यशोधरा की तल्खी में पुराना फसाद
रजत
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अटेर विधानसभा के उपचुनाव में अंग्रेजों के मित्र सिंधिया का जुमला क्या उछाल दिया, म.प्र. की सियासत में बवाल मच गया। मुख्यमंत्री के आरोपों के बाद राजनीतिक ध्रुवीकरण तय था। बीजेपी के लोगों को सीएम के समर्थन में खड़े होना था और कांग्रेस के लोगों को सिंधिया के समर्थन में आगे आना था। बवाल मचने के बाद हुआ भी यही। लेकिन पें फंस गया यशोधरा राजे को लेकर। यशोधरा को निश्चित रूप से मुख्यमंत्री और पार्टि के बजाय परिवार और खानदान के साथ खड़े होना था। यशोधरा राजे सिंधिया ने यही किया भी इस बहाने मुद्दा बना लिया। व्यथित यशोधरा ने जिस तल्खी के साथ राजमाता सिंधिया द्वारा भाजपा को पालन पोषण की बातें सार्वजनिक की है उससे साफ जाहिर है कि वह अटेर में मुख्यमंत्री के बयान से ज्यादा किसी और मुद्दे पर नाराज हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने बयान के बाद उपजे विवाद को ठीक करने की कोशिश करते नजर आए। उन्होंने बाद की सभाओं में राजमाता जी की जमकर तारीफ की। इस सब का असर भी दिखाई पड़ने लगा। सिंधिया राजवंश के वर्तमान उत्तराधिकारी ज्योतिरादित्य ने इस मुद्दे पर बहुत करारा जबाव बीजेपी या शिवराज को नहीं दिया। उन्होंने इसका सियासी फायदा उठाने की कवायद जरूर शुरू कर दी। ज्योतिरादित्य ने इसके बाद एक तरह से अटेर में ही डेरा डाल दिया, उन्होंने क्षेत्र के दलितों के घर जाकर खाना बनाने और साथ में खाने का जो काम शुरू5 किया उसमें इस चुनाव प्रचार में काफी माइलेज दे दिया। शिवराज के बयान पर पलटवार करने की बजाय यह रास्ता ज्योतिरादित्य और कांग्रेस दोनों को ज्यादा ठीक लगा। सिंधिया परिवार की एक और सदस्या राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी इस मुद्दे पर खामोशी ओढ़ ली। दतिया स्थित पीताम्बरा माई के मंदिर पहुंची वसुंधरा राजे ने शिवराज के बयान से उपजे विवाद पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। सिंधिया परिवार से भी ताल्लुक रखने वाली शिवराज सरकार में मंत्री माया सिंह ने भी इस मुद्दे पर सार्वजनिक तौर से कुछ नहीं कहा। इन खामोशियों के बीच यशोधरा राजे की प्रतिक्रियाएं और बयान यह साबित करते हैं कि उनकी नाराजगी किसी और मुद्दे पर है।
भारतीय जनता पार्टी ने यशोधरा राजे को न सिर्फ विधानसभा का चुनाव लड़वाया बल्कि उन्हें सरकार में पावरफुल मंत्री भी बनाया। उद्योग एवं व्यापार जैसा बड़ा मंत्रालय यशोधरा राजे के पास रहने से नौकरशाही थोड़ा असहज महसूस करने लगी। यह बातें मुख्यमंत्री तक अन्य तरीकों से लाई गईं और अंततः मुख्यमंत्री ने केबिनेट के विस्तार में यशोधरा राजे से उद्योग विभाग छीन लिया। इसके पीछे राजनैतिक कारण भले ही कुछ भी रहे हों, लेकिन प्रशासनिक कारण एक ही रहा है कि मुख्यमंत्री उद्योग विभाग के कामकाज में सीधी दखलंदाजी चाहते हैं। यशोधरा राजे को यह पसंद नहीं आ रहा था कि उनके काम में मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप बहुत ज्यादा हो। उनका मंत्रालय छीन कर उनका राजनैतिक कद कम करने की जो कोशिश की गई वह साफ समझ में यशोधरा राजे मुख्यमंत्री या पार्टी नेतृत्व पर पलटवार करने की स्थिति में नहीं थीं इसलिए उन्होंने अपनी नाराजगी ब्यूरोक्रेसी पर उतारी। केबिनेट विस्तार के बाद केबिनेट की बैठक में यशोधरा ने पूरी तल्खी के साथ आरोप लगाया था कि एक आईएस अफसर ने उनका विभाग बदलवा दिया। सत्ता के गलियारों में उस आईएस अफसर की तूती बोलती है। इसलिए यशोधरा के आरोपों के बाद जमकर बवाल मचा। मुख्यमंत्री इन सब चीजों से खुश नहीं थे, इसलिए यशोधरा राजे को लेकर वैचारिक मतभेद और बढ़ते गए। साथ ही यशोधरा राजे की नाराजगी भी बढ़ती गई। उनकी वह नाराजगी अब खुलकर सामने आ रही है।
यशोधरा राजे जिस तरह से भाजपा के विकास में राजमाता के योगदान को अब प्रचारित कर रही हैं उससे उनकी व्यथा झलक रही है। पार्टी नेतृत्व सीधे तौर पर यशोधरा को जवाब देने के बजाय राजमाता का महिमामंडल करने की रणनीति पर काम कर रहा है। इसके चलते इस लड़ाई में यशोधरा अलग-थलग पड़ती नजर आ रही हैं। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भाजला अपने ऊपर आरोप मढ़वा कर पूरा नहीं होने देगी।