रास्ता भटक गया ग्रामोदय से भारत उदय अभियान
सुमन
भोपाल, 30 मई। सरकार की उपलब्धियों को ग्रामीण जनता तक पहुंचा कर संगठन को मजबूती देने के लिए शुरू हुआ "ग्रामोदय से भारत उदय" अभिय़ान मध्यप्रदेश में रास्ता ही भटक गया। अभियान के तहत तय किए गए मापदंडों के अनुसार कोई काम नहीं हो रहा है। निचले स्तर से पार्टी मुख्यालय तक आए विश्लेषण निराशाजनक हैं। इसलिए इतने महत्वपूर्ण अभियान को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है।
सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा ग्रामोदय से भारत उदय अभियान की शुरूआत की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंबेडकर जयंती के मौके पर इसका आगाज किया था। इस अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम संसद का आयोजन करके पंचायत स्तर पर अधोसरंचना का विकास योजनाओं में हितग्राहियों के चयन तथा समीक्षा और कार्यवाही प्रतिवेदन पर चर्चा होती है। मध्य प्रदेश में यह अभियान बड़ी धूमधाम से शुरू हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे पूरे अभियान में शिथिलता आ गई। इस अभियान की समीक्षा सरकार और संगठन दोनों स्तर पर हो रही है। दोनों ही स्तर पर स्थिति संतोषजनक नहीं पाई गई। प्रभारी मंत्रियों ने इस अभियान में रुचि लेना कम कर दिया। इसके चलते आला अफसर भी अभियान से कन्नी काट गए। इसके कारण कई स्थानों पर अभियान सिर्फ रस्म अदायगी बन कर रह गया है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए थे कि मंत्री और अधिकारी गांवों में न सिर्फ जाएं, बल्कि वहां रात्रि विश्राम करें और लोगों की समस्याएं सुनें। उन्होंने यही निर्देश दिया था कि हर गांव में कम से कम एक जल स्रोत विकसित किया जाए अथवा पहले से मौजूद जल स्रोत को पुनर्जीवित किया जाए। इसके साथ ही गांवों में महिलाओं के स्वसहायता समूहों को आर्थिक रूप से विकसित करने के निर्देश भी दिए गए थे। लेकिन इसका पालन ठीक से नहीं हुआ। कई अधिकारी और मंत्री तो क्षेत्र के दूरस्थ ग्रामों तक पहुंचे ही नहीं। कई जगह गांव में पहुंचे, लेकिन रात्रि विश्राम जिला मुख्यालय पर आकर किसी होटल या सर्किट हाउस में किया। पार्टी के कार्यकर्ताओं और स्थानीय स्तर के सरकारी अमले ने मिलकर ग्रामोदय से भारत उदय अभियान की रस्म अदायगी कर ली। ग्रामीणों से चिन्हित योजनाओं के बजाय समन्वय समस्याओं के तहत आवेदन मांगे गए इसके कारण लगभग 24 लाख जो आवेदन प्राप्त हुए इनमें लगभग 87 प्रतिशत गरीबी रेखा में नाम जुड़वाने अथवा प्रधानमंत्री आवास योजना में शामिल किए जाने संबंधी हैं। इनमें भी अधिकांश आवेदन इन योजनाओं के लिए अपात्र लोगों के हैं। पूरा अभियान निजी शिकायतों और समस्याओं तक ही सिमट गया।
अभियान की समीक्षा कर रहे अधिकारियों को इसके आंकड़े मुख्यमंत्री तक सही-सही पहुंचाने में भी डर लग रहा है। अब स्थिति यह बन रही है कि बचे हुए क्षेत्रों में भाजपा के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के जरिए अभियान और उससे जुड़े कामों की रस्मी तौर पर खानापूर्ति की जा रही है। भाजपा संगठन अब इस कोशिश में जुट गया है कि अभियान के सहारे पार्टी की बात ग्रामीणों तक पहुंचाई जा सके ताकि पंचायत चुनाव में इसका लाभ मिल सके। इस तरह मूल उद्देश्य से भटक गए महत्वाकांक्षी अभियान को सही दिशा में लाने की बजाय सियासी लाभ मिलने की दिशा में मोड़ा जा रहा है।