मप्र महिला आयोग में बढ़ता जा रहा है लंबित प्रकरणों का ग्राफ

Aug 27, 2019

सुमन त्रिपाठी

भोपाल, 27 अगस्त। परेशान महिलाओं के न्याय दिलाने के लिए गठित मप्र राज्य महिला आयोग लाखों रुपए सालाना खर्च होने के बाद भी शो पीस बन कर रहा गया है। पुराने आयोग का कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद करीब सात महीने से आयोग अस्तित्व में नहीं है। इसके चलते आयोग में नए केस दर्ज होने के अलावा कुछ नहीं हो पा रहा है। इस समय आयोग में लगभग साढ़े आठ हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं। आए दिन दर्ज होने वाले नए मामले इसमें जुड़कर लंबित प्रकरणों के ग्राफ को ऊंचा करते जा रहे हैं। लंबित मामलों के ग्राफ से ही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। महिलाएं आयोग के चक्कर लगाकर परेशान हैं, लेकिन फैसला नहीं हो पा रहा है और न इसकी कोई अभी उम्मीद ही नजर आ रही है। फैसलों की कछुआ चाल परेशान महिलाओं को न्याय देने की बजाए उन्हें और मानसिक प्रताड़ना दे रही है।

मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग महिलाओं का कल्याण नहीं कर पा रहा है। पहले कोरम के अभाव में मामलों का निराकण धीमी गति से हुआ। इसके बाद आयोग की पदाधिकारियों की राजनीतिक व्यस्तताओं ने मामलों की सुनवाई और फैसलों पर ब्रेक लगा दिए। अब इसी साल जनवरी से पुराने आयोग का समापन और नए आयोग के गठन की प्रतीक्षा ने महिलाओं के न्याय मिलने की उम्मीदों पर सवालिया निशान लगा दिया है। आयोग में जहां इस साल जनवरी माह तक 4 हजार से 5 हजार तक पेंडिंग केस थे तो वहीं हर माह 200 से 300 नए प्रकरण आने से इनकी संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इस साल 31 मार्च तक 7274 प्रकरण शेष थे तो वहीं अप्रैल माह में 290 नए प्रकरण के दर्ज होने से इनकी संख्या बढ़कर 7564 हो गई। इसी तरह मई माह में 228 नए प्रकरणों के दर्ज होने से यह संख्या बढ़कर 7792 हो गई। जून माह में 371 नए प्रकरणों के दर्ज होने से इनकी संख्या बढ़कर 8163 हो गई और जुलाई माह में 341 नए प्रकरण दर्ज होने के कारण 9504 प्रकरण संख्या दर्ज की गई । अगस्त माह में दर्ज प्रकरणों को अभी जोड़ा नहीं जा सका है, उनके जुड़ने के बाद यह ग्राफ और बढ़ जाएगा।

आयोग के कार्यालय के अधिकारी-कर्मचारी रोज बढ़ने वाले प्रकरणों को सहेजने में परेशानी महसूस कर रहे हैं। पहले से ही इतने प्रकरणों की फाइलें पड़ी हैं जिनका निपटारा होते नहीं दिख रहा है। हर माह 100 से 300 आने वाले नए प्रकरणों की फाइलें और बढ़ती जा रही हैं। वहीं दूसरी ओर अपने-अपने प्रकरण के निपटारे के लिए आने वाली महिलाएं भी खासी परेशान हो चुकी हैं। फिर भी वह रोज नई आशा के साथ आफिस के चक्कर लगा रही हैं। आयोग के दफ्तर में चक्कर लगाती इन महिलाओं में कई अपने केस की स्थिति पता करने आती हैं, तो कई अपने मामले में संबंधित पक्षों को नोटिस दिलवाने का प्रयास करती हैं। कई महिलाएं यह पता करने आती हैं कि आयोग में फुल बेंच की सुनवाई कब होगी। आयोग के दफ्तर के चक्कर लगाने वाली अधिकांश महिलाएं कमजोर तबके से होती हैं। उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती है कि आयोग में क्या चल रहा है। तमाम उम्मीदें लेकर महिलाएं आयोग के दफ्तर आती हैं लेकिन न्याय की इस देहरी पर उनकी उम्मीदें दम तोड़ देती हैं। अभी भी इस बात का आश्वासन देने वाला कोई नहीं है कि आयोग में लंबित प्रकरणों में महिलाओं का न्याय कब तक मिल पाएगा। न्याय की यह धीमी गति न सिर्फ उम्मीदें तोड़ रही है बल्कि संवैधानिक संस्थाओं के प्रति भरोसा भी कम कर रही है। आयोग के सदस्य सचिव 18 जनवरी 2019 को आयोग का कार्यकाल समाप्त होने की सूचना सरकार को दे चुके हैं। लेकिन लगभग 7-8 माह बीत जाने के बाद भी नई सरकार आयोग के गठन के बारे में कोई फैसला नहीं ले पाई है।