सरकार के खजाने की सांसें चलती हैं शराब से
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 8 मई। मंहगी बहुत है शराब थोड़ी थोड़ी पिया करो… किसी गजल का यह अक्सर चर्चा में रहता है। इसमें भले ही शराब की मंहगाई का जिक्र करते हुए कम पीने की अपील की गई है लेकिन पीने वाले इस गजल को सुनते हुए भी पीते हैं। सरकार की कोशिश भी होती है कि लोग खूब पिएं। इसीलिए मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश में लाक डाउन के बीच शराब की दुकानें खोलने की ऐलान कर दिया। शराब ठेकेदारों ने कुछ स्थानों पर दुकानें खोलने से मना किया तो सरकार अपनी पर आ गई। अंतत: दुकाने खुल गई, ठेके गुलजार हो गए और जाम छलकने लगे।
शराब ठेके खोलने के लिए बेताब सरकार ने रेड जोन को भी दो हिस्सों में बांट दिया। भोपाल, इंदौर, उज्जैन जैसे कोरोना हाई रेड जोन में दुकानें नहीं खुलीं लेकिन अन्य रेड जोन जिलों में भी शहरी क्षेत्र को छोड़कर शेष जिले में दुकानें चालू हो गईं। सरकार शराब की दुकाने खोलने के लिए इतनी बेसब्र इसलिए है कि उसके खजाने की सांसे शराब से ही चलती हैं। सरकार की अपने श्रोतों से जो आय होती है, उसमें करीब बीस फीसदी हिस्सेदारी शराब की होती है। मध्यप्रदेश सरकार को शराब के कारोबार से करीब 13 हजार करोड़ रुपए हर साल मिलते हैं। शराब से होने वाली आय का गणित ही सरकार को शराब के साथ खड़े होने पर मजबूर करती है।
मप्र के सरकारी खजाने में आबकारी से आय का गणित
(सभी आंकड़े लगभग में और 2019-20 के बजट के अनुसार)
- देशी मदिरा दुकानों की लाइसेंस फीस ---2000 करो़ड़
- देशी दुकानों की बेसिक लाइसेंस फीस---3050 करोड़
- माल्ट लिकर --2400 करोड़
- विदेशी मदिरा दुकानों की लाइसेंस फीस—2060 करोड़
- विदेशी दुकानों की बेसिक लाइसेंस फीस—3000 करोड़
- परमिट आयात फीस --0065 करोड़
- गांजा भांग दुकान लाइसेंस फीस ------- 0020 करोड़
- अर्थदंड़ एवं समपहरण ----0005 करोड़
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कुल आय --- 13,000 करोड़
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मध्यप्रदेश की विभिन्न करों से होने वाली आय (करीब)---- 66,000 करोड़
आबकारी से होने वाली आय (करीब)- -----13,000 करोड़
कुल आय में आबकारी आय का प्रतिशत (लगभग) ---- 20 प्रतिशत