चार सौ कर्मचारियों की नौकरी छीनी जाएगी, बंद होगी जन अभियान परिषद
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 19 मई। शिवराज सरकार की कई योजनाओं और कार्यक्रमों को बंद करने के नए सरकार के फैसले का शिकार अब सरकारी एनजीओ की तरह काम कर रही संस्था जन अभियान परिषद होने जा रही है। सरकार ने इसे आरएसएस और भाजपा के लोगों को उपकृत करने का सरकारी मंच मानते हुए इसे समाप्त करने का मन बना लिया है। परिषद के संचालक मंडल की 25 सितंबर को प्रस्तावित पूर्ण बैठक में परिषद के खात्मे पर मोहर लग जाएगी। इसे लेकर सियासत जारी है लेकिन सबसे ज्यादा परेशान छह सौ से ज्यादा वे कर्मचारी अधिकारी हैं जो परिषद में नौकरी कर रहे हैं। इनमें से करीब चार सौ परिषद के स्थायी कर्मचारी हैं। उनके सामने बड़ा सवाल है कि उनके परिवारों का पालन कैसे होगा।
कमलनाथ सरकार ने सत्ता संभालने के बाद से ही शिवराज सरकार की कई योजनाओं और कार्यक्रमों को बंद करना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में जन अभियान परिषद को समाप्त करने का फैसला हो गया है। इसे अमली जामा पहनाने के लिए 25 सितंबर को गवर्निंग बाडी की बैठक बुलाई गई है। राज्य सरकार के योजना आर्थिकी एवं सांख्यकीय विभाग के इस उपक्रम के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं। शासन तथा समुदायों के बीच सेतु की भूमिका निभाने के उद्देश्य से परिषद का गठन दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में 1997 में हुआ था, लेकिन इसे अमली जामा 2007 में शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में पहनाया गया और लाखों के बजट के साथ इसे कई काम दिए गए। शिवराज सिंह के आखिरी कार्यकाल में नर्मदा यात्रा और नर्मदा किनारे वृक्षरोपण जैसे कार्यक्रमों को लेकर संस्था बहुत चर्चा में आई। प्रदेश में नई सरकार आने के बाद परिषद निशाने पर आ गई। परिषद के अध्यक्ष की हैसियत से मुख्यमंत्री ने इसके कामकाज की समीक्षा किए जाने तक इसके कामों पर रोक लगाने के आदेश दे दिए। समीक्षा के बाद परिषद को अनुपयोगी मानकर इसे बंद करने का फैसला हो गया। सरकार का मानना है कि पूर्ववर्ती सरकार ने इसे भाजपा और आरएसएस के लोगों को उपकृत करने का मंच बना लिया था। पूर्ववर्ती सरकार इस फैसले से सहमत नहीं है। उसका मानना है कि नई सरकार को सोते में भी आरएसएस दिखाई देता है। पूर्व मंत्री डा नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि सरकार बहानेबाजी करके इतने कर्मचारियों की रोजी रोटी छीनने के बजाए, उन्हें काम देना चाहिए। बाढ़ जैसी विभीषिका में परिषद के लोग जनहित के बेहतर काम कर सकते हैं।पिछले सरकार में परिषद का संचालन करने वाले जिम्मेदारों को भी परिषद बंद किए जाने के फैसले से गुरेज है। उनका मानना है कि सरकार रोजगार के नए अवसर सृजन करने के बजाए रोजगार से लगे उन लोगों के पेट पर लात मार रही है जो सरकार की ओर से समाज सेवा का काम कर रहे हैं। परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष राघवेद्र गौतम सरकार के इस फैसले को वे बदले की भावना से उठाया गया कदम बताते हैं।
सबसे ज्यादा परेशान वे लोग हैं जो परिषद में नौकरी कर रहे हैं। नौकरी जाने की दहशत उनके चेहरों पर साफ देखी जा सकती है। परिषद में करीब 416 स्थायी अधिकारी कर्मचारी हैं और करीब 200 अस्थायी कर्मचारी भी जुड़े हैं। कर्मचारियों का दावा है कि वे किसी पार्टी या संगठन के बजाए सरकार के निर्देश पर सरकार के लिए काम करते हैं। नई सरकार आने के बाद से इनके पास कोई कम नहीं है। इसलिए उन्हें लग रहा है कि सरकार काम देकर तो देखे तब कोई फैसला करे। सरकार को कोई फैसला लेने के पहले इतने परिवारों के बारे में सोचना चाहिए। परिषद में टास्क मैनेजर और कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी सैयद साकिर जाफरी कहते हैं कि हम लोोग कांग्रेस भााजपा के नही बल्कि सरकार के हैं। सरकार को हर पर भरोोसा करके हमें काम देेना चाहिए, हमे इस उम्र में बेरोजगार नहीं करना चाहिए। परिषद में फिलहाल काम बंद है लेकिन कर्मचारी अधिकारी रोज दफ्तर आकर दिन भर बैठ रहे हैं। इस कोशिश में भी जुटे हैं कि किसी तरह सरकार अपना फैसला टाल दे, जिसकी उम्मीद बहुत कम है। अधिकारियों को एक माह का और कर्मचारियों को तीन माह के वेतन देकर तकीनीकी रूप से वीआरएस बताकर सभी को नौकरी से विदा कर दिया जाएगा।