किसकी साजिश का शिकार हो गए कमलनाथ
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ पंजाब के प्रभारी महासचिव पद से जिस तरह अचानक विदा हुए, उससे कमलनाथ और कांग्रेस दोनों की किरकिरी हुई है। सिर्फ तीन दिन के भीतर किसी भी बड़े दल के बड़े नेता का अपने काम से इस तरह रुखसत होना, सियासत का समीकरण समझने वालों को कई संकेत दे जाता है। इससे एक बार फिर कांग्रेस के कमांडिंग सुप्रीमो राहुल गांधी की परिपक्वता पर सवाल लगाती सियासी चर्चा शुरू हो जाएगी, जिससे कांग्रेस को तो नुकसान होना तय है, कमलनाथ की छवि पर भीअसर पड़ेगा।
पंजाब के विधानसभा चुनावों को देखते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ को सिर्फ तीन दिन पहल पंजाब और हरियाणा का प्रभारी महासचिव बनाया गया था। लेकिन भाजपा, अकाली दल और आप ने 1984 के सिख दंगों में कमलनाथ की भूमिका को लेकर इतना प्रोपेगंडा किया कि कांग्रेस और कमलनाथ की सारी सफाई धरी की धरी रह गई। हैरान परेशान कमलनाथ को पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष से उन्हें प्रभारी पद से मुक्त करने का अनुरोध करना पड़ा। अध्यक्ष ने इस अनुरोध को मान लिया और तीन दिन में कमलनाथ पंजाब से विदा हो गए।
यह पूरा घटनाक्रम देखने, सुनने, पढ़ने में भले ही बहुत सहज लगे लेकिन कांग्रेस में अंदर ही अंदर मची कलह को जानने वाले तथा पंजाब की सियासत को समझने वाले मानते है कि कमलनाथ के खिलाफ राजनीतिक साजिश सफल रही और यह कांग्रेस के अंदरखाने की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था। कमलनाथ ने हाल ही में मध्यप्रदेश मे पार्टी के एक पालिटिकल आपरेशन को हैंडल किया और सफल रहे। सत्तारूढ़ बीजेपी की चालों को धता बताते हुए कांग्रेस के प्रत्याशी विवेक तनखा को राज्यसभा का चुनाव जितवाने में सफल रहे। इससे पूरे देश में उनके राजनीतिक कौशल की तारीफ हुई। यह बात कांग्रेस के ही उन नेताओं को हमज नहीं हुई जो इस आपरेशन में कमलनाथ के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े तो रहे लेकिन उनका दिल यह नहीं मानता कि कमलनाथ भी रणनीतिकार हो सकते हैं। वे कमलनाथ को सिर्फ पार्टी के लिए वित्तीय प्रबंध करने वाला नेता ही मानते हैं। इसलिए पंजाब का प्रभारी महासचिव बनाए जाते ही उनके खिलाफ साजिश शुरू हुई और परिणाम सबके सामने हैं। इस घटनाक्रम से कमलनाथ के हाल फिलहाल मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की अटकलों पर भी विराम लग सकता है।
सोनिया गांधी को भेजी गई चिट्ठी में कमलनाथ ने कहा कि वह पिछले कुछ दिन में नई दिल्ली में 1984 के दर्दनाक दंगों को लेकर पैदा गैरजरूरी विवाद से जुड़े घटनाक्रम से आहत हैं। उन्होंने यह कदम ऐसे समय उठाया जब अकाली दल, भाजपा और आप ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों में कमलनाथ की कथित भूमिका को लेकर उन पर तथा कांग्रेस पर हमला साधा। उनकी नियुक्ति को सिखों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा बताते हुए तीनों दल इस नियुक्ति को बड़ा तूल देने की तैयारी में थे।
कमलनाथ ने कहा कि दंगा मामले में वर्ष 2005 तक उनके खिलाफ कोई सार्वजनिक बयान या शिकायत या प्राथमिकी तक नहीं थी और पिछली राजग सरकार द्वारा गठित नानावटी आयोग ने उन्हें बाद में दोषमुक्त करार दिया था। उन्होंने सोनिया से कहा कि यह विवाद कुछ नहीं बल्कि चुनावों से पहले लाभ उठाने के लिए सस्ता राजनीतिक प्रयास है। कुछ खास तत्व केवल राजनीतिक लाभ के लिए इन मुद्दों को उठा रहे हैं।
कमलनाथ ने अपने पत्र में कांग्रेस की भीतरी साजिश की ओर कोई इशारा नहीं किया है, लेकिन यह माना जा रहा है कि दस जनपथ में अपनी पहुंच का उपयोग वे अब उन चेहरों को बेनकाब करने में जरूर करेंगे, जिन्होंने उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश की है।