एमपी के कालेजों में आरएसएस के नेताओं की किताबें पढ़ाने पर मचा सियासी बवाल
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 16 अगस्त। मध्यप्रदेश के महाविद्यालयों में आरएसएस से जुड़े विचारकों की किताबें पढ़ाए जाने पर सियासी बवाल मच गया है। कांग्रेस ने एक विचारधारा के लेखकों की किताबें कालेजों पर थोपे जाने का आरोप लगाया है। वहीं भाजपा ने कांग्रेस के आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि सभी विचारधाराओं के लेखकों को पढ़ाया जा रहा है। वहीं मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने कहा कि सभी विचारकों की किताबें लाइब्रेरी में रहेंगी, किसी भी लेखक को पढ़ने का किसी पर कोई दबाव नहीं है।
असल में विवाद की जड़ राज्य के उच्च शिक्षा विभाग का वह पत्र है जिसके द्वारा विभाग ने प्रदेश के सभी महाविद्यालयों को कुछ चुनिंदा लेखकों की किताबें खरीदने का निर्देश दिया है। प्रदेश के सभी सरकारी और गैर सरकारी कॉलेजों के प्राचार्यों को लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रकोष्ठ हेतू इस विषय से सबंधित किताबें जनभागीदारी से खरीदी जाएं. इनमें जिन किताबों की सूची दी गई है। इस सूची में ज्यादातर लेखक और प्रकाशक एक विचारधारा विशेष के हैं, जिनमें कई आरएसएस से जुड़ी संस्था विद्या भारती संस्कृति उत्थान न्यास से जुड़े हुए हैं। जिन लेखकों की किताबें शामिल की गई हैं, उनमें संघ के प्रचारक सुरेश सोनी से लेकर अतुल कोठारी, दीनानाथ बत्रा, देवेन्द्र राय देशमुख, संदीव वालसलेकर समेत कई नाम हैं।
कांग्रेस नेता केके मिश्रा का इस मुद्दे पर बयान आया है। उन्होंने कहा है कि 'जिस संघ का जंग ए आजादी से कभी कोई लेना देना नहीं रहा है। जिसने शाखाओं में भगवा ध्वज का वंदन करने का फरमान जारी किया था। ऐसी विचारधारा से जुड़े लेखकों की पुस्तकें शिक्षण संस्थाओं में किस राष्ट्रप्रेम और बलिदान की प्रेरणा बनेंगी। क्या ऐसी विचारधारा को तिरंगा यात्रा निकालने का अधिकार है। मिश्रा का कहना है कि जिन लेखकों के नाम इस सूची में शामिल है। उनका शिक्षा जगत से कोई कोई ताल्लुक नहीं है। वे सिर्फ एक विचारधारा विशेष को ही समर्पित रहे हैं। कांग्रेस सरकार बनने पर हम इस आदेश का खात्मा करवाएंगे।
वहीं बीजेपी प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि 'कांग्रेस पार्टी बगैर तथ्यों के आरोप लगा रही है। भारत की सांस्कृतिक सामाजिक परंपरा को बचाने के लिए विद्यार्थियों को अगर भारतीय ज्ञान परंपरा की किताबें पढ़ाई जा रही हैं, तो इसमें दिक्कत क्या है। उसमें केवल संघ परिवार के सुरेश सोनी की अकेली किताब नहीं है। उसमें वेद प्रताप वैदिक की किताब है। स्वामी विवेकानंद की किताब है। अंग्रेजी भाषा की 14 से ज्यादा किताबें हैं। संघ एक राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन है, जो राष्ट्र निर्माण की विचारधारा से लोगों को जोड़ता है। अगर बच्चे इसे पढ़ते हैं तो क्या दिक्कत होनी चाहिए। हां कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति इससे अवश्य प्रभावित होती है।
मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने इस मुद्दे पर कहा कि प्रदेश के 55 जिलों में पीएम एक्सीलेंस कॉलेज बनाए गए हैं, जिनमें हमने लाइब्रेरी स्थापित की है। उन्होंने बताया कि लाइब्रेरी में सभी विचारवान लेखकों की पुस्तकें उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्होंने कहा कि अगर पुस्तकें नहीं रखेंगे तो क्या करेंगे? पुस्तकें तो रखनी ही पड़ेंगी, चाहे वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हों या किसी और के। आपकी इच्छा हो तो पढ़ें, नहीं हो तो न पढ़ें। डॉ. यादव ने कहा कि भारत की विशेषता यह है कि यहां ज्ञान दसों दिशाओं से आना चाहिए और इसका प्रवाह कभी नहीं रुकना चाहिए। भारत के आगे बढ़ने का यही कारण है। उन्होंने पाठयक्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवकों (आरएसएस) की किताबों को शामिल करने को लेकर उठ रहे विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि फिलहाल पाठ्यक्रम का कोर्स तैयार नहीं हुआ है और यह काम अभी बाकी है। इसके लिए एक समिति और अध्ययन मंडल बनेगा जो इसे फाइनल करेगा।