आधुनिक खेती से पंजाब को फायदा थोड़ा, नुकसान ज्यादा हुआ

Jun 23, 2016

चंडीगढ़। देश का अन्न भंडार कहे जाने वाले पंजाब में एक बार फिर किसान पुरानी पद्धति की परंपरागत खेती की ओर लौट रहे हैं। रासायनिक खादों और दवाओं तथा मोडीफाइड बीजों के उपयोग के चलते लहलहाते पंजाब में खेत खराब हो गए। इसके चलते खेती पर असर पड़ा और धरतीपुत्र कहे जाने वाले किसान बर्बादी की कगार पर पहुंच गए। बीते करीब पच्चीस सालों में केमिकल्स और दवाओं के उपयोग ने अंततः किसानों का नुकसान ही किया है। किसानों को लगने लगा है कि परंपरागत खेती को छोड़कर रासायनिक खादों और दवाओं तथा जीन संवर्द्धित बीजों के उपयोग से उन्हें फायदा थोड़ा और नुकसान ज्यादा हुआ।
पंजाब के कई जिलों के कई गांवों में आज भी कुछ किसान ऐसे हैं जिन्होंने कभी भी केमिकल्स अथवा मोडीफाइड बीजों की इस्तेमाल नहीं किया। आज वे उन किसानों की तुलना में ज्यादा खुश हैं, जिन्होंने इस तरह के प्रयोग से कुछ सालों के लिए उत्पादन बढ़ा कर पैसा तो कमा लिया, लेकिन अब उनके खेत किसी काम के नहीं रह गए हैं। भटिंडा जिले के राय की कलां गांव के रहने वाले किसान हरजंट सिंह ऐसे खुशहाल किसानों में शामिल हैं। हरजंट सिंह सदियों से चली आ रही परंपरागत तरीक़े से खेती करते हैं. उन्होंने अपने खेतों में कभी कोई केमिकल इस्तेमाल नहीं किया. जेनेटिक तौर पर मोडिफ़ाइड या जीन संवर्धित बीज का कभी इस्तेमाल नहीं किया. ये काम आसान नहीं था. उनके आस-पास सभी किसान और राज्य और इसके बाहर के किसान अगर नई बीजों और केमिकल का इस्तेमाल कर रहे हों तो इससे बचना कठिन काम होता है. हरजंट सिंह इस चक्कर में नहीं आए. आज किसान मानते हैं कि हरजंट सिंह सही थे और वो ख़ुद ग़लत.
जिन किसानों ने अधिक पैदवार के लालच में आकर जीन संवर्धित बीजों  और रासायनिक खादों का भरपूर इस्तेमाल किया उनके खेतों की ऊपरी परत पथरीली हो गई है। इससे कपास की किसानी लगभग तबाह हो गई है। हरजंट सिंह कहते हैं कि नए बीजों और खादों का इस्तेमाल किसानों ने सरकारी तंत्र के प्रोत्साहन के चलते किया। इससे कुछ समय के लिए तो पैदावार बढ़ी लेकिन आज हालात यह है कि भारत का अन्न भंडार कहा जाने वाल पंजाब, आज संकट में है। यहाँ के छोटे किसान क़र्ज़ों के जाल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और आत्म हत्या करने पर मजबूर हैं।
कभी जेनेटिकली मोडिफ़ाइड बीजों के भक्त कुलवंत राय शर्मा कहते हैं कि हमें लगा हम जितना केमिकल इस्तेमाल करेंगे या जितना जेनेटिकली मोडिफ़ाइड या जीन संवर्धित बीज का इस्तेमाल करेंगे उतनी पैदावार बढ़ेगी और उतना हम अमीर हो जाएंगे। कुलंवत बताते हैं कि वे सालों से जेनेटिकली मोडिफ़ाइड बीज और केमिकल खाद का इस्तेमाल करते आ रहे थे, पहले फसल खूब हुई. शुरू के सालों में एक एकड़ खेत में 17-18 क्विंटल पैदावार होती थी लेकिन पिछले कुछ सालों में पैदावार घट कर 3 से 4 क्विंटल रह
गई है। कुलवंत शर्मा अब स्थानीय बीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। पैदावार के बारे में वो कहते हैं कि गुज़ारा हो जाता है, कम से कम इतना तय है कि खेत और फसल बर्बाद नहीं होंगे।
पारंपरिक खेती से कभी न हटने वाले किसान हरजंट सिंह की सलाह है प्रकृति की तरफ़ लौटो। अपने घर के अहाते में एक गौशाले में कुछ गायों की पीठ पर हाथ फेरते हुए वो कहते हैं कि हम पशु भी देसी रखते हैं. केवल गोबर खाद का इस्तेमाल करते हैं. देसी बीज की तलाश में कई राज्यों का दौर करते हैं. हम किसान भाइयों से कहते हैं कि वो प्रकृति से रिश्ता दोबारा से जोड़ें."
लेकिन कीटनाशकों या कीड़े मारने की दवाइयों की एक दुकान के मालिक मंजीत सिंह कहते हैं कि देसी बीजों और खाद की तरफ़ वापसी एक लंबा सफ़र होगा। केमिकल के इस्तेमाल से ज़मीनें सख़्त हो गई हैं। इसको दोबारा उपजाऊ बनाने में 10 साल लग सकते हैं। सफ़र कठिन ज़रूर है लेकिन कर्ज़ में डूबे किसानों के अनुसार वो इस कठिनाई का सामना करने को तैयार हैं.