कांग्रेस के कैप्टन को चुनौतियों से जूझने एमपी में रहना होगा....

Apr 27, 2018

सुमन

लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के लिए पार्टी का कैप्टन बना दिया है। पार्टी के वरिष्ठ सांसद 71 साल के कमलनाथ बीते 14 साल में “कमल” का गढ़ बन चुके मध्यप्रदेश में अपनी पार्टी को सत्ता के वनवास से मुक्ति दिलवाएंगे। कमलनाथ की नियुक्ति होते ही सियासी गलियारों में तमाम सवाल उठ खडे हुए हैं। सबसे अहम् सवाल यह है कि क्या गुटों में बंटी कांग्रेस चुनाव के 7 महीने पहले एक हो पाएगी? और उनकी एकता क्या इस स्तर पर पहुंच पाएगी कि 15 साल से सरकार चला रही भाजपा को बाहर का रास्ता दिखा सके।

यह सभी मानते हैं कि कांग्रेस ने फैसला काफी देर से लिया है। इसके चलते पार्टी को फैसले से जहां कुछ फायदे होंगे वहीं कुछ नुकसान भी होंगे। दोनों के बीच का संतुलन कमलनाथ कितना बना पाते हैं, उसी पर तय होगा 2018 का सत्ता संग्राम। कमलनाथ के साथ उन ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया गया है, जो खुद को मुख्यमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार मानते हैं। इसके साथ ही चार नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। कहने को तो यह सब नेता पार्टी अध्यक्ष की मदद करेंगे लेकिन जिस तरह से क्षेत्रीय, जातीय और गुटीय संतुलन बनाने की कोशिश की गई है उससे लगता है कि चारो कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी अध्यक्ष की मदद के बजाय मुश्किलें न खड़ी कर दें। कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए विधायक रामनिवास रावत की सारी वफादारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति है। उनकी खुद की पहचान मुरैना क्षेत्र के बाहर नहीं है और वह अपने इलाके में भी ओबीसी के सर्वमान्य नेता नहीं हैं। इसी तरह दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति वर्ग के विधायक बाला बच्चन पार्टी से ज्यादा कमलनाथ के प्रति वफादार हैं। उनकी भी पकड़ अपने क्षेत्र तक ही सीमित है। तीसरे कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी की वफादारी दिग्विजयसिंह के प्रति है। जीतू ने पिछले चार साल में युवा विधायक के रूप में अच्छा काम किया लेकिन राहुल गांधी का करीबी होने और गुजरात प्रभारी बनने के बाद उनके व्यवहार में जिस तरह बदलाव आया उससे पार्टी के लोग ही उनको नापसंद करने लगे हैं। चौथे कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन उनकी वफादारी भी दिग्विजय सिंह के प्रति ज्यादा है। उन्हें बुंदेलखण्ड का प्रतिनिधि माना जा रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी पहचान पूरे बुंदेलखण्ड तो छोड़िए पूरे सागर में भी सर्वमान्य नेता की नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि कार्यकारी अध्यक्ष कमलनाथ के लिए मददगार होंगे या फिर नई मुसीबत खड़ी करेंगे। कांग्रेस यह प्रयोग पहले भी कर चुकी है, जब 1997 में उर्मिला सिंह पार्टी अध्यक्ष थीं तब बालेंदु शुक्ला, राजमणि पटेल, दलवीर सिंह, अजीत जोगी को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था, उस समय सभी कार्यकारी अध्यक्ष से ज्यादा दमदार थे, इसलिए काफी कुछ ठीक रहा, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। एक और सियासी चर्चा गर्म है कि कांग्रेस ने दलित, आदिवासी और ओबीसी को साधने की कवायद में ठाकुरों और ब्राम्हणों को किनारे कर दिया है, इसका असर कमलनाथ की चुनावी रणनीति पर पड़ना स्वाभाविक होगा।

कांग्रेस की यह नई टीम संभवतः एक मई से काम-काज शुरू कर देगी। कमलनाथ एक मई को अधिभार सम्हालने जा रहे हैं। उन्हें पद सम्हालने और काम शुरू करने के बाद ही पार्टी के अन्दर और पार्टी के बाहर की असली चुनौतियों के बारे में पता चलेगा। एक बड़ी चुनौती यह भी होगी कि वह और सिंधिया दोनों ही मध्यप्रदेश को कितना समय दे पाएंगे? उनका मुकाबला भाजपा के स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से है जो महीनों में कभी-कभार ही प्रदेश से बाहर होते हैं। वहीं कमलनाथ और सिंधिया महीनों में कभी-कभार ही प्रदेश में होते हैं। दिल्ली में बैठकर मध्यप्रदेश की राजनीति शायद अच्छा परिणाम नहीं दे पाएगी। दोनों बड़े नेता अभी तक मध्यप्रदेश की जनता से कटे हैं और दोनों के बारे में जनधारणा बन गई है कि वह दिल्ली के नेता हैं। जबकि शिवराजसिंह चौहान लगातार प्रदेश की जनता को यह संदेश देने में नहीं चूकते कि वह उनके बीच के नेता हैं। जननेता होने की यह खाई पाटने में कमलनाथ और सिंधिया को काफी वक्त लग सकता है। इसके लिए उन्हें दिल्ली दरबार का मोह छोड़कर मध्यप्रदेश में दिन गुजारने होंगे। विशेषकर कमलनाथ को भोपाल में रहकर पार्टी के ऑफिस में बैठकर कार्यकर्ताओं को संदेश देना होगा कि वह सहज उपलब्ध नेता है। अगर कांग्रेस के इन कर्णधारों ने इतना बदलाव कर लिया तो शिवराजसिंह चौहान की चुनौती का सामना कर पाएंगे नहीं तो एक जननेता और दिल्ली के नेता के बीच की दूरी बढ़ती जाएगी और यह कांग्रेस को बड़ा नुकसान करेगी। कांग्रेस को कमलनाथ के प्रति बनी यह धारणा भी तोड़नी होगी कि वह बड़े उद्योगपति हैं और पार्टी की माली हालत को ठीक कर चुनाव के मुकाबले में खड़ा कर देंगे, यह धारणा नहीं बदली तो भाजपा का प्रचार अभियान इसे किसान पुत्र शिवराज और उद्योगपति कमलनाथ तथा महाराजा सिंधिया के बीच का मुकाबला साबित कर देगा और यह कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है।