मप्र में सियासत का फिल्मी अंदाज, छपाक बनाम तानाजी बनी कांग्रेस बनाम भाजपा

Jan 11, 2020

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 11 जनवरी। दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक को लेकर शुरू हुआ समर्थन और विरोध का सिलसिला मध्यप्रदेश में राजनैतिक लड़ाई में बदल गया। विकास और बदलाव के मुद्दे पर सियासत करने वाली दोनों पार्टियां…सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्ष में बैठी भाजपा…. शहर के सिनेामाघरों में एक दूसरे के सामने सीना तान रही हैं। सियासत का यह नया स्टाइल मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में दिखाई पड़ रहा है।

की राजधानी भोपाल में कांग्रेस और भाजपा दोनों के कार्यकर्ता आज सुबह से शहर के एक सिनेप्लेक्स के सामने डटे थे। कांग्रेस के लोग जहां दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक का समर्थन कर रहे थे, वहीं भाजपा के लोग अजय देवगन अभिनीत फिल्म तानाजी का समर्थन कर रहे थे। यह संयोग ही है कि दोनों फिल्में एक ही परिसर में स्थित सिनेप्लेक्स की दो स्क्रीन पर चल रही हैं। कांग्रेस अपनी छात्र इकाई एनएसयूआई को आगे कर मुददे को हवा दे रही है। एनएसयूआई ने अपनी ओर से फ्री में टिकट देकर लोगों को फिल्म दिखाने का आमंत्रण दिया तो… भाजपा के पूर्व विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह अपनी ओर से फ्री टिकट देकर लोगों को फिल्म दिखाने पहुंच गए। दोनों ओर से सियासतदार थे तो सियासत होनी ही है। एनएसयूआई पूरी तरह भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रही है।

मामला फिल्म से हटकर सियासत पर चला गया तो कोई भी पीछे नहीं हटना चाहता है। कांग्रेस के दिग्गज नेता भी अब इस मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ खड़े हो गए हैं। यहां तक कि सरकार के मंत्री भी फिल्म को लेकर सियासत कर रहे हैं। मुख्यमंत्री पहले ही फिल्म को टैक्स फ्री कर चुके हैं। भाजपा की ओर से भले ही सिर्फ पूर्व विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह खुलकर सामने आए हों लेकिन इस मुद्दे पर सियासत शुरू हुई तो पूरी भाजपा सरकार के खिलाफ खड़ी हो गई। पार्टी का मानना है कि सरकार अगर गैर सियासी कारणों से छपाक को टैक्स फ्री कर रही है तो उसे तानाजी को भी टैक्स फ्री करना चाहिए।  सियासत के इन दावों प्रतिदावों और आरोपों प्रत्यारों के बीच फिल्म देखने वालों का अलग नजिरया है। उन्हें छपाक अच्छी लगी और उनको लगता है कि एसिड अटैक सर्वाइवर के लिए कुछ किया जाना चाहिए।

कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही फिल्म से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें तो अपनी सियासत चमकाने का एक मौका मिल गया है। अगर दीपिका पादुकोण फिल्म रिलीज होने से पहले, जेएनयू नहीं जातीं… तो उनकी फिल्म से कांग्रेस को न कोई लगाव होता और न भाजपा को कोई विरोध… सियासत का यह नया अंदाज दोनों ही पार्टियां सीख गई हैं।