भारत में अंग्रेजी से अधिक बढ रही है अंग्रेजियत - पद्मश्री डॉ. तोमिओ
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 27 अक्टूबर। ‘भारत में हिंदी और भारतीय भाषाओं की लगातार उपेक्षा हो रही है, इसी
कारण अंग्रेजी के बढने के साथ ही अंग्रेजियत भी लगातार
भारतीयता को समाप्त कर रही है. नई शिक्षा नीति को पूर्ण मनोयोग से लागू
किया जाए तो स्थिति बदल सकती है...’, यह कहना था ओसाका विश्वविद्यालय
जापान के पूर्व हिंदी, प्रोफेसर पद्मश्री डॉ. तोमिओ मिजोकामि का,
जिन्होंने हिंदी भवन में विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान और
वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श पर आधारित ई-संगोष्ठी के अवसर
पर साक्षात्कार के दौरान व्यक्त किए।
इस आयोजन में भाषा प्रेमियों के लिए दो सत्र रखे गए थे। पहला सत्र
प्रौद्योगिकी पर आधारित रहा, जिसमें माइक्रोसॉफ्ट के निदेशक बालेन्दु
शर्मा ‘दाधीच’ ने अपने व्याख्यान में ‘यूनिकोड फॉण्ट में प्रकाशन’ विषय
पर व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत किए। विविध उदाहरणों के माध्यम से
उन्होंने प्रकाशन उद्योग में यूनिकोड से जुड़े व्याप्त भ्रम को समाप्त
करने का प्रयास भी किया। उन्होंने अपने व्याख्यान में यूनिकोड से दूरी को
प्रकाशन उद्योग के लिए श्रम एवं धन का अपव्यय बताया। इस ई-संगोष्ठी का
द्वितीय सत्र भाषा विमर्श पर आधारित रहा, जिसमें पद्मश्री डॉ. तोमियो
मिजोकामी का विशेष साक्षात्कार हिंदी भवन भोपाल के निदेशक डॉ जवाहर
कर्णावट ने लिया। भाषा प्रेमियों के लिए यह साक्षात्कार प्रेरक रहा। डॉ.
तोमियो मिजोकामी, जापान में हिंदी के अग्रणी सेवक के रूप में ख्यात है।
उन्होंने भारत में हाल में लागू की गई नई शिक्षा नीति पर पूछे गए प्रश्न
के उत्तर में ‘प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में’ दिए जाने की बात का समर्थन
किया। उन्होंने बताया कि जापान के कुल 27 नोबेल पुरस्कार विजेता जापानी
माध्यम से ही पढ़कर ही वहां तक पहुंचे हैं। सभी श्रोताओं ने इस सत्र को
अत्यंत ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी बताया। आज के इस सत्र में केन्द्रीय हिंदी
संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल जोशी, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, पद्मेश
गुप्त,(यू.के)) अनूप भार्गव (यू.एस.ए.)की भी सहभागिता रही। सत्र संयोजन
एवं संचालन में राजेश कुमार, अनुपम श्रीवास्तव तथा नवेंदु वाजपेयी का
सराहनीय योगदान रहा।