भोपाल निर्भया कांड: मानवीयता, रिश्ते, कानून सभी शर्मसार

Nov 11, 2017

सुख का दाता सब का साथी शुभ का यह संदेश है, मां की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है। मध्यप्रदेश के राज्य गान का यह मुखड़ा प्रदेश की प्रतिष्ठा की झलक कुछ शब्दों में ही बयां कर देता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश ही नहीं बल्कि देश और विदेश में भी इस प्रतिष्ठा का गुणगान करते नहीं थकते हैं। लेकिन उन्हीं की पुलिस के कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों की बेशर्मी भरी कार्यप्रणाली ने पूरी प्रतिष्ठा को पल भर में धूमिल कर दिया।

भोपाल के निर्भया कांड को लेकर देश भर में मध्यप्रदेश की जितनी बदनामी घटना को लेकर हुई, उससे कहीं ज्यादा थू-थू घटना के बाद पुलिस की कार्यशैली को लेकर हो रही है। चार-चार दरिंदगों की हैवानियत का शिकार हुई बच्ची अपने परिवार के साथ एक थाने से दूसरे थाने भटकती रही, लेकिन थाने की सीमा जैसे कुर्तकों की दम पर पुलिस उसकी रिपोर्ट लिखने से इंकार करती रही है। उसके साथ हुई अनहोनी सच में अकल्पनीय है, लेकिन यह उससे भी ज्यादा अकल्पनीय है कि कोई पुलिस आफीसर 20 साल की बच्ची की रोंगटे खड़ी कर देने वाली दास्तां सुनकर उसे फिल्मी कहानी करार दे देगा। इसलिए देश भर में घटना से ज्यादा उसके बाद की कार्यप्रणाली को शर्मनाक माना जा रहा है। यह खबर मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद भी सरकार तब सक्रिय हुई जब मुख्यमंत्री खुद एक्शन में आए। मुख्यमंत्री ने बैठक बुलाई और डीजीपी तक को आड़े हाथों लिया तब पुलिस  महकमे के अलंबरदार सक्रिय हुए।

आनन फानन में तीनों थानों के टीआई तथा दो सब इंस्पेक्टर को निलंबित  कर दिया गया और एक सीएसपी को मुख्यालय अटैच कर दिया गया। लेकिन अभी तक किसी भी पुलिस कर्मी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। जबकि देश के कानून में साफ प्रावधान है कि ऐसे मामलों में लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होना चाहिए। भारतीय संविधान की धारा 166 ग में साफ कहा गया है कि दुष्कृत्य और उस जैसे अन्य अपराधों के मामले में सूचना मिलने के बाद भी मामला दर्ज न करने वाले लोकसेवक के खिलाफ प्रकरण दर्ज होना चाहिए। इसमें ऐसे लोक सेवकों के खिलाफ 6 माह से 2 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। उन्हें सजा तब होगी जब कोर्ट में केस चलेगा और केस तब चलेगा जब उन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी। लेकिन पुलिस की गलती मानने वाले बड़े अधिकारी अब भी पता नहीं किस बात का इंतजार कर रहे हैं।

इस पूरी घटना ने मनावीयता, रिश्तों और कानून सभी को शर्मसार कर दिया है। मनवीयता इसलिए शर्मसार हुई कि प्रदेश की उस राजधानी में दरिंदो ने ऐसी हरकत कर डाली जहां लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस पचासों तरह के चोचले करती है। तमाम अमला तैनात रहता है, करोड़ों का बजट खर्च होता है तथा स्मार्ट पुलिसिंग के दावे किए जाते हैं। बची खुची मानवीयता को पुलिस महकमे की बेशर्मी ने कुचल दिया। रिश्ते इसलिए तार तार हुए हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश की बेटियों का मामा होने का दम भरते हैं। उनकी शिक्षा और सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों का दावा करते हैं। जब दरिंदे उस मासूम को तार तार कर रहे थे, तब भी मुख्यमंत्री लाल परेड मैदान के भव्य मंच से यही सब ऐलान कर रहे थे। सरकार राज्य के स्थापना दिवस कार्यक्रम में व्यस्त थी, शायद इसीलिए गृहमंत्री सहित कई प्रमुख लोगों को घटना की जानकारी उसी दिन मिल जाने के बाद भी रिपोर्ट दर्ज होने में चौबीस घंटे लग गए। मामा और भांजी के रिश्तों को दरिंदों के साथ पुलिस ने भी तार तार कर दिया। इसके लिए वे लोग भी जिम्मेदार हैं जिन्हें घटना के बाद सारी जानकारी मिल गई थी। लेकिन उन्होंने यह जानने की जहमत नहीं उठाई की दरिंदों का शिकार हुई मासूम किस हाल में है। कानून इसलिए शर्मसार हुआ कि उसके रखवालों ने बच्ची के साथ दरिंदों से ज्यादा दरिंदगी कर डाली। दरिंदों ने तो नशे की हालात में ऐसा किया लेकिन कानून के रखवालों ने तो होशोहवास में यह सब किया। मामला सिर्फ उसकी रिपोर्ट नहीं लिखने तक का नहीं, बल्कि उसके बाद का भी है। कानून का एक रखवाला बच्ची की दास्तां सुनकर उसे फिल्मी कहानी बता रहा है, तो कानून की एक अन्य रखवाली हंस कर कह रही है कि घटना के बारे में बात बात करते करते उनका सिर दर्द करने लगा है। बच्ची के साथ मारपीट के बारे में मीडिया द्वारा पूछे जाने पर हल्के अंदाज में कह रही है कि अब रेप होगा तो यह सब होगा ही। इतना होने के बावजूद कानून के इन रखवालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे कानून का शर्मसार होने स्वाभाविक है।

शर्मसार करने वाले मुद्दे कम नहीं हो रहे हैं। पुलिस ने  वाहवाही लूटने के चक्कर में एक ऐसे व्यक्ति को आरोपी बनाकर सलाखों के पीछे पटक दिया, जिसका इस घटना से कोई लेना देना नहीं था। उस पर थाने में थर्ड डिग्री के दम पर गुनाह कबूलने का दबाव बनाया गया। भला हो कि पीड़िता ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया, अन्यथा पुलिस उसे अदालत तक को ले ही जाती। चार आरोपियों में से एक मुख्य आरोपी को तो पीड़िता और उसके परिवार वालों ने ही दबोच कर पुलिस को सौंपा था। उसके बाद पुलिस ने जो किया वह सबके सामने है। पुलिस अभी भी इस मामले को लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मामले को लेकर गठित विशेष जांच दल यानि एसआईटी का प्रभारी एक टीआई को बनाया गया है और पहले से इसकी जांच कर रहे डीआईजी अब सिर्फ मानीटरिंग करेंगे। अब इस सवाल का जवाब पुलिस के अफसर ही दे सकते हैं कि टीआई रैंक का अधिकारी सीएसपी, एडीशनल एसपी अथवा एसपी आदि से इस बारे में कैसे पूछताछ कर पाएगा।  

इस घटना ने सरकार की जमकर छीछालेदर की है। सरकार के तमाम दावों को धज्जियां बिखेर दी हैं। इसके बाद भी सरकार बहुत ज्यादा गंभीर नजर नहीं आ रही है। मुख्यमंत्री को छोड़कर अन्य कोई भी इस हादसे को लेकर दुखी नहीं लग रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई उच्च स्तरीय बैठक में न तो गृह मंत्री थे और न ही गृह विभाग के प्रशासनिक मुखिया एसीएस होम थे। अभी तक गृह मंत्री और डीजीपी तथा अन्य आला अफसरों के बीच कोई बैठक ही नहीं हुई। पार्टी के किसी दमदार नेता के भोपाल आने पर सारा काम छोड़कर भोपाल पहुंचने में सक्रिय रहने वाले मंत्री और नेताओं के पास भोपाल पहुंचकर पीड़िता के घर जाकर ढांढस बंधाने का वक्त नहीं है। अब शायद शहर और प्रदेश के लोगों को ही आगे आकर उस पीड़ित मासूम की भलाई के लिए दुआ करते हुए, भले ही मन में कहें, लेकिन कहना होगा कि बेटी हम शर्मिंदा हैं। हमारा हर अंग तो शर्मसार है। हमारी हर व्यवस्था तो शर्मसार है। इसलिए हम भी शर्मसार हैं।