जिंदगी की हकीकत को बयां करता नाटक बेहतर हैै मौत
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। परिवार में जब किसी को कोई बड़ी बीमारी हो जाती है तब लगभग पूरा परिवार ही उस परेशानी में सफर करता है। कभी यह मजबूरी में होता है तो कभी भावनाओं के अभाव में भी ऐसा होता है। ऐसी स्थिति किसी गरीब या मध्यमवर्गीय परिवार में ही नहीं अच्छे-अच्छे पूंजीपतियों के घरों में देखने को मिल जाती है। वैसे भी कहते हैं कि परेशानी में तो इंसान का साया भी साथ छोड़ देता है। समाज में फैले इसी तरह के कुछ भावनाशून्य स्थितियों की कहानी कहता नाटक ‘बेहतर है मौत’ का मंचन प्रभाकर द्विवेदी के निर्देशन में किया गया। इस नाटक का मंचन मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में हर सप्ताह होने वाले नवीन रंगप्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला ‘अभिनयन’ में किया गया।
मध्यमवर्गीय परिवार पर आधारित इस नाटक के अनुसार परिवार का मुखिया नरेंद्र मोहन को कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी हो जाती है, जिसके कारण पूरा परिवार कई तरह की परेशानियों से घिर जाता है। चूंकि कमाने वाला भी नरेंद्र मोहन ही होता है, जिस कारण इस बीमारी के महंगे इलाज के कारण परिवार दिन-व-दिन आर्थिक परेशानियों से घिरता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ कैंसर से ग्रसित नरेंद्र मोहन असहनीय तकलीफ के कारण पल-पल मौत की दुआ करता है। धीरे-धीरे परिवार के सदस्य तमाम स्थितियों में सफर करने के कारण साथ छोड़ते चले जाते हैं। ऐसी स्थितियों में नरेंद्र मोहन की छोटी बेटी मर्सी किलिंग के लिए कोर्ट में अपील दायर करती है, लेकिन वह अपील खारिज हो जाती है। नाटक का अंत दर्शकों के सामने कई प्रश्न पैदा करता है, जैसे कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी से ग्रसित इंसान के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उसकी पीड़ा को कम करने के क्या विकल्प ढूंढे जाने चाहिए? क्या मर्सी किलिंग करना सही है? इन प्रश्नों के ही साथ नाटक बेहतर है मौत का अंत होता है। इस नाटक में जीवन के संघर्षों और मृत्यु के सौन्दर्य को बड़ी ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया। इस नाटक में दूसरों से किस तरह हमें व्यव्हार करना चाहिए, यह प्रेरणा इस नाट्य प्रस्तुति में बेहद खूबसूरती से दिखाई गई है। नाटक में नरेंद्र मोहन का किरदार निभाने वाले अपने अभिनय कौशल से दर्शकों को भावविभोप कर दिया।
इस नाटक में अभिनय करने वालों में सत्यम आरख, रेणुका बारमइया, गौरव दीवारी, आर.एम मिश्रा, प्रतीक शर्मा, साक्षी शुक्ला, हर्ष अग्रहरी, अभिषेक आनंद, नीलेश तिवारी, विकास जाठे, अमित राठौर, राहुल राठौर, हेमराज राठौर, नितीश शाह और कारन राय आदि प्रमुख थे।