निकाय चुनाव में बीजेपी के लिए वार्निंग अलार्म
खरी खरी संवाददाता
मध्यप्रदेश में बहुप्रतीक्षित नगरीय निकाय के चुनाव परिणामों ने प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है....और 14 साल से सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस की बांछे खिल गई हैं। इन चुनावों में भाजपा पूरी ताकत झोंकने के बाद भी कांग्रेस के बराबर निकाय चुनावों पर कब्जा कर पाई है। उसके पार्षदों की कुल संख्या भले ही ज्यादा है लेकिन 6 नगरपालिकओं में से 4 में पराजय का सामना भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।
मध्यप्रदेश में कुल 19 निकाय के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों को नौ- नौ निकायों में सत्तारूढ़ होने का मौका मिला है और एक निकाय पर निर्दलीय का कब्जा हुआ है। पहली नजर में भले ही मुकाबला बराबरी का लग रहा है, लेकिन हकीकत में भाजपा को भारी नुकसान हुआ है। उन्नीस नगरीय निकायों में 6 नगर पालिकाएं भी शामिल हैं। भाजपा को इनमें से सिर्फ 2 जगह पीथमपुर तथा सेंधवा में ही जीत मिली है। शेष 4 नगरपालिकाओं में कांग्रेस का हाथ भारी पड़ गया। कांग्रेस न सिर्फ अपने कब्जे वाली राघौगढ़ नगर पालिका फिर जीतने में कामयाब रही बल्कि उसने मनावर, बड़वानी, धार नगर पालिकाएं बीजेपी से छीनने में सफल रही है। यह स्थिति तब है जब कांग्रेस की ओर से कोई दिग्गज नेता चुनाव मैदान में नहीं उतरा। यहां तक कि अपने गृह नगर राघौगढ़ में दिग्विजय सिंह तक प्रचार करने नहीं जा पाए क्योंकि अपनी नर्मदा यात्रा में व्यस्त हैं। वहीं भाजपा की ओर पूरी ताकत झोंक दी गई। यहां तक कि पार्टी के स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी इन क्षेत्रों में प्रचार, सभाओं और रोड शो कराए गए। इसीलिए भाजपा कांग्रेस के बराबरी के कब्जे के बाद भी इसे भाजपा के लिए वार्निंग अलाम माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि सिर्फ 10 महीने बाद विधानसभा चुनाव का सामना करने जा रही सत्तारूढ़ पार्टी को इन परिणामों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
भाजपा के रणनीतिकारों ने शुरू से इन चुनावों को काफी गंभीरता से लिया था। इसलिए प्रत्याशी घोषित करने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा। पार्टी के स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित अन्य दिग्गज नेताओं के चुनावी दौरे बनाए गए और उन पर अमल हुआ। मुख्यमंत्री के रोड शो के चलते कई जगह विवाद की स्थिति भी बनी। वहीं कांग्रेस इस मुकाबले में अपने बिखरे हुए अंदाज में ही उतरी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और अजय सिंह के अलावा और कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार में दिखाई नहीं दिया। इसके बावजूद कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया। यह बात अलग है कि अरुण यादव के क्षेत्र निमाड़ में पार्टी को खास सफलता नहीं मिल पाई। इससे भी इस बात का संकेत जाता है कि जनता को कांग्रेस या उसके प्रयासों से कोई मतलब नहीं है, वह भाजपा से अपनी नाराजगी को व्यक्त कर रही है। अब भाजपा के रणनीतिकार बागियों के कारण परिणाम बिगड़ने की बात कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस मान रही है कि उसे अभी शहरों क्षेत्रों में और अच्छा करना है।
देश के जाने माने जनकवि अदम गोंडवी ने कहा है कि तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है.. तुम्हारे आंकड़े झूठे हैं...तुम्हारा वादा किताबी है.. आज के परिणामों के बाद मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा पर यह भली भांति सही साबित हो रहा है। सरकार के विकास के तमाम दावों और मुख्यमंत्री तथा अन्य नेताओं द्वारा गांवों की गलियों की खाक छानने के बाद भी जो परिणाम आएं हैं, वे बड़े खतरे की ओऱ इशारा कर रहे हैं। शायद भाजपा अब सत्ते के नशे से बाहर आकर हकीकत को पहचान ले, अन्यथा प्रदेश की जनता तो कोऊ नृप होय हमें का हानी .. के मूड में दिखाई दे रही है।