उपचुनावों मे करारी पराजय एऩडीए के लिए वार्निंग सिग्नल
खरी खरी संवाददाता
नई दिल्ली, 14 जुलाई। सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर पिछले दिनों हुए उपचुनाव में एनडीए की सिर्फ दो सीटों पर जीत ने देश की सियासत में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवा महीने पहले स्पष्ट बहुमत पाकर देश की सत्ता पर लगातार तीसरी बार काबिज होने वाले एनडीए के लिए यह खतरनाक संकेत (वार्निंग सिग्नल) माना जा रहा है। वहीं विपक्षी गठबंधन इंडिया के लिए भी बड़ा संदेश है कि अगर एकजुटता बनी रहेगी तो ही सफलता मिलेगी।
सात राज्यों की 13 सीटों के उपचुनाव में सबसे अधिक कशमकश हिमाचल प्रदेश में देखी गई जहां चार सीटों पर चुनाव थे। बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में आपरेशन लोटस को अंजाम देकर सत्ता पलटने की कवायद शुरू की थी। राज्यसभा चुनाव के बहाने क्रास वोटिंग कराकर हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार को बड़ी चुनौती दी गई थी। चार विधायकों का इस्तीफा और दलबदल उसी कड़ी का हिस्सा है। चार में से सिर्फ एक सीट पर भाजपा के बैनर तले उन विधायकों की जीत हुई। हमीरपुर सीट बीजेपी प्रत्याशी ने जीत ली। अन्य सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक मुश्किल का सामना करना पड़ा है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी पश्चिम बंगाल में आशातीत सफलता नहीं पा सकी थी। अब उपचुनाव में टीएमसी ने बीजेपी से तीन सीटें छीन लीं। यह इस बात का संकेत है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में भले ही मुख्य विपक्षी होने का दम भरती है लेकिन ममता बनर्जी उसे कोई स्पेस नहीं दे रही हैं। भारतीय जनता पार्टी को उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा। यह सीट पहले भी कांग्रेस के पास थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी ने कांग्रेस के विधायक को तोड़ लिया था। पार्टी ने उसे पूरी ताकत के साथ उपचुनाव के मैदान में उतरा। प्रचार अभियान में धर्म की दुहाई भी दी गई लेकिन जनता ने नकार दिया और कांग्रेस एक बार फिर बद्रीनाथ सीट जीतने में सफल रही। राजनीतिक विश्लेषक इस सीट पर बीजेपी की पराजय को लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट पर पराजय से जोड़ रहे हैं। अयोध्या विधानसभा सीट को अपने में समाहित करने वाली फैजाबाद सीट पर सपा की जीत ने बीजेपी के अयोध्या आंदोलन को लेकर कई सवाल खड़ कर दिए। यही स्थिति उत्तराखंड में बद्रीनाथ सीट पर बीजेपी की पराजय से बनी है। विश्लेषक मान रहे हैं कि मतदाताओं ने लोकसभा में अयोध्या सीट के बाद अब उपचुनाव में बद्रीनाथ सीट पर बीजेपी की धर्म की राजनीति को नकार दिया है। बीजेपी की धर्म की राजनीति बद्रीनाथ के मतदाताओं ने दोबारा नकारा है। उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी को बद्रीनाथ में हार का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने बद्रीनाथ से कांग्रेसी विधायक को भाजपा में शामिल किया और इस सीट पर दोबारा खड़ा किया। वो धर्म के नाम पर ही वोट मांग रहे थे और जनता ने नकार दिया है। मध्यप्रदेश मने जरूरी बीजेपी ने बड़ी सफलता हासिल की है। पार्टी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा की अमरवाड़ा सीट पर विजय हासिल की है। यहां भी कांग्रेस का विधायक था जिसे लोकसभा चुनाव के तोड़कर बीजेपी अपने पाले में ले आई थी। शायद इसी का असर था कि बीजेपी कांग्रेस और कमलनाथ के अजेय गढ़ छिंदवाड़ा को लोकसभा मे जीतने में सफल रही है। विधानसभा उपचुनाव मे बीजेपी ने कांग्रेस से तोड़कर लाए गए कमलेश शाह को ही मैदान में उतारा था। कमलेश शाह विजयी होने मे सफल रहे, लेकिन उऩकी जीत जिस तरह बहुत कम मतों से हुई उससे साफ है कि बीजेपी को सत्तारूढ़ दल होने का फायदा मिला है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कुछ लोग कह सकते हैं कि उपचुनाव को किसी संदेश के तौर पर नहीं देखना चाहिए, या सरकार में कोई बड़ा बदलाव या राजनीतिक स्थितियां नहीं बदल रही हैं, लेकिन ये बीजेपी के लिए एक वार्निंग सिग्नल है। परिवारवाद और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ नारा बुलंद करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने हाल के सालों में कई ऐसे नेताओं को शामिल किया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। राजनीतिक परिवारों से जुड़े लोगों को भी पार्टी में जगह दी गई। विश्लेषक मान रहे हैं कि हालिया चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए ये संकेत भी हैं कि अब उसे कोर्स करेक्शन करना है।बीजेपी को देखना होगा कि उसे बाहर से आने वाले और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे लोगों को कितनी जगह देनी है? उसे सांप्रदायिकता या ध्रुवीकरण की राजनीति पर चलना है या नहीं. कोर्स करेक्शन के लिए उसे बहुत सारे वार्निंग सिग्नल मिल रहे हैं।