एमपी में किसानों की कर्ज माफी हाशिए पर

Apr 07, 2017

                                      सुमन 'रमन'

भोपाल, 7 अप्रैल। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा क्या कर दी पूरे देश में किसान कर्ज माफी की एक मुहिम सी चल पड़ी है। विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में किसानों का कर्ज माफ करने की तैयारी शुरू हो गई है। लेकिन कई मामलों में भाजपा शासित राज्यों के लिए रोल मॉडल बनने वाली मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार इस मुद्दे पर अलग अंदाज में है। मध्यप्रदेश में किसानों का कर्ज माफ करने की कोई योजना नहीं है। भाजपा ने कर्ज माफी के मुद्दे पर भी अपना पक्ष साफ नहीं किया।

बीजेपी मध्यप्रदेश की सत्ता हथियानें के लिए किसानों को मोहरा  बनाने से कभी नहीं चूकी। उसमें कर्ज माफी का मुद्दा भी शामिल रहता है। पार्टी ने 2008 के चुनावी घोषणा पत्र में प्रदेश के किसानों का 50 हजार तक का कर्जा माफ करने का वायदा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद उस पर अमल नहीं किया गया। सरकार में बैठे लोगों का तर्क था कि घोषणा पार्टी की ओर से की गई थी, इसलिए पार्टी ही योजना बना कर सरकार को देगी। वहीं पार्टी का तर्क था कि सरकार पांच साल चलना है और कर्ज माफी के मुद्दे पर कोई समय सीमा नहीं तय हुई है। यह मामला पूरे पांच साल तक सरकार और संगठन के बीच झूलता रहा लेकिन कर्ज माफी के वायदे पर बीजेपी ने अमल नहीं किया।

इसके बाद 2013 के चुनाव के दौरान भाजपा ने किसानों से कई वायदे अपने घोषणा पत्र में किए, लेकिन कर्ज माफी का मुद्दा घोषणा पत्र में जगह नहीं पा पाया। भाजपा एक बार फिर सत्ता में आ गई और किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा हाशिए पर चला गया। अब जब पूरे देश में किसानों की कर्ज माफी की मुहिम सी चल रही है तब मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार और संगठन अलग राग अलाप रहे हैं। उनका कहना है मध्यप्रदेश में किसानों को शून्य प्रतिशत  पर ब्याज पर कर्ज दिया जा रहा है तब फिर कर्ज माफी का सवाल ही नहीं होता है। यह बात अलग है कि किसानों को मूल धन तो लौटाना ही पड़ता है। शून्य प्रतिशत ब्याज पर का कर्ज का मामला भी विवादित है। किसानों को  कर्जे की रकम 31 मार्च के पहले बैंकों को लौटानी होती है ताकि बैंक वित्तीय क्लोजिंग में कर्जे को पूरा पटा हुआ दिखा सके। उस समय फसल खेतों में होती है और किसान की जेब में पैसा नहीं होता, ऐसे में किसान या तो कहीं और से ब्याज से पैसा लेकर बैंक को वापस करता है या फिर बैंक वित्तीय वर्ष खत्म होते ही उस कर्जे को सामान्य कर्जा मान कर उस पर ब्याज लगा देती है।

इसी के चलते किसान कर्जदार हो जाता है और आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है। मध्यप्रदेश में किसानों की आत्महत्या बढ़ने के बावजूद राज्य सरकार यह समझने को तैयार नहीं है कि किसान कर्जे को लेकर परेशान है। मध्यप्रदेश सरकार शून्य फीसदी दर पर कर्जे का ढिंढोरा पीटकर यह साबित कर चुकी है कि मध्यप्रदेश में किसानों के कर्जे माफ करने जैसी कोई स्थिति नहीं है। यह बात अलग है कि किसानों का मुद्दा विधानसभा के हर सत्र में छाया रहता है और अब उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव में भी यह बड़ा मुद्दा बने। तब शायद इस बार के घोषणापत्र में बीजेपी एक बार फिर किसान कर्ज माफी का दांव खेल जाए।