रेल पटरियां बिछाएगी एमपी सरकार...
सुमन "रमन"
मध्यप्रदेश सरकार अब प्रदेश के दूरदराज वाले इलाकों में रेल नेटवर्क का विस्तार करने का काम भी करेगी। इसके लिए रेल मंत्रालय और मध्यप्रदेश सरकार एक ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनाएंगे। राज्यमंत्री मंडल की बैठक में इस फैसले पर मोहर लगा दी गई। कुछ मंत्रियों के विरोध के बावजूद इस फैसले को हरी झंडी दी गई। केबिनेट की बैठक में उठे विरोध के स्वर और विरोध करने वाले मंत्रियों के सवाल प्रदेश की आम जनता के मन में भी हैं। करोड़ों के बजट और तमाम योजनाओं के बावजूद प्रदेश के पिछड़े इलाकों में जो सरकार सड़क नहीं पहुंचा पाई वह रेल नेटवर्क का विस्तार कैसे कर पाएगी ?
मध्यप्रदेश में सड़कों की स्थिति निश्चित रूप से ठीक हुई है, लेकिन आज भी बहुत सारे इलाकों में सड़कें नहीं बन पाई हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सेवक योजना की तर्ज पर राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री सड़क योजना शुरू की थी। उसके बावजूद तमाम इलाकों में पहुंचने के लिए अभी भी कच्चे रास्तों का उपयोग होता है दूसरी तरफ सड़क निर्माण का बजट इस तरह कई हिस्सों में बंट जाने से उन सड़कों की हालत भी खराब है जिन्हें प्रदेश की मुख्य सड़कें माना जाता है। बजट के अभाव में सड़कों की गुणवत्ता भी ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद भोपाल सहित कई शहरों में अचानक सड़कों पर उतर कर सड़कों के निर्माण और क्वालिटी का जायजा लिया। अधिकांश स्थानों पर उन्हें खामियां ही मिलीं। उन्होंने पीडब्ल्यूडी और अन्य संबंधित विभागों के अफसरों को जमकर फटकार लगाई। ठेकेदारों से काम छीना गया, कई अफसरों पर कार्रवाई हुई लेकिन अभी भी स्थितियां बहुत अच्छी नहीं हैं। इस पर मुख्यमंत्री आए दिन चिन्ता व्यक्त करते रहते हैं। इन संसाधनों के अभाव में सड़कों का काम और रख-रखाव अप-टू-मार्ग का नहीं हो पा रहा है। ऐसे में रेल नेटवर्क विस्तार पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है।
केंद्र सरकार या रेल मंत्रालय की ज्वाइंट वेंचर कंपनी में हिस्सेदारी होगी, लेकिन आधे से ज्यादा रकम राज्य सरकार को लगानी होगी। इसके लिए अतिरिक्त आय का कोई साधन फिलहाल नहीं दिखाई पड़ रहा है। रेल नेटवर्क विस्तार के लिए बनने वाली कंपनी में एमपी सरकार की हिस्सेदारी 51प्रतिशत ही होगी। इससे कंपनी के प्रबंधन में राज्य सरकार की भूमिका पावरफुल होगी लेकिन जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी। सरकार ने इस कंपनी के लिए परिवहन विभाग को अधिकृक किया है। सब जानते हैं परिवहन विभाग में व्याप्त भर्रेशाही के चलते राज्य परिवहन निगम जैसा उपक्रम बन्द हो गया । देश के कई राज्यों में आज भी रोडवेज की बसें चल रही हैं। कई राज्य घाटे के बावजूद इन बसों को नहीं बन्द कर रहे हैं ताकि आम जनता को दूरस्थ इलाकों तक जाने के लिए सस्ता परिवहन साधन सुलभ हो सके, लेकिन मध्यप्रदेश का परिवहन विभाग इसमें नाकाम रहा। अब वही परिवहन विभाग रेल लाइन बिछाने का काम करेगा। इसलिए आम जनता के मन का सवाल है कि जो विभाग सब कुछ होते हुए भी बसें नहीं चला पाया वह विभाग किस तरह रेल लाइनें बिछा कर रेल चलाएगा।
केबिनेट की बैठक में भी यह सवाल उठा कि रेल का काम केंद्र सरकार का है इसमें राज्य क्यों भागीदार बने। वनमंत्री गौरीशंकर शेजवार ने हिम्मत करके यह मुद्दा उठाया तो वरिष्ठ मंत्री उमाशंकर गुप्ता और गोपाल भार्गव ने भी उनका समर्थन किया। सभी का एक ही सवाल था कि केंद्र के इस काम में राज्य अपना पैसा क्यों लगाए। सभी का मानना था कि राज्य का बजट लगभग 1.70 लाख करोड़ पहुंच जाने के बावजूद कई विभागों के बजट में कटौती करनी पड़ी है। तब फिर रेल लाइन बिछाने के लिए या इससे जुड़े अन्य कामों के लिए करोड़ों का बजट कहां से आएगा। मंत्रियों के सवालों का जवाब न मुख्यमंत्री ने दिया न मुख्य सचिव ने दिया। सीएम ने मंत्रियों को यह कह कर चुप करा दिया कि केंद्र के निर्देश हैं, इसलिए इसे मानना ही होगा। मंत्री तो खामोश हो गए लेकिन आम जनता के सवालों का जबाव कौन देगा ?
रेल लाइनों के विस्तार से बेहतर काम सड़कों के नेटवर्क को बढ़ाना है। मध्यप्रदेश से गुजरने वाली राष्ट्रीय़ राजमार्गों की हालत बहुत खस्ता है। ग्वालियर से झांसी जाने वाली हाइवे की हालत हाईकोर्ट के निर्देशों और हेमामालिनी जैसी अभिनेत्रियों की टिप्पणी के बाद भी नहीं सुधरी। आज भी गुना से राजगढ़ तक का सौ किमी. का सफर दुखदाई हो जाता है। दोनों ही रास्ते राष्ट्रीय राजमार्ग के हैं। इसी तरह अन्य राष्ट्रीय राजमार्गों की हालत भी खस्ता है। लेकिन सरकार का ध्यान इस पर नहीं जा रहा है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने वादा किया था कि एक साल के अन्दर सारे नेशनल हाइवे ठीक हो जाएंगे, लेकिन ढाई साल बाद भी स्थिति जस की तस है। इसलिए लोगों का मनना है कि सरकार अगर एनएच के लिए ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनाकर काम करती है तो ज्यादा बेहतर होता। केंद्र के निर्देश पर रेल विस्तार के लिए कंपनी बनाना समझ से परे है।