परंरावादी प्रदेश में उल्टा न पड़ जाए कांग्रेस का "शीला' दांव
सुमन
हिंदुस्तान की सत्ता का रास्ता कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश की सियासत में हासिए पर जा चुकी कांग्रेस ने सत्ता में भागीदारी की छटपटाहट में बहुत बड़ा दांव खेल दिया है। कांग्रेस ने 78 साल की शीला दीक्षित को सीएम कैंडीडेट घोषित कर दिया है, ताकि 11 फीसदी ब्राह्मण वोटों की दम पर कोई करिश्मा हो सके। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के आधार स्तंभ कहे जाने वाले ब्राह्मण परिवार की बहू शीला दीक्षित का लंबे अर्से से उत्तरप्रदेश से नाता टूटा हुआ है, ऐसे में बहू होने का पुराना नाता जोड़कर कभी उन्नाव सीट से कांग्रेस का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाली शीला दीक्षित कांग्रेस के इस भरोसे पर कितना सफल हो पाएंगी, इस पर राजनीतिक विश्लेषक भी अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं।
कांग्रेस मान रही है कि 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित उत्तरप्रदेश में कोई बड़ा कमाल कर सकती हैं। यह फैसला संभवतः उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस द्वारा ठेके पर लिए गए कंसलटेंट प्रशांत कुमार की सलाह पर लिया गया है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का वोट बैंक रहा दलित, पिछड़ा और मुस्लिम वोट बैंक अब सपा और बसपा की झोली में है। ऐसे में 11 फीसदी ब्राह्मण वोटों का भरोसा जीतने की कांग्रेस की इस कोशिश की सफलता ही कांग्रेस का भविष्य भी तय करेगी। सवाल उठ रहा है कि दिल्ली राज्य की सत्ता पर काबिज रहने के लिए शीला दीक्षित ने अपने मूलतः पंजाबी होने का जो दम भरा था, कहीं अब वह ब्राह्ण बहू के दावे को कमजोर न कर दे। उत्तरप्रदेश बहुत परंपरावादी है, विशेषकर यहां का ब्राह्मण और ठाकुर ज्यादा ही परंपरावादी है। इसलिए पंजाबी बेटी शीला दीक्षित को ब्राह्मण बहू के रूप में वह कितना स्वीकार कर पाएगा, यह दावा नहीं किया जा सकता है। शीला दीक्षित जब उन्नाव से लोकसभा के लिए चुनी गई थी, तब और अब की कांग्रेस और जातीय वोटों के मिजाज में बहुत अंतर आ गया है। कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश में पार्टी नेतृत्व की कमान भी पंजाबी समाज से आने वाले अभिनेता से नेता बने राजबब्बर को सौंपी है। कांग्रेस के विरोधी अगर कांग्रेस पर पंजाबीवाद बढ़ाने का आरोप लगाने में सफल हो गए तो कांग्रेस का शीला दांव उल्टा भी पड़ सकता है।
उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के पास प्रमोद तिवारी जैसे दिग्गज ब्राह्मण नेता तथा संजय सिंह जैसे दिग्गज ठाकुर नेता हैं। दोनों को पार्टी ने चुनाव अभियान से जोड़ा है लेकिन पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और सीएम कैंडीडेट दूसरों को बनाए जाने से यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ये दोनों नेता पूरे मन से पार्टी का काम कर शीला दीक्षित को सीएम बनवाने के लिए प्रयास करेंगे। उत्तर प्रदेश में अभी भाजपा ने अपने पत्ते पूरी तरह से नहीं खोले हैं। भाजपा की रणनीति सामने आने के बाद ही इस बड़े राज्य में सियासत की कहानी आगे बढ़ने का रोड मैप समझ में आएगा। लेकिन यह तो माना जा सकता है कि जातीय राजनीति का गढ़ बन चुके इस प्रदेश में कोई भी सियासी कदम कभी भी लड़खड़ा सकता है। पंजाबियों की दम पर ब्राह्मण वोटों को लुभाने का दांव भी ऐसा ही माना जा रहा है।