68 लाख रु. को 75 पैसे ने चटाई धूल
खरीखरी संवाददाता
भोपाल , 3 अप्रेल। शासन तंत्र के भर्रेशाही किस हद तक फैली है, इसका ताजा उदाहरण सीएजी की ताजा रिपोर्ट में देखने को मिला है। प्रदेश सरकार के खजाने में बड़ा सहयोग देने वाले आबकारी विभाग के अफसरों ने एक टैंडर सिर्फ इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि उसके साथ जमा सिक्योरिटी चैक में मात्र 75 पैसे कम थे। इस टैंडर को रद्द कर ठेका लगभग 68 लाख रु. कम पर दूसरे को दे दिया गया, जबकि सुरक्षा राशि का यह चैक सरकार के खजाने में जमा भी नहीं होना था। टेंडर फाइनल होने के बाद उसे ठेकेदारों को ही वापस कर दिया जाना था।
एक्साइज विभाग का नियम है कि किसी भी ठेके का टेंडर भरते समय बोली राशि का 1/12 भाग सुरक्षा राशि के रूप में जमा करना पड़ता है। नियमानुसार पर्याप्त राशि का चैक न होने पर टैंडर रद्द कर दिया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार खण्डवा आबकारी अधिकारी ने इसी नियम की आड़ में सरकार को लाखों का नुकसान करा दिया। जिले की सी-वन ग्रुप की मदिरा दुकों के लिए टैंडर बुलाए गए थे, उस ग्रुप में विदेशी शराब की एक और देशी शराब की 3 दुकानें शामिल थीं। जब टैंडर खोले गए तो हाईएस्ट बोली 868,77,777 की निकली इसके साथ नियमानुसार अग्रिम राशि के 1/12वें भाग से सिर्फ 75 पैसे कम का था। चैक 72,398,814 रु. 75 पैसे का होना था। लेकिन चैक में 75 पैसों का जिक्र नहीं किया गया था, इसके चलते आबकारी अधिकारी ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। इसके स्थान पर सैकेण्ड बोलीकर्ता को ठेका दे दिया गया जो कि उच्चतम बोली वाले से 67,65000 रु. कम का था। इस तरह सिर्फ 75 पैसे के पीछे आबकारी अधिकारियों ने नियमों की आड़ लेकर एक अव्यवहारिक फैसला लिया और सरकारी खजाने को 67,65000 का नुकसान हो गया।
सीएजी ने इस पर आपत्ति करते हुए जब विभाग को चिट्ठी लिखी तब विभाग ने वही रटा-रटाया उत्तर दे दिया कि प्रभावित राशि का अग्रिम चैक न होने रर टैंडर रद्द करने का नियम है इसी के चलते उच्चतम बोली का टैंडर मंजूर नहीं किया जा सका। सीएजी ने विभाग के उत्तर को न मानते हुए कहा कि नियमों में यह भी प्रावधान है कि अग्रिम राशि का चैक टैंडर फाइनल होने के बाद केश नहीं किया जाएगा बल्कि बोलीकर्ता को वापस कर दिया जाएगा। ऐसे में अफसरों को सरकारी खजाने को अधिक राशि मिलने पर विचार किया जाना चाहिए था और इसका एक ही रास्ता था कि टैंडर उच्चतम बोली वाले को दिया जाए। सीएजी ने अपनी आपत्ति से राज्य सरकार को भी अवगत कराया, लेकिन सरकार ने समय रहते आपत्ति का कोई जवाब नहीं दिया। इस तरह नियमों की आड़ में सरकारी खजाने को लगभग 68 लाख का नुकसान कराने का मामला टांय-टांय फिस्स हो गया।