डोनाल्ड ट्रंप की नरेंद्र मोदी से दोस्ती भारत के लिए फायदेमंद होगी
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 6 नवंबर। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियां भले ही अमेरिका फर्स्ट के सिद्धांत पर केंद्रित हों लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी व्यक्तिगत घनिष्ठता और आतंकवाद के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता भारत के लिए फायदेमंद होगी। सुपर पावर अमेरिका के राष्ट्रपति और मजबूत इकानामिक पावर भारत के प्रधानमंत्री के बीच भले ही नीतियां बाधक बनें लेकिन दुनिया ने 2017 से 2021 की अविध में डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच जो बांडिंग देखी है, उससे सबको भरोसा है कि बहुत से काम अब आगे बढ़ेंगे।
अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति के रूप में 2017 से 2021 तक काम कर चुके डोनाल्ड ट्रंप के साथ कई मोर्चों पर डील करने का अनुभव भारत की नरेंद्र मोदी सरकार के पास है। अब 47वें राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल और नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में वही अनुभव बहुत काम आएगा। नरेंद्र मोदी को ट्रंप कई बार अपना दोस्त बता चुके हैं लेकिन इसके साथ ही भारत की नीतियों पर हमला भी बोलते रहे हैं। इस चुनाव में ट्रंप कई बार पीएम मोदी का नाम ले चुके हैं। सवाल यह भी है कि इस बार फिर ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद इसका भारत पर क्या असर होगा। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण देने की नीति अपनाई थी। उन्होंने चीन और भारत समेत कई देशों के आयात पर भारी टैरिफ़ लगाया था। मिसाल के तौर पर भारत से अमेरिकी हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर टैरिफ हटाने या घटाने को कहा था। ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया है और वो अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं के आयात पर ज़्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं। भारत भी इसके घेरे में आ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नज़र रखने वाले पत्रकार शशांक ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है, ''ट्रंप की नज़र में भारत कारोबारी नियमों का बहुत ज्यादा उल्लंघन करता है, वो अमेरिकी चीज़ों पर भारत का बहुत ज़्यादा टैरिफ लगाना पसंद नहीं करते। ट्रंप चाहते हैं कि उनके देश से आयात होने वाली चीजों पर 20 फीसदी तक ही टैरिफ लगे। वो लिखते हैं, ''कुछ अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगर ट्रंप के टैरिफ नियम लागू हुए तो साल 2028 तक भारत की जीडीपी में 0.1 फ़ीसदी तक की गिरावट आ सकती है। भारत और अमेरिका के बीच 200 अरब डॉलर का कारोबार होता है। अगर ट्रंप ने टैरिफ़ की दरें ज़्यादा बढ़ाईं तो भारत को काफ़ी नुक़सान हो सकता है। ट्रंप की कारोबारी नीतियों से भारत का आयात महंगा हो सकता है। ये महंगाई दर को बढ़ाएगा और इसे ब्याज दरों में ज्यादा कटौती नहीं हो पाएगी। इससे ख़ास कर मध्य वर्ग के उपभोक्ताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि उनकी ईएमआई बढ़ सकती हैं। इसके बावजूद भारत को कई मोर्चों पर च्रंप सरकार से फायदा होगा। डोनाल्ड ट्रंप चीन के कट्टर विरोधी माने जाते हैं। उनके पहले कार्यकाल में अमेरिका और चीन के रिश्ते काफी ख़राब हो गए थे।
यह स्थिति भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंधों को और मज़बूत करेगी। अपने पहले कार्यकाल के दौरान वो क्वाड को मज़बूती देने के लिए काफ़ी सक्रिय दिखे थे। क्वाड एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान का गठजोड़ है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के साथ हथियारों के निर्यात, संयुक्त सैन्य अभ्यास और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में दोनों देशों के बीच ज़्यादा अच्छा तालमेल दिख सकता है। ये चीन और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत की स्थिति ज़्यादा मज़बूत कर सकता है। अमेरिकी थिंक टैंक 'रैंड कॉर्पोरेशन' में इंडो पैसिफिक के एनालिस्ट डेरिक यासमैनव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ''ट्रंप के जीतने से भारत और अमेरिका की मौजूदा रणनीति जारी रहेगी। इसमें ज़्यादा मूल्यों को बात नहीं होगी। कुल मिलाकर ट्रंप राष्ट्रपति के बनने से इस मामले में भारत फ़ायदे में रहेगा। 'शशांक मट्टू लिखते हैं, ''ट्रंप ने पिछली बार राष्ट्रपति रहते हुए भारत के साथ बड़े रक्षा समझौते किए थे। उन्होंंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अच्छे संबंध बनाए और चीन के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाया।'' ट्रंप ने भारत में मानवाधिकार के रिकॉर्ड पर अब तक कुछ नहीं कहा है। ये भारत की मोदी सरकार के लिए अनुकूल स्थिति है.
कश्मीर में पुलवामा अटैक के दौरान भी ट्रंप ने भारत के 'आत्मरक्षा के अधिकार' का समर्थन किया था। जबकि बाइडन प्रशासन मानवाधिकार और लोकतंत्र के सवाल पर भारत के ख़िलाफ़ ज्यादा मुखर रहा है। यह भी साफ़ नहीं है कि वो चीन की ख़िलाफ़ ताइवान का बचाव करेंगे या नहीं। इस तरह के रुख़ से एशिया में अमेरिका का गठबंधन कमज़ोर होगा। इससे चीन की स्थिति मज़बूत होगी, जो भारत के पक्ष में नहीं है।'' ''उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का भी प्रस्ताव दिया था, जो भारत को पसंद नहीं आया था। उन्होंने तालिबान से समझौता कर अफ़गानिस्तान से अमेरिकी फौजों को बुला लिया। अमेरिका का ये दांव दक्षिण एशिया में भारत के हितों के ख़िलाफ़ था।''
बांग्लादेश के सवाल पर ट्रंप ने खुलकर भारत का साथ दिया है। ट्रंप ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का सवाल उठाया था। हाल ही में उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और दूसरे अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा था, ''मैं बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और दूसरे अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा और भीड़ की लूट की कड़ी निंदा करता हूं. इस समय बांग्लादेश में पूरी तरह अराजकता की स्थिति है.'' ट्रंप ने लिखा, ''अगर मैं राष्ट्रपति होता तो ऐसा कभी नहीं होता. कमला और जो बाइडन ने पूरी दुनिया और अमेरिका में हिंदुओं की अनदेखी की है. इसराइल से लेकर यूक्रेन तक उनकी नीति भयावह रही है. लेकिन हम अमेरिका को एक बार फिर मजबूत बनाएंगे और शांति लाएंगे.'' उन्होंने आगे लिखा, ''हम रेडिकल लेफ्ट के धर्म विरोधी एजेंडे से हिंदू अमेरिकी को बचाएंगे. अपने शासन में मैं भारत और दोस्त नरेंद्र मोदी के साथ संबंधों को और मज़बूत करूंगा.''