कल्चर के नाम पर धंधा करने वालों के कारण फिल्में नहीं चल पातीं
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। जाने माने फिल्म और थियेटर आर्टिस्ट रघुवीर यादव का कहना है कि कुछ लोगों ने कल्चर को धंधा बना लिया। इसके चलते कार्मशियल फिल्में थोक में आ गईं लेकिन चल नहीं पाई। इसलिए अब लोगों को लगने लगा है कि फिल्म किसी भी धारा की हो लेकिन अच्छी बनानी पड़ेगी, तभी वह चलेगी। अपनी नई फिल्म जैकलीन आई एम कमिंग के प्रमोशन के सिलसिले में भोपाल आए रघुवीर यादव ने दबंग दुनिया से विशेष चर्चा में यह दावा किया। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के संपादित अंश…।
सवाल: आपकी फिल्में और आपका अभिनय आज भी फिल्मों की भीड़ से एकदम अलग होता है, आपका औरा एकदम अलग होता है। इससे आपको लाभ होता है कि नुकसान?
जवाब: अलग करने के नुकसान का तो पता नहीं, लेकिन संतुष्टि होती है।मैं हमेशा थोड़ा सा अलग करने की कोशिश करता हूं। इसके मन को संतोष मिलता है कि कुछ अलग किया है। मुझे खुद को जो काम अच्छा नहीं लगता है, वह दूसरों को कैसे अच्छा लगेगा। मैं वह काम नहीं करना चाहता जो मुझे खुद अच्छा नहीं लगे। वह काम दर्शकों को क्यों अच्छा लगेगा। इसके चलते कई बार खाली भी बैठना पड़ा, लेकिन मुझे इसका कोई अफसोस नहीं होता है।
सवाल: मैसी साब और पीपली लाइव जैसी फिल्में नहीं आ रही है। इसका क्या कारण है। क्या जरूरी है कि नामचीन कलाकारों से ही फिल्में चलती हैं?
जवाब: असल में एक दौर ऐसा आ गया था। कुछ लोगों ने कल्चर को धंधा बना लिया था। काफी पैसे लगाकर फिल्में बना ली गईं, लेकिन चली नहीं। फिल्मों को चलने ही नहीं दिया गया। अब जाकर लोगों में समझ आई है कि फिल्म छोटी हो या बड़ी, अच्छी फिल्म बनानी पड़ेगी। इसके चलते उनकी नियत साफ हुई है। उन्हें भी लग रहा है फिल्म अच्छी हो यह जरूरी है। इसमें स्टार अच्छे हों यह जरूरी नहीं है।
सवाल: आपका कहना है कि फिल्म से संतुष्ट नहीं हैं, थियेटर से संतुष्ट हैं। फिल्मों से संतुष्टि के लिए किस तरह के रोल आप करना चाहते हैं। किस तरह की फिल्म की तलाश में हैं?
जवाब: तलाश और संतुष्टि से कोई संबंध नहीं है। थियेटर में काफी समय मिलता है। रिहर्सल कई बार होती हैष। कई शो होते हैं। इससे आपको अपना बेहतर देने का मौक मिलता है।फिल्मों में ऐसा नहीं होता है। वहां एक बार जो गया है तो बाद में छाती पीटने के अलावा कुछ नहीं होता। फिल्मों में टुकड़ों-टुकडों में शूट होता है इससे भी कई बार संतुष्टि आने में दिक्कत होती है।
सवाल: आपकी फिल्में हमेशा सामाजिक संदेश देने वाली होती हैं। इससे हमेशा एक तरह की फिल्में हो जाती हैं। ऐसा क्यों?
जबाव: हम अपनी फिल्मों को कोई संदेश देने के उद्देश्य से नहीं बनाते हैं। लेकिन फिल्म की कहानी और फिर निर्माण किसी न किसी तरह का संदेश दे ही देता है। कई बार लगता है कि इस तरह का संदेश नहीं देना चाहिए था, फिर भी संदेश चला जाता है।
सवाल:क्लासिकल फिल्में दौड़ में बहुत पीछे रह जाती हैं। इसके चलते थियेटर से आए कलाकारों को काम नहीं मिल पाता है।
जवाब- अब स्थितियां बदल रही हैं। कई निर्माता अब इस दिशा में काम कर रहे हैं। एक दो साल में स्थितियां और बेहतर होंगी। थियेटर से आने वाले कलाकारों को ज्यादा काम मिलेगा।
सवाल: रघुवीर यादव क्या टीवी की दुनिया में भी लौटना चाहेंगे?
जवाब: लौटना तो तब होता जब मैं यहां से चला गया होता। मैंने टीवी की दुनिया नहीं छोड़ी है। लगातार जुड़ा हूं। अगर मौका मिला तो और बेहतर टीवी करना चाहूंगा।