संसार, मोक्ष व अध्यात्म को समझा गया खजुराहो का शिल्पी
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। आज देखे गए सपनों को सच मानने की सोच को एक अंधविश्वास मान लिया जाता है जबकि शताब्दियों पूर्व में इन्हीं सपनों के आधार पर कई मंदिरए मस्जिदए गुरुद्वारों का निर्माण किया जा चुका है। जो आज भी किवदंतियों के रूप में स्थापित हैं। कहा तो यह भी जाता है कि खजुराहो का मंदिर का निर्माण भी इन्हीं सपनों को आधार बनाकर कराया गया था। तमाम किवदंतियों पर आधारित खजुराहो की अनूठी शिल्प पर रविंद्र भवन के सभागार में नाटक खजुराहो का शिल्पी नाटक का मंचन कर्मवीर सिंह के निर्देशन में किया गया।
नाटक की कहानी
इस नाटक की कहानी सांसारिक मोह, मोक्ष और अध्यात्म और मोक्ष दोनों पर आधारित है। 1805 की कहानी के अनुसार खजुराहो राज के राजा यशोवर्धन के सपनों में उनके पूर्वजों में शामिल एक महिला आती हैं। जिन्हें देख उन्हें अपनी इंद्रियों पर कंट्रोल नहीं कर पाते। बाद में उन्हें आप पर पछतावा होता है और वह वह अपने स्वप्न की चर्चा दर्शन कवि से करते हैं और इससे मुक्ति का मार्ग पूछते हैं। वहीं राजा जिस शिल्पी को उत्कृष्ट कला बनाने के लिए चुनते हैं उन शिल्पी के गुरू के साथ भी एक ऐसी घटना घटती है कि वह स्वयं 95 वर्ष के होते हुए 16 वर्षीय कन्या से विवाह कर लेते हैं। बाद में शिल्पी गुरू को ग्लानि होती है और वह एक उत्कृष्ट मूर्ति बनाने की कल्पना करते हैं। शिल्पी को ढूंढा जाता है और वह राजा सपने और गुरू की इच्छा के अनुसार खजुराहो को मूर्त रूप देता है। इस शिल्प कला के समय प्रतिदर्श बनी राजा की बेटी को शिल्पी से प्यार हो जाता है, जबकि वह शिल्पी सांसारिकता में नहीं आना चाहता। इस तरह खजुराहो के शिल्पी में दिखाया गया कि खजुराहो के बाहरी शिल्प में सांसारिकता को दिखाया गया है वहीं मध्य में मोक्ष को दिखाया गया है व अन्दर गर्भगृह में अध्यात्म और मोक्ष दोनों को उत्कीर्ण किया गया है।