चार कदम आगे बढ़ाकर दो कदम पीछे खींचने वाले दीपक जोशी पशोपेस में
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 3 अक्टूबर। भारतीय जनता पार्टी में संत कहे जाने वाले नेता पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाश जोशी के सुपुत्र दीपक जोशी ने भाजपा की नीतियों-सिद्धांतों और अपने परिवार के संस्कारों को खूंटी पर टांग दिया। अपने विधानसभा क्षेत्र हाटपिपलया में कांग्रेस से आए मनोज चौधरी को मुद्दा बनाकर पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने वाले पूर्व मंत्री दीपक जोशी चार कदम आगे बढ़कर दो कदम पीछे आने की रणनीति के कारण कोई अंतिम फैसला अभी तक नहीं कर पाए। अब वह दावा कर रहे हैं कि उनसे गलती हुई। मानवीय स्वभाव के चलते उनसे चूक हुई। अपने पिता के संस्कारों पर नहीं चल पाए और अब भाजपा के साथ हैं, लेकिन अब भाजपा दीपक जोशी पर कितना भरोसा कर पाएगी।
विधानसभा के 2018 के चुनाव में शिकस्त खाने वाली भाजपा ने डेढ़ साल बाद ही बिना किसी चुनाव के सत्ता में वापसी कर ली। सियासत के तमाम वेदांव खेले गए जो भाजपा के संस्कारों में नहीं थे। इसके लिए भाजपा की तमाम नीतियों और रीतियों को खूंटी पर टांग दिया गया। भाजपा के तमाम नेता अनुशासन हीन हो गए और भाजपा के पार्टी विद डिफरेंस वाले कैरेक्टर की खुलेआम धज्जियां उड़ा दीं। ऐसे ही एक नेता है दीपक जोशी। भाजपा के संत पुरुष कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी हाटपिपल्या से तीन बार विधायक रहे हैं। वे शिवराज की 2013 की सरकार में में मत्री भी रहे। वे 2018 का चुनाव कांग्रेस के मनोज चौधरी से हार गए। वही मनोज चौधरी मार्च में सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए। उनकी विधायकी भी जाती रही। इससे भाजपा भले ही खुश हो गई क्योंकि उसकी सरकार बन गई। लेकिन दीपक जोशी नाराज हो गए क्यों उनका कैरियर दांव पर लग गया। यह तय था अब जब चुनाव होंगे तो टिकट मनोज चौधरी को मिलेगा और यहीं से दीपक की नाराजगी लगातार बनी रहे। लेकिन दीपक कोई कड़ा या बड़ा अंतिम फैसला नहीं ले पाए। दीपक जोशी कभी कांग्रेस की तरफ झुकते दिखाई पड़ते कभी दो कदम पीछे आ जाते और फिर भाजपा के अनुशासित सिपाही होने का दावा करने लगते। मार्च के महीने से चला नाटक अभी तक लगातार चल रहा है। अब वे दावा कर रहे हैं कि वे भाजपा में ही रहेंगे।
दीपक जोशी इस कोशिश में लगातार लगे रहे कि अगर उनको भाजपा से सम्मान नहीं मिलता और उनकी यह मांग कि मनोज चौधरी को टिकट ना दिया जाए… पूरी नहीं होती तो वह कांग्रेस की तरफ चले जाएंगे जैसा कि ग्वालियर में सतीश सिकरवार ने किया या सागर में पारुल साहू ने किया वैसा ही दीपक जोशी भी करने चले थे। लेकिन उनकी स्थिति डांवाडोल वाली बनी रही है। उन्होने इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से कई मुलाकाते कीं। वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत से भी मुलाकातें की। पार्टी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय उन्हें मनाने के लिए बागली में उनके घर भी गए। वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्षजेपी नड्डा से भी मिले। हर मुलाकात के बाद दीपक जोशी दावा करते रहे कि वे पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं और पार्टीमें ही रहेंग। लेकिन कुछ दिन बाद फिर उनके कांग्रेस में जाने कग हवा चलने लगती। वह मानते हैं कि उनकी कमलनाथ से मुलाकाते हुई थी, लेकिन वह मान रहे हैं कि वे अब कमलनाथ के साथ नहीं जा रहे हैं। दीपक जोशी दो कदम आगे बढ़ाने और एक कदम पीछे खींचने की अपनी रणनीति के चलते कोई इमेज नहीं बना पाए, बल्कि उन्होंने राजनीति के संत कहे जाने वाले अपने पिता के संस्कारों पर भी पानी फेर दिया। वह मानते हैं कि वे अपने पिता के संस्कारों को कायम नहीं रख पाए।
दीपक जोशी ने अंतिम अस्त्र के रूप में बुधवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की लेकिन अपने ढाई सौ कर्ताओं को लेकर वह जिस तरह वहां पहुंचे उसे उनकी मुलाकात की बजाय यह माना जा रहा है कि उन्होंने अपना शक्ति प्रदर्शन किया है। हालांकि उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि दीपक जोशी के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा था कि वह भाजपा छोड़कर जा रहे हैं।इसको दूर करने के लिए आज सभा एक साथ पहुंचे हैं। दीपक जी कहीं नहीं जा रहे हैं और भाजपा में ही रहेंगे। कार्यकर्ता उनको समझाने में सफल रहे किपार्टी नहीं छोड़नी चाहिए।
दीपक जोशी और उनके समर्थक भले ही कोई दावा करते रहे लेकिन यह तय है कि दीपक जोशी यह जान गए कि कांग्रेस में उनको उतनी तवज्जो नहीं मिल पाएगी जो तवज्जो भाजपा में मिला करती थी। उनका सारा वजूद उनके पिता के संस्कारों पर टिका था और वह संस्कार और उसका वजूद कांग्रेस में काम नहीं आ पाएगा इसलिए दीपक जोशी दो कदम आगे बढ़ा करके इस बार दो कदम पीछे आए हैं ।