यूपी के लिए आरएसएस का हिन्दु एजेंडा
सुमन “रमन”
आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने ये कह कर कि संघ सिर्फ हिन्दुओं की एकता का पक्षधर है इस बात के संकेत दे दिए हैं कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की लाइन क्या होगी। मोहन भागवत ने कोई नई बात नहीं कही है क्योंकि ये सभी जानते हैं और अकाट्य सत्य है कि आरएसएस कट्टरपंथी हिन्दु समिति है जो हिन्दुओं, हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र की बात करता है। इस सार्वभौमिक सच के बावजूद आरएसएस सुप्रीमों ने जब कोलकत्ता में मकर संक्रांति रैली में हिन्दुत्व का मुद्दा उठाया तब राजनीति की थोड़ी भी समझ रखने वालों को यह समझने में देर नहीं लगी कि मोहन भागवत बंगाली हिन्दुओं के बहाने उत्तर प्रदेश के हिन्दू वोटरों को टारगेट कर रहे हैं।
बीते लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 में से 73 लोकसभा सीट जीत कर भाजपा ने जो शुभ शुरुआत की थी शायद संघ उसे विधानसभा चुनाव में सत्ता में बदलते देखना चाहता है। यह तय है कि 14 साल से उत्तर प्रदेश की सत्ता से दूर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में यह करिश्मा हिन्दुत्व और मोदित्व के दम पर किया था। भाजपा और आरएसएस दलों को शायद लग रहा है कि नोटबंदी जैसे फैसले देश के सबसे बड़े राज्य में मोदी का जादू कम कर सकते हैं। इसलिए मोदित्व की चमक फीकी होने से घटने वाले वोट बैंक की भरपाई हिन्दुत्व के दम पर ही हो पाएगी। भाजपा ये काम खुद सीधे तौर पर नहीं कर सकती है इसलिए उसका पितृ संगठन होने के नाते आरएसएस यह भूमिका निभाएगा।
उत्तर प्रदेश में पूरी सियासत जाति समीकरणों पर टिकी है। राज्य में लगभग इक्कीस फीसदी सवर्ण मतदाता हैं। यही वोट बैंक सत्ता के सिंहासन तक भाजपा जैसी पार्टिंयों को पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाता है। इ, वोट बैंक में लगभग पचास फीसदी ब्राम्हण, ठाकुर और वैश्य वोट बैंक हैं जो भाजपा के प्रति हमेशा से वफादार रहता है। संघ हिन्दुत्व के मुद्दे को हवा देकर इस वोट बैंक को जकड़े रखना चाहता है साथ ही अन्य परंपरागत वोटों मं सेंध लगा कर उन्हें हिन्दुत्व वोट बैंक की ओर मोड़ने की कोशिश में जुटा है। आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि फिलहाल हिन्दुत्व का जयकारा उत्तर प्रदेश में जाकर लगाने पर आदर्श आचार संहिता आड़े आ सकती है। इसलिए मोहन भागवत पश्चिम बंगाल में जाकर हिन्दुत्व की बात कर रहे हैं। ऐसा शायद इसलिए भी हो रहा है कि ममता बनर्जी लगातार मोदी सरकार के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं। संघ को शायद लग रहा है कि कहीं मोदी विरोध के चलते ममता बनर्जी अखिलेश या मायावती के साथ न खड़ी हो जाएं इसलिए संघ हिन्दुत्व की दम पर बंगाल में हलचल मचाए रखना चाहता है ताकि बांग्लादेशी मुस्लिम शरणार्थियों का मुद्दा गर्माता रहे जो कि ममता बनर्जी का वोट बैंक माना जाता है। ममता बनर्जी अभी तक सिर्फ इसी मुद्दे पर बंगाल में विरोध के स्वर सुनती हैं अगर इस मुद्दे को हवा दी जाती रही तब हिन्दु बनाव अन्य का मामला गर्माएगा और ममता बनर्जी के लिए प्रशासनिक मुश्किल पैदा करेगा।
मोहन भागवत भले ही इसे सामान्य बात कहें लेकिन सियासी गलियारों में ये माना जा रहा है कि इस बहाने संघ प्रमुख सियासत की नई चाल बीजेपी को समझाना चाहते हैं। उनका इशारा समझ में आ रहा है कि उत्तर प्रदेश में हिन्दुत्व की बात की जाए लेकिन किसी का विरोध न झलकने पाए। उन्होंने जिस तरह से जोर देकर कहा कि संघ किसी का विरोधी नहीं है वो सिर्फ हिनदुं की एकता का पक्षधर है उससे साफ लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ मुस्लिमों को छोड़ कर बाकी का जो बड़ा वोट बैंक है उसमें सेंध लग जाए। उत्तर प्रदेश में दलितों और पिछड़ों का बहुत बड़ा वोट बैंक है जो बसपा और सपा में बंटा हुआ है। जब भी हिन्दू और मुस्लिम वोट थोड़ा सा भी भाजपा और कांग्रेस से टूट कर इन दलों की ओर चले जाते हैं उसी पार्टी की सरकार यूपी में बन जाती है। इस बार संघ शायद यही कोशिश कर रहा है कि इक्कीस फीसदी सवर्ण वोट बैंक भाजपा के पाले में बना रहे और हिन्दुत्व की दम पर कुछ वट बैंक अन्य से टूट र भाजपा की तरफ आ जाएं अगर ये आंकड़ा तीस फीसदी तक पहुंच जाता है तो भाजपा उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए कम्फर्ट जोन में आ जाएगी।
यहां यह बात और साफ दिखाई दे रही है बीजेपी खुद पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर भरोसा कर रही है, इसलिए इस वर्ग के काशी प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जबकि भाजपा जैसी स्थिति में ही खड़ी कांग्रेस ने शीला दीक्षित जैसी ब्राम्हण नेता को आगे कर दिया है इसलिए भाजपा रीता बहुगुणा जैसी बड़ी ब्राम्हण नेता को कांग्रेस से तोड़ लेने के बाद भी दांव ओबीसी नेताओं पर लगा रही है। अब मोहन भागवत की बात सुन कर लग रहा है कि यूपी की सियासत की पटकथा संघ और बीजेपी मिल कर पहले ही लिख चुके हैं। इसी के तहत संघ हिन्दुत्व बात करेगा और हिन्दुओं को इकट्ठा करेगा। वहीं भाजपा हिन्दुत्व की बजाए दलितों और पिछड़ों की बात करेगी ताकि सरकार बनाने के लिए तीस फीसदी वोट के जादुई आंकड़े को छुआ जा सके।
अभी तो संघ न सिर्फ हिन्दुत्व की बात की है लेकिन इस बात की आशंका अब बढ़ गई है कि संघ उन तमाम मुद्दों पर जा सकता है जो उत्तर प्रदेश में सिर्फ सवर्ण नहीं बल्कि हिन्दु वोट बैंक को एक कर सकता है। संघ को उम्मीद है कि अगर उत्तर प्रदेश में हिन्दुत्व का जयकारा ठीक से लग गया तो भाजपा को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता। राजनीतिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में जिन छप्पन फीसदी वोटों की दम पर भाजपा ने उत्तर प्रदेश की अधिकांश सीटें हथिया लीं वो उस वोट बैंक का मोदी के प्रति लगाव कम तो हुआ है लेकिन खत्म नहीं हुआ है। हिन्दुत्व की बात करने से एक वर्ग विशेष का झुकाव भाजपा की ओर बढेगा और हिन्दुत्व जैसे विषयों की चर्चा गर्माने से नोटबंदी जैसे फैसलों की चर्चा थोड़ी धीमी पड़ेगी। संघ प्रमुख का ये सियासी गणित ही पश्चिम बंगाल में हिन्दु और हिन्दुत्व की बात करता है। भाजपा अपने पितृ संगठन आरएसएस का ये सियासी गणित बहुत ठीक से समझ रही है। इसलिए वह उत्तर प्रदेश में बहुत सधे हुए कदमों से चलते हुए अपने पत्ते खोल रही है। अब इस गणित को उत्तर प्रदेश की सत्ता पाने को बेकरार बाकी दल इतना खुद समझ पाते हैं और कितना अपने मतदाताओं को समझा पाते हैं इसी पर उत्तर प्रदेश की सियासत का भविष्य टिका होगा। इसी से विधानसभा चुनावों में हार-जीत का फैसला भी होगा।