विजयपुर और बुधनी में जातीय समीकरण सारे फैक्टर्स पर भारी पड़ा
भोपाल, 23 नवंबर। मध्यप्रदेश की विजयपुर सीट पर सत्तारूढ़ बीजेपी की हार और बुधनी सीट पर जीत के मामूली से अंतर ने सियासत की नई कहानी लिख दी है। दोनों सीटों पर जातीय समीकरण बाकी सारे फैक्टर पर भारी रहा। विजयपुर में आदिवासी मतदाता कांग्रेस के पाले में एक हो गया और कुशवाहाओं ने उसका साथ दे दिया तो कांग्रेस जीत का इतिहास रच दिया। बुधनी में किरार वोटर एक हो गए तो बीजेपी की लाख की जीत को हजारों में ला दिया।
विजयपुर में बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए रामनिवास को मंत्री बनाने के बाद चुनाव मैदान में उतारा था। सरकार और संगठन ने सीट जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इसके बाद भी कैबिनेट मंत्री रावत कांग्रेस के सामान्य से प्रत्याशी से चुनाव हार गए। वहीं बुधनी में भाजपा जीत गई लेकिन बीजेपी को बंपर जीत दिलाने वाले वोटरों ने शिवराज सिंह चौहान की जगह मैदान में उतरे रमाकांत भार्गव की जीत को 11 हजार पर ला दिया। दोनों सीटों के परिणाम सिर्फ भाजपा या कांग्रेस के लिए नहीं बल्कि पूरी सियासत के लिए अलार्मिंग है। इन सीटों के परिणाम साफ इशारा कर रहे हैं कि वोटर को बरगलाना बहुत मुश्किल है। विजयपुर में सत्तारूढ़ बीजेपी ने रावत की जीत के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया। भाजपा की हर चुनावी सभा में क्षेत्र के विकास के लिए घोषणाओं का अंबार लगा दिया गया। इससे कांग्रेस आदिवासी वोटरों को साधने में सफल हो गई। कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग के व्यक्ति को अपना प्रत्याशी बनाया था। आदिवासी वोटरों को साफ लगने लगा कि भाजपा गूर्जर वर्ग से आने वाले कैबिनेट मंत्री रामनिवास रावत को जिताने के लिए इतने वायदे कर रही है। जीत के बाद आदिवासियों को भुला दिया जाएगा और गूर्जरों भर की चलेगी, क्योंकि जीतने के बाद रावत का मंत्री पद बरकरार रहेगा। उसकी इस सोच को सामर्थ्यहीन कांग्रेस ने जमकर हवा दी और आखिरकार परिणाम सत्ता के खिलाफ चले गए।
विजयपुर सीट के परिणाम ने सबको चौंका दिया। विजयपुर सीट से 6 बार के विधायक रहे रामनिवास रावत को कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने हरा दिया। बीजेपी कैंडिडेट रामनिवास और कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा के बीच रोचक मुकाबला देखने को मिला लेकिन बाजी "कांग्रेस" के हाथ लगी। कांग्रेस ने 7 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर ली। इस सीट पर रावत 16वें राउंड तक आगे थे। विजयपुर में आदिवासी वोटर निर्णायक थे, इस बार उपचुनाव के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा के समर्थन में आदिवासी और कुशवाह समाज के लोग एकजुट दिखाई दिए। आदिवासी वोटर्स कांग्रेस की तरफ ही दिखे। रामनिवास रावत के पाला बदलने के बाद कांग्रेस ने बड़ा दांव खेलते हुए सहरिया आदिवासी समुदाय से आने वाले मुकेश मल्होत्रा को अपना प्रत्याशी घोषित किया था।विजयपुर सीट में आदिवासी समुदाय के बाद कुशवाहा समुदाय के मतदाताओं की संख्या करीब 30 हजार है। एक्सपर्ट बताते हैं कि इस समाज का झुकाव भी कांग्रेस की ओर रहा। इस बार कांग्रेस के नेताओं ने एकजुटता दिखाते हुए बिकाऊ वर्सेस टिकाऊ का नारा इस सीट पर दिया था। अपनी हर सभा में सभा में कांग्रेस ने ये आरोप लगाए थे कि रामनिवास रावत 6 बार विधानसभा का चुनाव कांग्रेस में रहते जीते, लेकिन उन्होंने मंत्री पद के लिए विजयपुर की जनता से धोखा किया है। ऐसे में जब बीजेपी की तरफ से विकास कार्यों संबंधी घोषणाओं की झड़ी लगा दी गई तो कांग्रेस के आदिवासी वोटरों को एकजुट होने का मौका और बहाना मिल गया। इसी एकजुटता ने कांग्रेस को भाजपा और सरकार से चुनाव जितवा दिया। कुछ यही सब बुधनी सीट पर भी हुआ। शिवराज सिंह चौहान के सांसद बनकर दिल्ली चले जाने से यहां उपचुनाव हो रहे थे। शिवराज सिंह की पसंद पर रमाकांत भार्गव को प्रत्याशी बनाया गया था। किरार बाहुल्य इस सीट पर कांग्रेस ने बीते कई चुनाव हारने वाले राजकुमार पटेल को खड़ा किया था। यहां सरकार का दबाव कम रहा लेकिन शिवराज सिंह का दबाव बना रहा। इस कारण किरार वोटरों की एकजुटता कांग्रेस के पक्ष में चली गई। बीजेपी और शिवराज सिंह को लाख वोट से जिताने वाले बुधनी को वोटरों ने उनके प्रत्याशी को जिता तो दिया लेकिन मात्र 11 हजार वोट का अंतर ही हारजीत का रहा। अगर राजकुमार पटेल और कांग्रेस इसका अनुममान लगा लेते और थोड़ी एकजुटता के साथ मेहनत कर लेते तो यहां भी परिणाम भाजपा के खिलाफ जा सकते थे।