डीए की गफलत से खुली तंत्र की पोल
भोपाल, 22 मई। मध्यप्रदेश सरकार के कर्मचारियों को डीए की किस्त 7 प्रतिशत से घटा कर 4 प्रतिशत किए जाने का प्रस्ताव कैबिनेट में जाएगा। कैबिनेट इस प्रस्ताव पर मंजूरी देने के पहले शायद कोई सवाल न करे, लेकिन यह तय है, डीए की घोषणा में हुई गफलत ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। साथ ही प्रदेश के शासन केंद्र बल्लभ भवन में होने वाली तमाम बड़ी गफलतों की पोल खोल दी है।
मध्यप्रदेश सरकार ने कर्मचारियों को 7 फीसदी डीए देने की घोषणा करके न सिर्फ कर्मचारियों को खुश कर दिया बल्कि अपनी पीठ भी स्वयं थपथपा ली। लेकिन थोड़े ही दिनों में पता पड़ गया कि डीए की गणना में बड़ी गड़बड़ी हो गई है। डीए की किस्त केंद्र सरकार ने दो अलग-अलग आदेश डीए को लेकर जारी किए, इसी के चलते मध्यप्रदेश की नौकरशाही ने बड़ी नासमझी दिखा दी। केंद्र के दोनों आदेशों को जोड़कर मध्यप्रदेश ने सात फीसदी डीए की घोषणा कर दी। जबकि केंद्र ने सिर्फ चार फीसदी डीए देने के लिए दो अलग-अलग आदेश जारी किए थे। दोनों आदेश दो विभिन्न श्रेणियों के अनुसार थे। अब मध्यप्रदेश सरकार को अपनी गलती का अहसास हो गया तो वह संशोधन आदेश जारी कर डीए 4 फीसदी करने की घोषणा करने जा रही है। डीए का मामला चूंकि नीतिगत फैसला होता है इसलिए इसके प्रस्ताव पर कैबिनेट की मोहर लगती है, अब कैबिनेट की अगली बैठक में प्रस्ताव लाकर डीए को 7 की जगह 4 फीसदी कर दिया जाएगा। यह संभवतः पहला मौका होगा जब कैबिनेट को अपना ही फैसला कुछ दिनों के भीतर इसलिए बदलना पड़ेगा कि फैसला लेने में त्रुटि हो गई है।
इतनी बड़ी गलती के लिए न तो अभी तक किसी को जिम्मेदार ठहराया गया है और न ही किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई है। वित्त विभाग के मुखिया जयंत मलैया बहुत ही बचकाना जबाव दे रहे हैं कि इस मामले में विभाग का मुखिया होने के कारण वह खुद ही दोषी हैं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब मंत्रालय में प्रशासनिक स्तर पर गलती हुई है, वास्तविकता यह है कि राज्य मंत्रालय में प्रशासनिक अमला अपने कामों में दक्ष नहीं है। पुराने जमाने के कर्मचारियों को न तो ठीक से अंग्रेजी आती और न ही कम्प्यूटर का अच्छा ज्ञान है। कर्मचारियों के रिटायर होने और मंत्रालयीन कर्मचारी सेवा में नई भर्ती न होने से कुशल कर्मचारियों की कमी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि कर्मचारी केंद्र से आए निर्देशों और नियमों को ठीक से समझ नहीं पाते हैं। जितना उनको समझ आता है उसी के अनुसार नोट शीट तैयार कर देते हैं। यह नोटशीट आगे बढ़ते हुए आदेश का रूप ले लेती है। सेक्शन ऑफिसर से ऊपर के अधिकारी नोट शीट को पढ़े बिना टीप लिख कर उसे आगे बढ़ाते जाते हैं। मूल आदेश को पढ़ने की जहमत कोई नहीं उठाता है। डीए वाले मामले में भी यही गफलत हुई है । अगर कोई अधिकारी नोट शीट के साथ केंद्र के मूल आदेश को एक बार ठीक से पढ़ लेता तो शायद इतनी बड़ी गलती नहीं होती।
वित्त मंत्री जयंत मलैया बचकाना जबाव देने की बजाय अब तक किसी की जिम्मेदारी तय करके कार्यवाही कर चुके होते तो शायद प्रशासनिक अमला आगे के लिए ज्यादा सावधान हो जाता। इस मामले ने मंत्रालय की तमाम खामियों की पोल खोल दी है। शायद मुख्यमंत्री इस पर ध्यान देंगे।