मप्र में सहकारी समितियों के संचालक मंडल में आरक्षण व्यवस्था फिर बदलेगी
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 30 जुलाई। बार बार टल रही चुनाव प्रक्रिया के बीच मध्यप्रदेश सरकार सहकारी समितियों के संचालक मंडल की आरक्षण व्यवस्था फिर बदलने जा रही है। समितियों में एसटी, एससी और ओबीसी का पचास फीसदी करने की तैयारी है। इसके लिए विधानसभा के शीतकालीन सत्र में संशोधन विधेयक लाया जाएगा और उसके पहले अध्यादेश लाकर बदलाव किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश में सहकारी समितियों की संख्या 10 हजार के करीब है। इनमें सबसे अधिक लगभग साढ़े चार हजार कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इसके अलावा उपभोक्ता भंडार, विपणन, गृह निर्माण सहित अन्य क्षेत्रों की समितियों को मिलाकर संख्या लगभग 10 हजार हो जाती है। वर्ष 2013 के पहले समितियों में एसटी,एससी और ओबीसी के आरक्षण का प्रावधान था। सरकार ने 2013 मे संशोधन विधेयक लाकर तीनों वर्गों में से किसी एक के लिए आरक्षण का प्रावधान कर दिया। इस बदलाव सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का संतुलन नहीं बन पा रहा था। इसलिए सरकार पुरानी व्यवस्था फिर से प्रभावी करने का फैसला लिया है। इसके चलते सहकारी समितियों के चुनाव एक बार फिर खटाई में पड़ गए हैं। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद मप्र सहकारी चुनाव प्राधिकरण लंबे समय से समितियों के चुनाव कराने की प्रक्रिया में उलझा है। चुनाव विभिन्न कारणो से टल रहे हैं। विधानसभा और लोकसभा दोनों ही चुनाव निपट जाने के बाद प्राधिकरण चुनाव कराने की स्थिति में आया तो अब आरक्षण का पेंच फंस गया है।
वर्ष 2013 के सहकारी समितियों के चुनाव तक यह व्यवस्था थी कि समिति के संचालक मंडल के सदस्यों की कुल संख्या में से आधे आरक्षित वर्ग से लिए जाएंगे। इसमें भी संबंधित समिति के कुल सदस्यों में जिसका जितना अनुपात होगा, उसके अनुसार आरक्षण मिलेगा।इसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) शामिल था, जिस संस्था में एक चौथाई इससे अधिक किंतु आधे से कम सदस्य एससी, एसटी या ओबीसी के हों, वहां सभी वर्गों के लिए एक-एक सीट आरक्षित करने का प्रावधान था। जहां तीनों वर्गों की सदस्य संख्या एक चौथाई से कम है,वहां केवल एक सदस्य के लिए स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था थी। वर्ष 2011 में हुए संविधान संशोधन के बाद जारी गाइडलाइन में यह प्रावधान कर दिया गया कि केवल एक पद आरक्षित वर्ग के लिए रखा जाएगा। इसके कारण समीकरण गड़बड़ा रहे थे। अब सहकारिता विभाग ने तय किया है कि पुरानी व्यवस्था को ही लागू किया जाएगा। इसमें जनसंख्या के अनुपात में संचालक मंडल में सदस्यों की संख्या निर्धारित होगी।