उत्तर प्रदेश भाजपा : केशव के सामने गुटबाजी बड़ी चुनौती
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उत्तर प्रदेश इकाई के नए प्रदेश अध्यक्ष व फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य के सामने यूं तो कई चुनौतियां खड़ी हैं, मगर सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को तीसरे से पहले पायदान पर लाने और संगठन को गुटबाजी से बाहर निकालने की है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली शानदार सफलता के बाद उपचुनाव, पंचायत चुनाव व विधान परिषद चुनाव में मिली करारी शिकस्त से भाजपा को उबारना केशव के लिए आसान नहीं होगा।
नए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के सामने इन तमाम चुनौतियों के बीच अपनी 'आपराधिक छवि' से बाहर निकलना भी कड़ी चुनौती है। उनकी नियुक्त के बाद से ही विपक्षी दल लगातार उनके आपराधिक इतिहास को कुरेदने में लगे हैं। ऐसे में 'आपराधिक रिकॉर्ड' केशव के लिए गले की फांस बन सकता है।
भाजपा के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान यह बात स्वीकार की। उन्होंने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "ऐसा पहली बार हुआ है कि जिस पर लगभग एक दर्जन आपराधिक मामले दर्ज हों, वह भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष हो। इस छवि से बाहर निकलना मौर्य के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा।"
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, "उन पर हत्या जैसे संगीन आरोप भी हैं। विरोधी इसको मुद्दा बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। इस चुनौती के बीच भाजपा को तीसरे से पहले पायदान पर लाना मौर्य के लिए आसान नहीं होगा।"
उन्होंने कहा कि चुनाव करीब हैं, पार्टी के सामने दलित व पिछड़ों को खुश करने के साथ ही सर्वण जनाधार खिसकने का खतरा लगातार बना हुआ है।
वहीं, प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपने नए अध्यक्ष के मनोनयन के साथ अपनी चुनावी रणनीति का भी खुलासा कर दिया है।
उन्होंने कहा, "यह बात तय हो गई है कि अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा सांप्रदायिकता के सहारे ही चुनाव मैदान में उतरेगी। विश्व हिंदू परिषद में रहे नेता को प्रदेश में पार्टी का कमान सौंपा जाना यही संकेत देता है। भाजपा नेतृत्व ने नैतिकता को भी तिलांजलि दे दी है। उसके नए प्रदेश अध्यक्ष पर दर्जन भर आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं।"
चौधरी ने कहा कि भाजपा अपने को 'पार्टी विद डिफरेंस' बताते नहीं अघाती थी। अब यही 'डिफरेंस' नजर आ रहा है कि उसे भ्रष्ट और दागी व्यक्तियों से कोई परहेज नहीं है, बल्कि वह उन्हें हर हाल में गले लगाने को तैयार है।
इधर, भाजपा सूत्रों की मानें तो मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाते समय सिर्फ इस बात को ध्यान में रखा गया कि कमान उनके हाथ में आने से पार्टी पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब होगी।
वहीं कुछ पदाधिकारियों ने बातचीत के दौरान दबे स्वर में यह भी स्वीकार किया कि नए प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह व मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के कद के नेता नहीं हैं। विनय कटियार भी जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने तो उनकी छवि 'कट्टर हिंदुत्व' वाली रही। मगर उनके सामने पहचान का संकट नहीं था। लेकिन मौर्य के सामने उप्र के 75 जिलों में पहचान का संकट भी बना हुआ है।
प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद मौर्य के सामने पहली चुनौती कमेटी के गठन को लेकर होगी। युवाओं की भागीदारी तय करने में उन्हें अपना कौशल दिखाना होगा।
मौर्य को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का संगठनात्मक अनुभव तो है, लेकिन भाजपा में उन्होंने इससे पहले कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं निभाई है। आशंका है कि प्रदेश में गुटबाजी की मार झेल रही भाजपा को सही रास्ते पर लाने में यही 'अनुभवहीनता' हर समय उनके आड़े आएगी।
कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने भी केशव की नियुक्ति पर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि केशव मौर्य की नियुक्ति की घोषणा के साथ ही भाजपा का चाल, चरित्र व चेहरा सब सामने आ गया है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि एक आपराधिक छवि के व्यक्ति के सहारे भाजपा चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। आने वाले समय में उप्र चुनावी माहौल में सांप्रदायकिता का 'तड़का' देखने को मिलेगा।