीटें हैं। पिछले चुनाव  मे मिजो नेशनल फ्रंट(एमएनएफ) 40 में से 26 सीटें जीतकर सत्तारूढ़ हुआ था। पिछले चुनाव में एक सीट जीतकर बीजेपी सरकार में सहयोगी बनी थी।

क़रीब 13 लाख 80 हज़ार की आबादी वाले इस छोटे से पहाड़ी राज्य में भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सेवाएं, अवैध घुसपैठ जैसे कई राजनीतिक मुद्दे हैं। इनमें से कितने मुद्दे चुनाव पर असर डाल पाएंगे कोई दावा नहीं किया जा सकता है। बीजेपी के लिए मणिपुर हिंसा के बाद पूर्वोत्तर के किसी राज्य में यह पहला चुनाव है। भगवा पार्टी ने ईसाई बहुल इस राज्य में पिछली बार के चुनाव में एक सीट हासिल कर अपना खाता खोला था, लेकिन हिंदुत्व वाली राजनीति के सामने यहां के मतदाता ज़्यादा सहज नहीं दिखते है। मणिपुर की हिंसा और म्यांमार में मिलिट्री ऑपरेशन के कारण भागकर आए सैकड़ों की तादाद में चिन, कुकी-ज़ोमी शरणार्थियों का मुद्दा काफ़ी चर्चा में है।

मिज़ोरम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर जे. डौंगल के अनुसार यहां इस बार का चुनाव कई स्थानीय मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा। उनके अनुसार यहां मुक़ाबला एमएनएफ़ और जेडपीएम के बीच है लेकिन म्यांमार और मणिपुर से यहां शरण लेने आए लोगों का मसला भी एक मुद्दा है। प्रोफ़ेसर डौंगल कहते हैं कि मणिपुर हिंसा के ख़िलाफ़ आइजोल की सड़कों पर जब लोगों ने विरोध रैली निकाली थी उसमें यहां का प्रत्येक व्यक्ति शामिल हुआ था। मुख्यमंत्री जोरामथांगा भी लोगों के साथ रैली में थे। लिहाजा एमएनएफ़ इस मुद्दे को सबसे ज़्यादा अहमियत दे रही है। एमएनएफ़ के कामकाज में कई कमियां हो सकती हैं लेकिन वो इन लोगों के साथ शुरू से खड़ी है।

मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा के नेतृत्व वाली मिजो नेशनल फ़्रंट (एमएनएफ़) म्यांमार के चिन और मणिपुर के कुकी-ज़ोमी शरणार्थियों के मुद्दे को 'मिज़ो राष्ट्रवाद' बताती है। यही एक मुद्दा है जिसके सहारे क्षेत्रीय पार्टी फिर से सत्ता में आना चाहती है। एमएनएफ़ ने अपने एजेंडे में इसे सबसे ऊपर रखा है। बीजेपी अपने सहयोगी सत्ताधारी दल एमएनएफ पर केंद्र से भेजे गए पैसों को लेकर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाती है। इस बार के चुनावी मुद्दों और अपनी रणनीति पर बात करते हुए मिज़ोरम प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष वनलालहमुअका कहते हैं कि हमारे लिए यहां आए शरणार्थी भाई-बहनों का मसला मुद्दा नहीं है। हमारे लिए मिज़ोरम का विकास पहली प्राथमिकता है। एमएनएफ़ शरणार्थियों के नाम पर एक राजनीतिक ड्रामा कर रही है। मिज़ोरम में तेज़ी से उभर रही क्षेत्रीय पार्टी जेडपीएम, कांग्रेस और नागरिक संगठन भी शरणार्थियों के मसले को चुनावी मुद्दा नहीं मानते हैं। वैसे  लोगों का कहना है कि मिज़ोरम के लोग मुद्दों से ज़्यादा उम्मीदवार को देखकर वोट डालते है।