रामराज्य रथयात्रा : मतदाता का मन टटोलने की कोशिश
सुमन त्रिपाठी
सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए रथ यात्रा निकालने का जो प्रयोग भारतीय जनता पार्टी ने शुरु किया था वह अब राजनीतिक दलों का बड़ा हथियार बनता जा रहा है। देश के लगभग सभी बड़े राजनैतकि दल यात्राओं के माध्यम से मतदाताओं का मन टटोलने की कोशिश करते हैं। भारतीय जनता पार्टी को इस मामले में बड़ा लाभ इसलिए मिल जाता है कि
उसका नैतिक समर्थन करने वाले तमाम संगठन हिन्दूवादी संगठन इस तरह की यात्राओं की शुरुआत कर देते हैं। इस साल कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यात्राओं का टोटका शुरू हो चुका है। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा अयोध्या से शुरू हुई रामरथ यात्रा 41 दिनों में छह राज्यों का सफर तय करेगी।
रामराज्य रथयात्रा की कमान सीधे भाजपा के हाथ में नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों द्वारा निकाली जाने वाली यात्रा हिन्दुत्व विचारधारा वाले वोटों का ध्रुवीकरण करेगी और इसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी करेगी। विहिप की इस यात्रा का समापन 26 मार्च को त्रिवेंद्रपुरम में होगा। इ, दौरान यह यात्रा उत्तर प्रदेश से निकल कर मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ कर्नाटक से गुजरेगी। इन सभी राज्यों में इसी साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यात्रा का समापन तमिलनाडु में होगा जहां भारतीय जनता पार्टी राजनैतकि ध्रुवीकरण की हर संभव कोशिश में लगी है। यात्रा का समय इस तरह से चुना गया है जब इन सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। यात्रा में जिन मुद्दों को जनता के सामने रखने का कार्यक्रम में बह सभी मुद्दे हिन्दू वोटरों को लुभाने की कोशिश वाले माने जाते हैं, इनमें राम मंदिर का निर्माण, स्कूलों में रामायण पाठ्यक्रम में लागू करना, साप्ताहिक अवकाश रविवार के बजाय गुरूवार को करने का कार्यक्रम मुख्य रूप से शामिल हैं। यात्रा के दौरान लगभग 10 लाख लोगों से हस्ताक्षर कराए जाने की भी योजना है। लगभग थह हजार किलोमीटर के सफर में रामराज्य रथ यात्रा उन प्रमुख शहरों से भी निकलेगी जिनका धार्मिक महत्व है।
भारतीय जनता पार्टी स्वाभाविकतौर पर इस बात से इन्कार करेगी कि उसका इस यात्रा से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन यात्रा के शुभारम्भ से लेकर समापन तक जिस तरह भाजपा के नेताओं, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की भागीदारी निश्चित की गई ६गै इससे साफ है कि यात्रा का लाभ अंतत: भाजपा को मिलना है। भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में वोटों के ध्रुवीकरण के लिए हर संभव कोशिश में जुटी है। लेकिन वह फ्रंट फुट पर आने की बजाय अन्य रास्ते अपनाने की कोशिश में है। अपने सहयोगी संगठन द्वारा इस तरह की यात्राएं निकालने के समर्थन करके भाजपा ने इसका संकेत दे दिया है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब भाजपा रथयात्रा के भरोसे सियासी गलियारों में सक्रिय हो रही है। भाजपा के पुरोधा कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने लगभग 28 साल पहले इसी तरह यात्रा निकालकर सियासी लड़ाई का एक नया अंदाज प्रस्तुत किया था उनकी रथयात्रा में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने में बड़ी भूमिका निभाई ती। उनकी इस रामरथ यात्रा को रोककर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपना और भाजपा दोनों का भला कर दिया था। वोटों के ध्रुवीकरण ने हिन्दू वोट भाजपा की झोली में डाल दिए और गैर हिन्दू वोट लालू की पार्टी राजद के खाते में चले गए। भाजपा सत्ता में भले ही न आ पाई लेकिन वोटों के इस ध्रुवीकरण ने उसे पावरफुल कर दिया और देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस हासिए पर चली गई। इसी क्रम में आडवाणी ने 1997 में स्वर्ण जयंती यात्रा तता 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारत उजय यात्रा निकाली। इसी तरह 2011 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के गांव सोे दिल्ली रथयात्रा निकाली। बादजपा के दूसरे दिग्गज ने्रता डॉ. मुरली मनो६बर जोशी ने 1991 में कस्मीर से कन्या कुमारी तक रथयात्रा निकाली। भाजपा के दिग्गज नेता में शुमार कल्याण सिंह ने कलकत्ता से मुंबई तक की यात्रा की। भाजपा के अन्य नेताओं और पार्टी ने एकता यात्रा, किसान यात्रा, न्याय यात्रा, गंगा बचाओ यात्रा, परिवर्तन यात्रा जैसे आयोजन कर चुकी है। इसके अलावा आरएसएस बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद, किसान संघ जैसे संगठनों द्वारा निकाली गई यात्राओं का भी भाजपा ने खुला समर्थन किया और इसका लाभ भी भाजपा को मिला।
एक बार फिर देश में वही माहौल बनने जा रहा है। अयोध्या से शुरू हुई विहिप की रामराज्य रथयात्रा भले ही भाजपा की न हो लेकिन यह माना जा रहा है कि इसका लाभ भाजपा को मिलेग। भाजपा खुले मन से इस यात्रा का समर्थन भी इसलिए कर रही है ताकि मतदाताओं का मन टटोलने का काम राज्यों में विधानसभा चुनाव होने के पहले अपने आप हो जाए। भाजपा शायद मतदाताओं के नब्ज पर सीध हाथ रखने के पहले इस तरह से उनका मन टटोल लेना चाहिए।