मनी लांड्रिंग मामले में धर्म संकट में फंस रही है शिवराज सिंह सरकार

Dec 23, 2020

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 23 दिसंबर। मनी लांड्रिंग मामला मध्यप्रदेश सरकार के लिए गले की फांस बनता नजर आ रहा है। भाजपा संगठन की इस मामले में कड़ी का‍र्रवाई की मांग के बावजूद सांसत में है। सरकार के लिए बड़ी चुनौती उन मंत्रियों, विधायकों, नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करना है जो अब कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा के हो चुके हैं। विशेषकर मंत्री बनने की कोशिश में जुटे सिंधिया समर्थकों को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। कांग्रेस इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश में जुटी है। ऐसे में सरकार को कहना पड़ रहा है कि कानून के अनुसार काम होगा।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री डा नरोत्तम मिश्रा के इन बयानों से साफ झलक रहा है कि मनी लांड्रिंग मामले में सरकार धर्म संकट में फंस गई है। इस मामले ने ठिठुरन भरी सर्दियों के बीच प्रदेश की सियासी हलचल में गर्माहट पैदा कर दी है। सीबीडीटी की लिस्ट में उन तमाम नेताओँ के नाम हैं जो अब कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं। शिवराज कैबिनेट में मंत्री बिसाहूलाल सिंह की तो पांच लाख रु पाने की पावती भी सीबीडीटी के दस्तावेजों में शामिल है। एक अन्य मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव का नाम भी लिस्ट में शामिल हैं। कई विधायकों के नाम मनी लांड्रिंग की सूची में शामिल हैं। मंत्री बनने के प्रबल दावेदार गोविंद सिंह राजपूत के प्रभार वाले परिवहन विभाग का नाम धन देने वालों में शामिल हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठ रहा है कि इस मामले से जुड़े सभी लोगों पर कार्रवाई का दावा कर रही सरकार क्या भाजपा में शामिल लोगों के मामले में भी इसी तरह मुखर होगी। वहीं इस मामले को अपने नेताओं की छवि खराब करने की कोशिश बता रही कांग्रेस फ्रंट फुट पर आ गई है। कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके ओएसडी नीरज वशिष्ठ को भी इस मामले में लपेट दिया है। कांग्रेस चाह रही है कि मामले की जांच 2013 से कराई जाए तथा बिना किसी हिचक के सबकी कराई जाए।

सीबीडीटी की रिपोर्ट में अधिकारियों के साथ नेताओँ और प्रतिष्ठित लोगों के नाम शामिल हैं। इसलिए यह माना जा रहा है कि जांच के दायरे में सभी आएंगे। ऐसे में भाजपा सरकार उन लोगों को अलग नहीं कर सकती है जो अब कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ हैं। कार्रवाई होगी तो सभी के खिलाफ एक जैसी होगी। सरकार के सामने उलझन और धर्म संकट साफ साफ समझ में आ रहा है। तभी तो सरकार ने चुनाव आयोग के निर्देश के बाद भी मामला पहले विधि विभाग को भेजा है। विधि विभाग रास्ता निकालेगा कि कैसे एक्शन लिया जाए। इसलिए सरकार अभी दावे के साथ सिर्फ यही कह रही है कि सारे तथ्य जलद् सामने आएंगे। चुनाव आयोग ने इस मामले में उस गठजोड़ की बात की है जो धन बल के प्रभाव से चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश में था। इसलिए सरकार को एक्शन लेते समय तेरा-मेरा के विचार से अलग होकर फैसला करना होगा। अगर रिपोर्ट में शामिल एक भी नाम पर कार्रवाई होगी तो लपेटे में सभी आएंगे। अगर एक को भी बचाने की कोशिश की गई तो सरकार को चुनाव आयोग विपक्ष तो छोड़िए अपने ही संगठन को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।