हनी ट्रैप: पुलिस के आला अफसरों के बीच जंग,पीएचक्यू बना अखाड़ा
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 28 सितंबर। मध्यप्रदेश की सत्ता और सियासत के गलियारों में हंगामा बरपा देने वाले बहुचर्चित हनी ट्रैप मामले ने प्रदेश के पुलिस महकमे की इज्जत को तार-तार कर दिया है। पुलिस महकमे के सबसे बड़े ओहदे महानिदेशक के पद पर बैठे आईपीएस अफसर खुले आम लड़ रहे हैं। पुलिस महकमे के अफसरों के साथ-साथ पुलिस के विश्राम गृह भी हनी ट्रैप के कारण बदनाम हो रहे हैं। ऐसे में इस मामले की निष्पक्ष जांच पर सवाल उठने लगे हैं। थाने के सिपाहियों की तरह लड़ रहे बड़े अफसरों की लड़ाई के चलते पी.एच.क्यू.
मध्यप्रदेश में सियासी भूचाल ला देने वाले हनी ट्रैप मामले में अब सबसे अधिक इमेज उस पुलिस महकमे की खराब हो रही है, जिस पर इस मामले की निष्पक्ष जांच करके सफेदपोश चेहरों को बे-नकाब करने की जिम्मेदारी है। मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी के मुखिया को सिर्फ बीस घंटे के अंदर बदल दिए जाने से जो संदेह के बादल उठे थे, अब वे बरसने लगे हैं। इसके चलते इस मामले में पुलिस की छवि पर बट्टा लगता जा रहा है। अब तो प्रदेश पुलिस के मुखिया यानी पुलिस महानिदेशक खुद विवादों में आ गए हैं। स्पेशल डीजी पुरुषोत्तम शर्मा ने पुलिस के डीजी वीके सिंह पर पुलिस की छवि खराब करने का आरोप लगाया है। मामला एसटीएफ के लिए गाजियाबाद में एक फ्लैट किराए पर लिए जाने से जुड़ा है। स्पेशल डीजी और एसटीएफ के मुखिया पुरुषोत्तम शर्मा का कहना है कि डीजीपी को सूचना देकर ही फ्लैट किराए पर लिया गया था। वहां फ्लैट की देखभाल के लिए एसटीएफ के कुछ कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई थी। डीजीपी वीके सिंह ने सारे कर्मचारियों को आदेश देकर वापस बुला लिया और फ्लैट खाली करने के आदेश दे दिए। पुलिस महकमे में चर्चा है कि फ्लैट में हनी गैंग के भी आने और रुकने की सूचना के बाद डीजीपी ने यह कदम उठाया। डीजीपी के इस कदम से पुलिस के सभी अधिकारियों को अवगत कराया गया। फ्लैट किराए पर लेने वाली एसटीएफ के मुखिया स्पेशल डीजी पुरुषोत्तम शर्मा इससे बेहद खफा हैं। उनका कहना है कि इस तरह डीजीपी वीके सिंह ने अपने ही विभाग की इज्जत उछाल दी। एसटीएफ चीफ ने इस बारे में मुख्यमंत्री और गृह मंत्री से बात की है तथा आईपीएस एसोसिएशन को डीजीपी के खिलाफ कार्रवाई के लिए चिट्ठी लिखी है। इस खुले विवाद के चलते प्रदेश की आईपीएस लाबी दो हिस्सों में बंट गई है। और प्रदेश की सियासत में नई बहस शुरू हो गई है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा का कहना है कि एसआईटी चीफ बनने की लड़ाई में यह सब कुछ हो रहा है। बनना कोई चाह रहा था, बनाया जाना किसी को था और बन कोई और गया। इसी का परिणाम पुलिस के बेइज्जती है।
इस मामले में प्रदेश की पुलिस पहले से ही बदनाम हो रही थी। लेडी गैंग का शिकार होने वालों में सियासतदारों और नौकरशाहों के साथ-साथ पुलिस महकमे के अफसरों के अफसरों के भी नाम आ रहे थे। अब जैसे जैसे जांच आगे बढ़ रही है और मामले की पर्तें खुलने की उम्मीद बंध रही है, वैसे वैसे पुलिस के कारनामें सामने आते जा रहे हैं। पहले तो इस मामले में इंदौर के उस पलासिया थाने के टीआई को हटना चर्चा का विषय बना, जहां यह मामला दर्ज है। उसके बाद एक वीडियो सामने आया जिसमें हनी गैंग की एक तथाकथित सदस्य निर्वस्त्र होकर डांस कर रही है। इसे पुलिस के किसी रेस्ट हाउस का बताया जा रहा है। इसके बाद लेडी गैंग की मुख्य आरोपी आरती दयाल ने मीडिया से यह कहकर पुलिस की कार्रवाई पर सवालिया निशान लगा दिए कि उससे पुलिस ब्लैंक पेपरों पर साइन करवा रही है। और अब पुलिस के दो सर्वोच्च अफसरों के झगड़े ने पुलिस की बची खुची छवि पर भी बट्टा लगाना शुरू कर दिया है। इससे सरकार की इमेज पर भी असर पर पड़ रहा है। हालांकि सत्ता की सियासत में इसे दो अफसरों के बीच की आपसी लड़ाई माना जा रहा है?
सरकार, पुलिस और कांग्रेस चाहे जितने दावे करें लेकिन एक बात तय है कि इस तरह का विवाद बिना किसी कारण नहीं है। संदेह भरे इस माहौल में उठ रहे धुएं का रुख देखकर लग रहा है कि कहीं तो आग है। अब तो आम आदमी मानने लगा है कि इस मामले में पुलिस जांच के मूल मुद्दे से भटककर बचाने और फंसाने का खेल शुरू कर चुकी है। यह खेल खुद पुलिस के लिए भी महंगा पड़ सकता है।