नक्सलियों से लड़ने स्थानीय युवाओं की बटालियन बनाएगी सीआरपीएफ
सीआरपीएफ़के अधिकारियों का मानना है कि खान-पान, बोली-बानी और इलाके की ठीक-ठीकभौगोलिक जानकारी हो तो किसी भी तरह के ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाना आसानहोता है। अफसरों को उम्मीद है कि इस नई बटालियन से छत्तीसगढ़ और विशेष कर बस्तर में माओवादियों सेलड़ने में फोर्स को मदद मिलेगी। इससे पहले पूर्वोत्तर में भी 90 के दशकमें इस तरह की नागा बटालियन बनाई गई थी, लेकिन माओवाद प्रभावित किसी इलाकेमें बटालियन बनाने का काम पहली बार हो रहा है।
इस ‘बस्तरिया बटालियन’ में छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बस्तर के चारज़िलों के युवाओं की ही भर्ती की जाएगी। इस भर्ती प्रक्रिया में सीआरपीएफ़में भर्ती की तयशुदा क़द-काठी में छूट भी दी जाएगी। भर्ती के बाद इसबटालियन को अगले पांच साल तक छत्तीसगढ़ में ही तैनात किया जाएगा। सीआरपीएफके अफ़सरों का कहना है कि जो नौजवान माओवादियों के दबाव में आ जाते थे, वेअब सीआरपीएफ़ की तरफ़ आएंगे और इससे रोजगार भी मिलेगा।
लेकिन सरकारके इस निर्णय पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल काकहना है कि 2005 में छत्तीसगढ़ सरकार के संरक्षण में शुरु हुए सलवा जुड़ूमके खिलाफ पीयूसीएल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए उसेभयावह बताकर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। लेकिन राज्य सरकार ने उन्हीं सलवा जुड़ूम में शामिल आदिवासियों को 'सहायक आरक्षक बनाकर उन्हें युद्ध में झोंक दिया। पीयूसीएलकी छत्तीसगढ़ इकाई का आरोप है कि सीआरपीएफ अबउसे स्थानीय संदर्भ देकर दोहराने जा रही है। सीआरपीएफ़ हमेशा राज्य सरकारकी पुलिस और एसपीओ का इस्तेमाल चारे के रूप में करती रही है। ऑपरेशन के समयउन्हें भाषा और रास्ते के नाम पर आगे भेजकर उनकी जान जोख़िम में डाला जाताहै। पीयूसीएल इस फैसले के खिलाफ खड़ी होगी।