नाटक का मंचन: स्वर्ण मृग बोधिसत्व ने बचाई गर्भवती हिरणी की जान
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। संस्कृति संचालनालय मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से कीर्ति बैले एवं परफार्मिंग आर्टस द्वारा कलागुरू स्व. शांति बर्द्धन सांस्कृतिक उत्सव ‘कलामनीषी-2019’ का तीन दिवसीय कार्यक्रम 9 सितम्बर व 11 एवं 12 सितम्बर को शहीद भवन के सभागार में किया जा रहा है। जिसमें 9 सितम्बर को बैले नृत्य नाटिका में स्वर्णमृग, 11 सितम्बर को ‘आल्हा’ (नैनागढ़ की लड़ाई) व 12 सितम्बर को ‘अशोक’ का प्रदर्शन किया जाएगा। कार्यक्रम के पहले दिन आज सोमवार को नृत्य नाटिका स्वर्ण मृग का प्रर्दशन किया गया। रुरू जातक कथा पर आधारित इस बैले नृत्य नाटिका में उड़ीसा का मयूरभंज छऊ व बंगाल का रायवंशी डांस फार्म और क्रिएटिविटी का उपयोग किया गया। इसके लेखक योगेश त्रिपाठी थे व मारस लाजरस ने संगीतबद्ध किया और निर्देशन तथा कोरियोग्राफी चंद्र माधव बारीक की थी।
नाटक की कहानी-
नृत्य नाटिका की कथा के अनुसार वाराणसी में राजा ब्रह्मदत्त के राज के समय अस्सी करोड़ी नाम का एक सेठ अपने लाड़ले पुत्र महाधनिक को बिना कुछ सिखाए मर गया। महाधनिक बस गाना, नाचना और खाना-पीना ही जानता था। परिणाम यह हुआ कि वह अय्याश हो गया। ऋण नहीं चुका सकने पर साहूकारों ने उससे तकादा शुरू कर दिया। एक दिन उसने साहूकारों से कहा कि वे सभी अपने ऋणपत्रों को लेकर गंगा किनारे आ जाएं। वहां पर उसका खानदानी धन गड़ा है, उसमें से वह ऋण चुका देगा। साहूकारों के पहुंचने पर महाधनिक काफी देर तक उन्हें यह बताता रहा कि धन यहां गड़ा, वहां गड़ा है, और अचानक उसने गंगा जी में छलांग लगा दी। महाधनिक कुछ देर तो गंगा जी में तैरता रहा, लेकिन डूबने पर डर के मारे बचाने की गुहार लगाने लगा। उस समय बोधिसत्व वहां स्वर्ण मृग के रूप में घास चर रहे थे। चिल्लाने की आवाज सुनकर गंगा में कूद सेठ को अपनी पीठ पर बिठाकर किनारे ले आए। महाधनिक से उसने वायदा लिया कि वह किसी को उसके बारे में नहीं बताएगा। महाधनिक ने प्राणों की रक्षा करने वाले को दिया गया वचन निभाया।
इधर राजा ब्रह्मदत्त की एक पटरानी ने अचानक जिद पकड़ ली कि उसने सपने में एक सुंदर स्वर्णमृग देखा है। राजा उसे मंगवाए और उससे उसको उपदेश सुनवाए। राजा ने मुनादी करवा दी कि जो भी मृग का पता बताएगा, उसे सोने से मालामाल कर दिया जाएगा। महाधनिक सेठ ने मुनादी सुन लालच में मृग का पता बता दिया। राजा ने कई दिनों तक वन में उसे तलाशा परंतु वह नहीं मिला। राजा ने सभी हिरणों को एक बाड़े में बंद करा दिया। उनमें से वह रोज एक-दो हिरणों को मार कर ले जाता। अनेक हिरण भागदौड़ में घायल होकर मरने लगे। तब स्वर्णमृग ने राजा के लिए हिरणों की बारी लगवाने की व्यवस्था कराई। एक दिन एक गर्भवती हिरणी की बारी आई तो उसने गुहार लगा दी कि वह अभी नहीं मरना चाहती। तब स्वर्णमृग ने उसके स्थान पर मरने के लिए स्वयं को प्रस्तुत किया। यह देखकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। इसके बाद पटरानी खेमा आग्रहपूर्वक स्वर्ण मृग को अपने महल ले जाती हैं और उपदेश सुनती है।
आल्हा गायकी व मंच सज्जा रही खास-
इस नाटक में कहानी को अच्छे से समझाने के लिए कई जगह आल्हा गायकी व डायलॉग का प्रयोग बहुत ही खूबसूरती से किया गया। वहीं मंच सज्जा में राजमहल व ढाल, तलवार और धनुष, बलि वेदी को बनाने में थर्मोकोल का उपयोग किया गया तो नदी दिखाने के लिए एक बड़े से सिन्थेटिक कपड़े का प्रयोग किया गया। हिरणों के लिए हेड गेयर व जंगल दिखाने के लिए चटाई पर पेड़ों की पेंटिंक कर उस पर डंडों को सिला गया जिन्हें दोनों छोर से पकड़ कर रखा गया था।
मंच पर-
इस नृत्य नाटिका में पाश्व के रूप में पुरुष सूत्रधार के गेटअप में योगेश तिवारी, महिला सूत्रधार के गेटअप में आकांक्षा ओझा, स्वर्ण मृग बने मॉरिश लाजरस, राजा- स्कंद मिश्रा, रानी - शालिनी मालवीय, महाधनिक- अनिमेष श्रीवास्तव, सेठानी- मनीषा हुराईया, हिरणी- रितु सबरवाल प्रमुख थे। इनके अलावा महाजन -1 बने विकास जोठे, महाजन 2- हेमसागर राठौर, महाजन 3- अंकुर राव सूर्यवंशी, सिपाही- रमेश अहीरे, डुग्गीवाला सिद्धार्थ बारिक, नर्तकी- सुमन कोठारी व कोरस में नंदिनी चौरसिया, यामिनी चक्रपाणि, हितेश दुबे के अलावा अन्य कलाकार दर्शकों को अंतिम दृश्य तक बांधे रखने में सफल रहे।