एमपी में पहली बार क्लीन स्वीप, विष्णु-मोहन की जोड़ी ने चला दिया मोदी मैजिक
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 4 जून। देश में भले ही मोदी का जादू न चला हो और बीजेपी तथा उसका गठबंधन एनडीए दोनों ही दावों से बहुत पीछे रह गए हों लेकिन मध्यप्रदेश में मोदी मैजिक चल गया और बीजेपी ने अकेले की दम पर प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। मध्यप्रदेश के इतिहास में सिर्फ 1984 में इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद उपजी सहानुभूति लहर में ही तत्कालीन एकीकृत मध्यप्रदेश की सभी 40 सीटें कांग्रेस जीतने में सफल रही थी। इसके पहले 1977 में आपातकाल के विरोधी लहर वाले चुनाव में भी मुख्य विपक्षी दल जनता पार्टी 40 में से 39 सीटें ही जीत पाई थी। उस समय भी छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस के गार्गीशंकर मिश्रा ने जीती थी। पहली बार बीजेपी को मध्यप्रदेश में क्लीन स्वीप का मौका मिला है। इस उपलब्धि के लिए मोदी मैजिक के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री डा मोहन यादव की जोड़ी के साथ क्लस्टर प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की रणनीति को श्रेय दिया जा रहा है।
देश के चुनाव को लेकर जो एक्जिट पोल 380 से 415 सीटें तक एनडीए को देने का दावा कर रहे थे, वही एक्जिट पोल मध्यप्रदेश की 29 में से 27 सीटें ही एनडीए को दे रहे थे। देश में एक्जिट पोल के अनुमानों के विपरीत परिणाम आए। अनुमानों की तुलना में एनडीए को एक तरह से पराजय का सामना करना पड़ा है। इसके विपरीत मध्यप्रदेश में सिर्फ 27 सीटें जीतने के बजाय बीजेपी ने क्लीन स्वीप कर लिया। यह पहला मौका है जब किसी भाजपा के खाते में मध्यप्रदेश की सभी सीटें गई हों। तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी 2019 की प्रचंड आंधी में भी छिंदवाड़ा सीट हार गई थी, जबकि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया तक को हराने में वह सफल रही थी। लेकिन इस बार बीजेपी की आंधी नहीं चलने के बाद भी मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का कमाल दिखाकर मध्यप्रदेश के सीएम मोहन यादव और भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा की जोड़ी ने देश की राजनीति में नया अध्याय लिखा है। ऐसे मध्य प्रदेश में मोहन-विष्णु की जोड़ी ने मोदी मैजिक को बरकरार रखने में सफलता हासिल की। सबसे महत्वपूर्ण कांग्रेस और कमलनाथ के अजेय गढ़ छिंदवाड़ा को भेदना था। बीजेपी अपनी रणनीति से इसमें सफल रही। पार्टी ने छिंदवाड़ा सीट जीतने की रणनीति पर तभी काम शुरू कर दिया था जब लोकसभा चुनावों की घोषणा भी नहीं हुई थी। बल्कि कहा जाए तो पिछले विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी अपनी रणनीति पर काम शुरू कर चुकी थी। तभी तो शिवराज सिंह चौहान के शासन काल में चुनाव के कुछ समय पहले छिंदवाड़ा को तोड़कर नए पांढुर्ना जिले का गठन किया गया। उसके बाद सरकार और पार्टी का सारा फोकस छिंदवाड़ा पर हो गया। भाजपा की बड़ी उपलब्धि महाकोशल अंचल की छिंदवाड़ा सीट पर जीत रही। वर्ष 2019 में यहां कांग्रेस जीती थी। वर्ष 1980 से दिग्गज कांग्रेस नेता कमल नाथ का गढ़ रही सीट छिंदवाड़ा से उनके पुत्र नकुल नाथ चुनाव हार गए हैं। वहीं, मध्य भारत अंचल की राजगढ़ सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी पराजय का सामना करना पड़ा। वह पहले भी यहां से सांसद रहे हैं, लेकिन 33 वर्ष बाद उन्हें यहां हार का सामना करना पड़ा।
विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं ने किया। लोकसभा चुनाव में पार्टी ने छिंदवाड़ा में नकुल नाथ और राजगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया। इससे कमलनाथ छिंदवाड़ा में और दिग्विजय राजगढ़ में बंधकर रह गए। भाजपा के अध्यक्ष वीडी शर्मा और सीएम डा मोहन यादव की जोड़ी दोनों सीटों पर आक्रामक प्रचार अभियान शुरू से चलाकर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को वहीं बांध दिया। इससे वे अन्य सीटों पर चुनाव प्रचार नहीं कर सके। ऐसे में कम अनुभवी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और उमंग सिंघार जैसे नेताओं पर प्रचार अभियान की जिम्मेदारी आ गई। चुनाव अभियान के दौरान दोनों की खटपट की खबरें भी आईं। इसका लाभ भाजपा को मिला है। मध्य प्रदेश में राम मंदिर का मुद्दा कायम रहा। सर्वे एजेंसियों ने जब वोटरों से बात की तो उन्होंने कहा कि जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे। 22 जनवरी को जब अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तो पूरे मध्य प्रदेश में माहौल राममय था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में भाजपा के कैम्पेन में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया कि कांग्रेस ने राम मंदिर का न्योता ठुकराया है। इसी वजह से बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता भाजपा में भी शामिल हुए थे। कांग्रेस छोड़कर नेताओं के बीजेपी में आने से बीजेपी को भले ही बहुत ज्यादा लाभ नहीं हुआ हो लेकिन यह रणनीति कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में हताशा भरने में कामयाब रही। इसलिए कांग्रेस को चुनाव अभियान से लेकर मतदान तक समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी का सामना करना पड़ा। बीजेपी के लिए इतना काफी था और उसने अपने पन्ना प्रभारी जैसे कार्यकर्ताओं को आग करके सभी सीटों पर चुनावों को अपने पक्ष में कर लिया। यहां तक कि ग्वालियर चंबल में जहां, बीजेपी की हार की आशंकाएं जताई जा रही थीं. वहां भी पार्टी परचम लहराने में कामयाब रही।