कजरी महोत्सव में सावन के गीतों से गुलजार हुआ भारत भवन
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। बहुकला केंद्र भारत भवन में तीन दिन चले कजरी झूला गायन महोत्सव में सावन के गीतों से रसिक श्रोता जमकर भीगे। भारत भवन तीन दिन तक गुलजार होता रहा।
महोत्सव के पहले दिन नीना श्रीवास्तव ने गायन की शुरुआत की। शाम 7 बजे आस्था गोस्वामी के द्वारा शुरू होने वाले पहले दिन का यह कार्यक्रम 7.30 से नीना श्रीवास्तव के गायन से शुरू हुआ, क्योंकि अचानक ही भारत भवन प्रशासन ने व्यवस्था के दौरान यह परिवर्तन किया। नीना श्रीवास्तव ने अपनी मनमोहक आवाज में …न आए घनश्याम घिर गए कारी बदरी... प्रस्तुत किया हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। नीना श्रीवास्तव ने अपने गायन की शुरूआत मिश्रित राग में कजरी से करते हुए ‘न आए घनश्याम घिर गए कारी-कारी बदरी...’ से की। इसके बाद मेघ राग मल्हार में झूला ‘घूमर-घूमर छायो बदरा...’ को सुना ऐसा अहसास करा दिया मानो हॉल के अन्दर भी सचमुच बदरा घिर आए हों, बाहर तो पहले से ही गहरे बदरा छाए हुए रहे। इस खूबसूरत प्रस्तुति के बाद मिश्रित पीलू में बनारसी कजरी ‘कहनवा मानो ओ राधा जी...’ को सुना बारह मासा गीत व अन्य गीतों को पेश कर अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। इनके गायन में वाद्य यंत्रों पर संगत देने वालों में तबले पर सुनील भट्ट, हारमोनियम पर अमन मलक ने साथ दिया। अगली प्रस्तुति की शुरूआत करते हुए आस्था गोस्वामी ने अपने साथी कलाकारों के साथ पीलू राग देश में झूले का पद ‘चलो पिया वाही कदम ताल झूलें... झूकी लता अरी सघन प्रफुल्ल...’ को सुना श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। अगले गायन में उन्होंने मिश्रित राग चारु केश नंद गायन का झूला ‘नंद भवन में डारो हिंडोरा, चित्र-विचित्र बनो अति सुन्दर...’ को सुनाया। गायन की अगली कड़ी में गौड़ मल्हार राग में पूरब का झूला गीत ‘हिंडोले झूलेको आई बहार, रिमिझम पड़त फुहार...’ व मिश्र पीलू राग में कजरी ‘सावन झर लगीला धीरे-धीरे... बादर गरजी बिजली चमके चूनर मेरी भीगे जाए...’ को सुना अपने गायन का समापन किया। आस्था अवस्थी के गायन में वाद्य यंत्र पर साथ देने वालों में हारमोनियम पर जाकिर हुसैन खान, तबले पर सलीम अल्लावाले व तानपुरे पर सिराज हुसैन खान मुख्य रहे। महोत्सव के अंतिम दिन रविवार को उर्मिला श्रीवास्तव एवं रीता देव द्वारा लोक संगीत की प्रस्तुति दी गई। शुरुआत उर्मिला श्रीवास्तव ने मिर्जापुर की कजरी मईया झूले चलन झूलनवा... से की। मां विंध्यवासनी को समर्पित यह प्रस्तुति मिर्जापुर की धुनों पर केंद्रित रही। जिसके बाद हम के सावन में झूलने गढाइदे पिया..., कजरी प्रस्तुत की। रिमझिम बरसे बदरा चारों ओर..., कजरी के जरिए पेड़ों में झूला झूलने के महत्व को बताया गया। पिया मेहंदी ले आई दे मोती झील से... गीत में सावन में मेहंदी लगाने के महत्व को बताया गया। सखी झूल गई झूलना हजार में... सावन के बहार में... आदि गीतों से सभागार गूंजता रहा। कजरी-झूला के दौरान श्रोताओं को इसके अलग-अलग स्वरूप में हिंडोला, सावनी और शंकर-गौरा के गीत भी सुनने को मिले।