नाटक का मंचन: सच बोलकर जिंदा नहीं रह पाता है चरणदास चोर
खरी खरी संवाददाता
हजार छूठ बोलने से ज्यादा बेहतर एक सच होता है। यह लगभग हम सभी को बचपन में ही सिखा दिया जाता है यही नहीं इसे अपने जीवन में उतार कर वैसा व्यवहार हम करते हैं। लेकिन कभी-कभी सच बोलना बेहद कष्टदायक भी साबित हो जाता है, इस बात को बताते हुए रविंद्र भवन के सभागार में तीन दिवसीय नाट्योत्सव-2019 के अंतिम दिन हबीब तनवीर द्वारा पूर्व निर्देशित नाटक ‘चरणदास चोर’ का मंचन किया गया। हिंदुस्तान के कालजयी रंगकर्मी स्वर्गीय हबीब तनबीर के इतिहास बन गए नाटकों में शामिल ‘चरणदास चोर’ का मंचन आज भी दर्शकों को बांध लेता है। इसीलिए छत्तीसगढ़ी के संवादों और लोकसंगीत से सजे नाटक चरणदास चोर के प्रदर्शन में दर्शक भरपूर होते हैं। हबीब जी द्वारा स्थापित संस्था नया थियेटर चरणदास चोर का प्रदर्शन आज भी पारंपरिक अंदाज में ही कर रही है। इसकी मूल कहानी राजस्थानी लोककथाओं के लेखक विजयदान देथा की है।
नाटक की कहानी--
इस नाटक की कहानी एक चोर के इर्द गिर्द घूमती है जिसका नाम चरणदास है। एक बार चोरी करके भाग रहा चरणदास पुलिस से बचने के लिए एक साधू के आश्रम में पहुंच जाता है और गिरफ्तार होने से बच जाता है। साधू उससे चोरी छोड़ने का कहते हैं तो वह यह कहकर मना कर देता है कि यह तो उसका धंधा है। इस पर महत्मा जी उससे चार वचन लेते हैं। पहला कि वह कभी सोने चांदी के बर्तन में नहीं खाएगा, दूसरा वह अपने सम्मान में हाथी पर बैठकर कभी जूलूस में शामिल नहीं होगा, तीसरा वह कभी किसी राज कुमारी से विवाह का प्रस्ताव नहीं मानेगा और चौथा कभी किसी राज्य का राजा नहीं बनेगा। चरणदास को लगता है कि उसकी जिंदगी में ऐसे अवसर कभी नहीं आने वाले हैं, इसलिए वह महात्मा जी को वचन दे देता है। महात्मा जी उससे कभी झूठ नहीं बोलने का वादा भी करवा लेते हैं। चरणदास अपने साथी बुद्धू धोबी के साथ अपने चोरी के काम में लग जाता है। वह संपन्न लोगों के यहां चोरी करता है तो मौका पड़ने पर गरीबों को बांट भी देता है। एक दिन वह राजमहल में घुसकर पांच स्वर्ण मुद्राएं चुरा लेता है। इस चोरी के बाद वह पकड़ा जाता है और राजदरबार में पेशी होती है। वह महात्मा जी को झूठ नहीं बोलने का वचन दे चुका था, इसलिए चोरी कबूल लेता है। राजकोष से दस स्वर्ण मुद्राएं गायब हुई थीं। पड़ताल में पता चलता है कि पांच स्वर्ण मुद्राएं राजकोष के कर्मचारी ने चुराई थीं। कर्मचारी को चोरी के आरोप में सजा हो जाती है, लेकिन चरणदास के सच से प्रभावित होकर रानी द्वारा उसे छोड़ दिया जाता है और उसे बुलाकर सोने के बर्तनों में भोजन करवाती हैं। अपने वचन के कारण इनमें भोजन करने से चरणदास इंकार कर देता है। रानी उसके सम्मान में उसे हाथी पर बैठाकर जुलूस निकालने का कहती हैं तो वह इससे भी इंकार कर देता है। रानी उससे अपने प्यार का इजहार करते हुए विवाह करने और राजा बनने का प्रस्ताव रखती हंै, चरणदास इससे भी इंकार कर देता है। इससे गुस्सा होकर रानी उसे सजाए मौत सुनाती हंै। इस पर सिपाही उसे मौत की नींद सुला देते हैं। चरणदास यह बताता है कि सच के साथ जिंदा रहना कितना मुश्किल है।
मंच पर-
इस नाटक में अभिनय करने वालों में चरणदास चोर के गेटअप में अश्वनी मिश्रा, हवलदार-धन्नूलाल सिन्हा, गुरुजी-मनहरण गंर्धव, शराबी-मुन्नालाल गंर्धव, राहुल जाधव, गंजेड़ी-शिवम गुप्ता मुख्य थे। इनके अलावा जुआड़ी बने अभिषेक विश्वकर्मा, सत्तूवाला- अमर सिंह, मालगुजार-लक्ष्मण गंर्धव, नौकर-मन्नालाल, राहुल, पुजारी-मन्नालाल, मंत्री-शिवम गुप्ता, सिपाही-राहुल, अभिषेक, आबिद, रामचंद्र, अंकुर, रानी-पारुल सिंह, दासी-संगीता सिन्हा, पुरोहित-रामचंद्र सिंह, योगेश तिवारी भी दर्शकों को बांधे रखने में सफल रहे। नाटक में संगीत में वाद्ययंत्र पर साथ देने वालों में तबला पर लक्ष्मण गंर्धव, हारमोनियम ुपर अमरसिंह व मंजीरा पर मनहरन मुख्य थे। कोरस गीत में संगीता, पारुल, मनहरन, अमर सिंह आदि ने साथ दिया।