शिव सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट पर अफसरशाही का पलीता
विशेष संवाददाता
भोपाल 1 अप्रेल । सिंचाई के लिए अलग और पढ़ाई के लिए अलग बिजली देने के शिवराज सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को बिजली विभाग के अफसरों की लापरवाही ने पलीता लगा दिया। अलग-अलग बिजली सप्लाई के लिए शुरु हुई फीडर सेप्रेशन की योजना समय पर पूरीं नहीं हो पाई, इसके चलते न तो किसानों को लाभ मिल पाया और न ही विधानसभा में पारित संकल्प पूरा हुआ।
म.प्र. सरकार ने पिछले चुनाव के पहले घरेलू उपभोक्ताओं को 24 घंटे और सिंचाई के लिए 8 घंटे बिजली देने का वायदा किया था। इसके लिए फीडर सेप्रेशन योजना शुरू की गई थी। इसके लिए विधानसभ में बाकायदा संकल्प 2013 पारित हुआ था। इस योजना को भाजपा सरकार ने अपने वयोवृद्ध नेता अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर अटल ज्योति अभियान नाम दिया था। इसका चुनावी लाभ लेने के लिए सरकार ने प्रदेश के तमाम जिलों में अटल ज्योति अभियान के भव्य कार्यक्रम आयोजित किए थे। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद लगभग सभी जिलों के कार्यक्रम में शामिल हुए और कई जगहों पर पार्टी के दिग्गज नेताओं को भी बुलाया गया था। विधानसभा चुनाव का काउनडाउन शुरू होने के पहले सरकार ने सभी जिलों में अटल ज्योति कार्यक्रम आयोजित कर जनता को बता दिया था कि फीडर सेप्रेशन का काम पूरा हो गया है अब लगातार बिजली मिलेगी, लेकिन हकीकत इससे परे थी।
सीएजी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बिजली विभाग के अफसरों की गलत सूचना के आधार पर सरकार ने जनता से सफेद झूठ बोला। फीडर सेप्रेशन का काम 2013 तक पूरा ही नहीं हो पाया था तो फिर ग्रामीण जनता को 24 घंटे बिजली कैसे मिलती ? सीएजी में मध्यप्रदेश क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि कंपनी फीडर सेप्रेशन के कामों को तय समय में पूरा नहीं कर पाई, इसके चलते सरकार विधानसभा में पारित संकल्प 2013 में किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाई। रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम क्षेत्र कंपनी द्वारा प्रथम चरण में 843 और दूसरे चरण में 704 फीडर बनाए जाने थे, लेकिन 2016 तक भी काम पूरा नहीं हो पाया । रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने बड़ी परियोजनाओं के अधिक आंकड़े अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट में शामिल कर 238.80 करोड़ का अतिरिक्त ऋण मंजूर करा लिया। काम समय पर न हो पाने के कारण ऋण का उपयोग नहीं हो पाया, लेकिन 9.55 करोड़ रु. की गारंटी फीस और 23.34 लाख रु. का प्रतिबद्धता प्रभार बिना वजह देना पड़ गया।
सीएजी के मुताबिक कंपनी के अफसरों ने लापरवाही की कई हदें पार कर दीं इससे सरकारी खजाने को नुकसार हुआ। कंपनी ने ठेकों की विशेष शर्तों में बदलाव करके ठेकेदार की जोखिम लागत दायित्व को मूल ठेके की लागत के 10% तक सीमित कर दिया। इसके चलते रद्द हुए ठेकों के शेष कार्यों पर 11.94 करोड़ रु. का अतिरिक्त भार उठाना पड़ा। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी ने ठेकेदारी वाले काम शुरू करने से पहले सब-स्टेशनों के लिए जमीन का अधिग्रहण
समय पर नहीं किया, इसके चलते सब-स्टेशनों के काम में 3 से 34 महीनों तक की देरी हुई और 2013 तक पूरे होने वाले काम 2016 के जून तक पूरे नहीं हो पाए । इसके चलते जहां सरकारी खजाने को नुकसान हुआ वहीं विधानसभा में दोहराई गई सरकार की प्रतिबद्धता झूठी साबित हुई। बताया जाता है कि बिजली विभाग की तीनों ही वितरण कंपनियों में फीडर सेप्रेशन के काम की यही स्थिति रही। कंपनियों ने आनन-फानन में उन ठेकेदारों को काम दे दिया था जो गुजरात, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में समय पर काम पूरा नहीं कर पाने के कारण ब्लैक-लिस्टेड तक हो चुके थे। मध्यप्रदेश में भी वह समट पर काम पूरा नहीं कर पाए इसके चलते कई ठेके रद्द करने पड़े और बचे कामों को कराने के लिए बिजली कंपनियों ायगदने अलग से राशि खर्च की।
भाजपा अपने तमाम वादों और दावों की दम पर 2013 में सत्ता में वापस जरूर आ गई लेकिन जिस बिजली आपूर्ति की दम पर वह किसानों के वोट पाना चाहती थी उसमें बिजली कंपनी के अफसरों ने जमकर पलीता लगाया था। इसके चलते शिवराज सरकार का पढ़ाई और सिंचाई दोनों के लिए भरपूर बिजली देने का वायदा अधूरा ही रह गया।