जिंदगी की हकीकत बताता नाटक: न चीनी कम न नमक ज्यादा,

Aug 31, 2019

खरी खरी संवाददाता 

भोपाल। आना भी अकेला और जाना भी अकेला, इससे दूर रहने के लिए इंसान ने खूब उपाय किए। समाज बनाया, रीति-रिवाज बनाए, नियम बनाया,  कानून बनाए और वह इसलिए कि सभ्य और सुसंस्कृत रूप से जी सकें। मगर फिर भी अकेलेपन से निजात नहीं पा सका क्योंकि वह इसकी जड़ में अपने मूल स्वभाव व्यवहार को कभी समझ ही नहीं पाया। इसका एक कारण अहम, अहंकार या मैं को मान सकते हैं। अहंकार न होने पर ही हमें सही मायने में प्रेम करीब लाता है। उसके अभाव में लोगों से घिरे रहने के बावजूद भी मनुष्य तन्हा ही रहता है। अनगिनत संबंधों की डोर से जुड़ा होने पर भी जो सिरा रह जाता है वह अकेलेपन का ही रहता है। सही मायनों में आज का नाटक मनोवैज्ञानिक आधार पर बुना गया। समांतर नाट्य संस्था द्वारा अकेलेपन की इन्हीं भावनाओं से रचा, गुंथा नाटक न चीनी कम… न नमक ज्यादा का मंचन शहीद भवन के सभागार में अनिमेश श्रीवास्तव के निर्देशन में किया गया। यह नाटक मूल रूप से बांग्ला के लेखक मोहित चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित गनर्धाराजेर हाथताली पर आधारित था जिसका हिन्दी अनुवाद समर सेनगुप्ता द्वारा किया गया।

नाटक की कहानी .. नाटक की कहानी के अनुसार मीरा नाम की युवती अपने परिवार के लिए पूरा समय देती है। यानि वह पूरे घर का खर्चा उठाती है। सब की देखभाल करती है। लेकिन उम्रदराज होने की अवस्था में वह अकेली रह गई। वह और उसकी काम वाली बाई बस। लेकिन अल्हड़ अवस्था में लिया सपना आज भी जिन्दा है कि कोई ऐसा हो जो उसे सचमुच में निश्चछल प्यार करने वाला हो। एक दिन स्कूल से आती है अपनी बाई से चाय मांगती है और रजनी गंधा गाना सुनते हुए नींद लग जाती है। दूसरे खूबसूरत दृश्यों में दिखाया जाता है कि तभी उसका पड़ोसी अरुण आता है और उसे उठाते हुए कहता है कि आपका एक पत्र जो 20 साल पूर्व के परिचित किसी मुरली मनोहर ने लिखा, मेरे पास आया था, मैंने बिना इजाजत के खोल लिया। उसने लिखा है कि हम बाजार में मिले थे आपके हाथ में रजनीगंधा फूलों का गुच्छा था। वह इसी शहर में है, उसने किसी तरह आपके बारे में पता कर लिया कि अभी भी आप अकेली हैं और वह भी अकेला ही है वह आज भी आपको चाहता है। यदि आप उससे मिलना चाहती है तब गैलरी में रजनीगंधा फूलों का एक गुच्छा रख दें। ऐसा करने पर एक व्यक्ति खड़ा दिखता है। उसे बुला मीरा को लगता है कि यह मुरलीमनोहर नहीं है। वह युवक अपना नाम हरिशंकर बताता है और कहता है कि आप मुरलीमनोहर ही मानें। तभी सुबह उठने पर मीरा को मालूम पड़ता है कि एक दूसरा व्यक्ति भी रात में आया था जो मुरली मनोहर था और ट्रेन के लेट होने के कारण वह स्टेशन पर ही सो गया था। अंतत: तीनों अरुण, हरिशंकर और मुरली मनोहर मिलते हैं और मीरा से अपने-अपने प्यार का दावा कर झगड़ने लगते हैं। मीरा इन तीनों को ही भगा देती है। तभी मीरा की बाई उसे खाना खाने के लिए उठाती है। मीरा पूछती है कि वह तीनों कहां गए, वह रजनीगंधा के फूलों का गुच्छा कहां गया, सब कैसे गायब हो गए। बाई बताती है कि यहां कोई नहीं आया, कोई फूल नहीं थे और नाटक का पटाक्षेप होता है। दरअसल यह नाटक दूसरे दृश्यों से ही सपनों के बीच की कहानी पर चलता है। अंत तक दर्शकों को भी इस बात का एहसास नहीं होता। मंच सज्जा नाटक के अनुरूप जंच रही थी।

मंच पर... इस नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार मात्र छह थे जिन्होंने पूरे समय दर्शकों को खूबसूरत पलों को जीते हुए रुकने को विवश कर दिया। वह कलाकार यह रहे-- मीरा के गेटअप में आस्था जोशी, सोनू बने सोनू चौहान, अरुण बने सतीश मलासिया, हरिशंकर बने सौरभ लोधी, मुरली मनोहर बने पीयूष पांडा व कुली बने आशुतोष मिश्रा।