ऐतिहासिक फैसले देने वाली बेंचों मे रहे हैं नए सीजेआई जस्टिस खन्ना

Oct 25, 2024

खरी खरी संवाददाता

नई दिल्ली, 25 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना देश के अगले चीफ जस्टिस होंगे। जस्टिस खन्ना मौजूदा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के 10 नवंबर को रिटायर होने के बाद 11 नवंबर को शपथ लेंगे। जस्टिस खन्ना की चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्ति के आदेश जारी हो गए हैं। जस्टिस खन्ना इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक ठहराने सहित कई बड़े फैसले करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल रहे हैं।

जस्टिस खन्ना ने अपना करियर 1983 में शुरू किया था। सुप्रीम कोर्ट से पहले वो दिल्ली के तीस हजारी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट समेत कई अदालतों में प्रैक्टिस कर चुके हैं। अपने अब तक के करियर के दौरान जस्टिस खन्ना और उनकी भागीदारी वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कई अहम फ़ैसले सुनाए है।

आइए जानते हैं ऐसे पांच अहम फैसलों और उनके असर के बारे में......

1. इलेक्टोरल बॉन्ड का फैसला

जस्टिस संजीव खन्ना उस बेंच में शामिल थे जिसने 2024 के एक ऐतिहासिक फ़ैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था। इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र भी थे। इस मामले में फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है। बेंच के मुखिया सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है

2.धारा 370 हटाने का फैसला

जस्टिस खन्ना 2023 में संविधान के अनुच्छेद 370 से जुड़े केस पर फैसला करने वाली बेंच के सदस्य थे। अनुच्छेद 370 के तहत ही जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला था। संजीव खन्ना का कहना था कि अनुच्छेद 370 संघवाद के अनुरूप नहीं है। इसे खत्म करने से भारत के संघीय ढांचे पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उस समय इस पर फैसला सुनाने वाली बेंच ने कहा था, ''राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 हटाने का अधिकार है।'' चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफ़ारिशें राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं हैं और भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हो सकते हैं।

3.वीवीपीएटी वैरिफिकेशन का फैसला

जस्टिस खन्ना की बेंच ने साल 2024 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत निर्वाचन आयोग के फैसले में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर डाले गए वोटों के 100 फीसदी वीवीपीएटी वैरिफिकेशन की मांग करने वाली एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की याचिका को खारिज कर दिया था। फैसले में जस्टिस खन्ना ने लिखा था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आयोग के सभी सुरक्षा उपायों को रिकॉर्ड में रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा था, "लोकतंत्र सामंजस्य बनाए रखने के लिए होता है और आंख मूंदकर चुनाव की प्रक्रिया पर भरोसा ना करने से बिना कारण शक पैदा हो सकता है।’’

4.सीजेआई दफ्तर में आरटीआई का फैसला

जस्टिस संजीव खन्ना उस बेंच में भी शामिल थे जिसने 3 नवंबर 2019 को अपने आदेश में कहा था कि मुख्य न्यायाधीश का दफ़्तर अब आरटीआई के दायरे में होगा।

दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए अदालत ने कहा था कि पारदर्शिता से न्यायिक आज़ादी प्रभावित नहीं होती. जस्टिस खन्ना ने ही संवैधानिक पीठ के लिए ये जजमेंट लिखी थी।सुप्रीम कोर्ट के सामने यह मामला तब आया,जब सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने जनवरी 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश के ख़िलाफ़ अपील की, जिसमें सीजेआई के दफ़्तर को आरटीआई के तहत माना गया

5.सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का फैसला

जस्टिस संजीव खन्ना 2021 में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को मंजूरी देने वाली बेंच में भी शामिल थे। उन्होंने अपना फैसला खिलाफ में दिया था। इस प्रोजेक्ट के तहत बाकी निर्माण के अलावा दिल्ली में नया संसद भवन भी बनाया गया है। तीन जजों की बेंच ने 2-1 के बहुमत से यह फ़ैसला सुनाया था। जस्टिस खन्ना के अलावा इस बेंच में जस्टिस एएम खनविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी भी शामिल थे। जस्टिस खनविलकर और दिनेश माहेश्वरी ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अनुमति दी थी जबकि जस्टिस संजीव खन्ना ने इसके ख़िलाफ़ अपना फ़ैसला सुनाया था।

जस्टिस संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट के उस दो सदस्यीय बेंच में शामिल थे जिसने दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी। जस्टिस खन्ना का कार्यकाल छह महीने से कुछ अधिक समय के लिए होगा। वो 13 मई 2025 को अपने पद से रिटायर होंगे।