मप्र विधानसभा में उपाध्यक्ष के लिए हो सकता है शक्ति परीक्षण
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 26 फरवरी। मध्यप्रदेश विधानसभा में अध्यक्ष का चुनाव भले ही निर्विरोध हो गया लेकिन उपाध्यक्ष के चुनाव में शक्ति परीक्षण होने की संभावना बढ़ती जा रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष पद पाने के लिए चुनाव मैदान में उतरने का मूड बना रही है। इसलिए कांग्रेस ने परंपरा की दुहाई देकर गेंद सत्तारूढ़ दल भाजपा के खाते में डाल दी है। हालांकि सत्तारूढ़ भाजपा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को देने के मूड में नहीं दिखाई दे रही है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष का पद सत्तारूढ़ दल को मिलने के बाद उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को देने की परंपरा रही है। जब 1990 में भाजपा की सरकार बनी और बृजमोहन मिश्र विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए, तब उपाध्यक्ष का पद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्रीनिवास तिवारी को दिया गया। उसके बाद 1993 में दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार बनी तब श्रीनिवास तिवारी विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए। तब उपाध्यक्ष का पद भारतीय जनता पार्टी के खाते में गया। ईश्वरदास रोहाणी उपाध्यक्ष के पद पर नवाजे गए। सत्ता बदली और 2003 में एक बार फिर भाजपा सरकार में आ गई। अध्यक्ष पद पर ईश्वरदास रोहाणी चुने गए लेकिन उपाध्यक्ष का पद कांग्रेस के खाते में गया। लगातार 10 साल तक ईश्वरदास रोहाणी अध्यक्ष बने रहे और उपाध्यक्ष पद कांग्रेस की ओर से हजारी लाल रघुवंशी और हरवंश सिंह को मिला। बाद में रोहाणी का निधन होने के बाद फिर भाजपा सरकार में आई तो सीताशरण शर्मा स्पीकर चुने गए। एक बार फिर उपाध्यक्ष का पद राजेंद्र सिंह के रूप में कांग्रेस के खाते में गया। इसके बाद कांग्रेस 2018 में सत्तारूढ़ हुई तो इस परंपरा का पालन करने की कोशिश की गई। लेकिन कांग्रेस के साथ मुकाबले में खड़ी भाजपा ने स्पीकर का चुनाव करवा दिया। भाजपा ने पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए कांग्रेस के स्पीकर पद के प्रत्याशी एनपी प्रजापति के खिलाफ विजय शाह को मैदान में उतार दिया। हालांकि कांग्रेस के पास साथियों के बहुमत के चलते अध्यक्ष एनपी प्रजापति बन गए। इससे नाराज कांग्रेस ने पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए उपाध्यक्ष पद विपक्ष को नहीं देने का एलान कर दिया। इसके चलते उपाध्यक्ष का भी चुनाव हुआ और भाजपा प्रत्याशी जगदीश देवड़ा को दरकिनार कर कांग्रेस की प्रत्याशी हिना कावरे को उपाध्यक्ष बना दिया गया। डेढ़ साल में ही बाजी पलट गई और फिर भाजपा सत्ता में है। करीब 1 साल बाद अब जब फुल टाइम स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चयन होने जा रहा है तो पुरानी परंपराओं को लेकर फिर कवायद शुरू हो गई है। कांग्रेस ने स्पीकर का चुनाव निरोध होने देने का ऐलान करके उपाध्यक्ष पद विपक्षी खाते में जाने की रणनीति बनाई लेकिन भाजपा इससे सहमत नहीं है। उसने पुरानी कहानी का हवाला देते हुए उपाध्यक्ष पद भी अपने पास रखने का एलान कर दिया है। संसदीय कार्य मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा इस पर तर्क देते हैं की तब कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं था इसलिए भाजपा ने स्पीकर का चुनाव लड़ा लड़ा था लेकिन आज भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है। पुरानी परंपरा कांग्रेस ने तोड़ी इसलिए उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिए जाने का भाजपा पालन नहीं करेगी। इसके चलते कांग्रेस अपनी रणनीति बना रही है और वह उपाध्यक्ष के चुनाव में शक्ति परीक्षण के लिए तैयारी कर रही है