बच्चे बुरे नहीं होते बुढ़ापा बुरा होता है

Feb 22, 2018

भारत भवन में नट सम्राट का मंचन

 

भारत भवन के 36वें वर्षगांठ समारोह के तहत शनिवार को विख्यात नाटक नटसम्राट की प्रस्तुति हुई। एकरंग थियेटर सोसायटी भोपाल के बैनर तले मंचित इस नाटक में उस बुजुर्ग दंपत्ति की कहानी है जो अपने ही बच्चों के बीच बेगाना हो जाता है। नटसम्राट एक तरह से थियेटर की दुनिया के सम्राट गणपत रामचंद्र बेलवलकर की आत्मकथा है। गणपतराव हेलमेट, उथेलो, जूलिएट, सीजर जैसे विश्वविख्यात नाटकों में भूमिका निभाता है। उसके शानदार अभिनय के चलते उसे नटसम्राट की उपाधि दी जाती है। नटसम्राट बेलबलकर जिन्दगी की आपाधापी से रिटायर होता है तो अपनी सारी सम्पत्ति अपने बेटे-बहू नन्दन और शारदा और पुत्री-दामाद सुधाकर और नलिनी के बीच बांट देता है। नटसम्राट की उपाधि से सम्मानित होने पर उसे जो 40 हजार रुपए मिलते हैं उसे भी वह बेटे और दामाद की बेहतरी के लिए दे देता है। बेटे-बहू के लिए मुम्बई में फ्लेट खरीद देता है। पत्नी के मना करने पर वह कहता है सब कुछ बच्चों का ही है। पत्नी समझाती है क भोजन भले ही कटोरी से थाली में जा रहा हो लेकिन कभी अपनी पीढ़ा किसी को नहीं देना चाहिए। नटसम्राट बेटे-बहू के पास रहने लगते हैं उम्र ढलने के साथ बहू का बर्ताव बदलता है बेटा भी मन मसोसकर पत्नी की तरफ हो जाता है। बुजुर्ग दम्पत्ति बेटे-बहू का फ्लेट छोड़कर बेटी-दामाद के बंगले में रहने पूणे आ जाते हैं यहां भी कुछ दिनों बाद भी बुजुर्ग दम्पत्ति दर-किनार कर दिए जाते हैं। बेटी को अपने स्टेट्स में माता-पिता फिट नहीं जान पड़ते वह उन्हें सर्वेंट क्वार्टर में शिफ्ट कर देते हैं। दामाद का पर्स चोरी हो जाने पर बेटी माता-पिता के सामान की तलाशी किसी बहाने से लेती है, उसे मां के पुराने संदूक में मां द्वारा अपना चंद्रहार बेचकर जुटाए गए पैसे दिख जाते हैं। इस पर वह पिता पर चोरी का आरोप

लगा देती है। बाद में पर्स मिल जाने पर वह माफी मांगती है लेकिन पिता का मन खट्टा हो जाता है। इसी आपाधापी में नटसम्राट की पत्नी जिसे वह ताजिन्दगी सरकार कहकर बुलाते हैं का निधन हो जाता है। नटसम्राट चुपचाप बेटी-दामाद का घर छोड़ देता है। उसे एक पॉलिस वाला सहारा देता है। बेटी-दामाद का नौकर जो खुद भी नाटकों का प्रेमी है, वह नटसम्राट को ढूंढ लेता है। सभी माफी मांगते हैं लेकिन नट सम्राट सिर्फ अपनी पोती को प्यार करता है और पॉलिस वाले को अपनी सच्चा मददगार मानता है। इसी कड़ी में नटसम्राट की मौत हो जाती है। नटसम्राट का यह  डायलॉग बेहद प्रभावी है कि किसी के बच्चे बुरे नहीं होते सिर्फ बुढ़ापा बुरा होता है। नाटक में कई सीन ऐसे हैं जो दर्शकों को रुला देते हैं। प्रकाश और ध्वनि की व्यवस्था उत्तम थी। जाने –माने निर्देशक जयंत देशमुख के निर्देशन में मंचित नाटक में नटसम्राट की प्रभावी भूमिका आलोक चटर्जी ने निभाई है जो बहुत ही बेहतरीन थी। जाने-माने मराठी लेखक व्ही.व्ही शिरवणकर द्वारा रचित इस नाटक की प्रस्तुति 1970 से हो रही है। सबसे पहले नटसम्राट की भूमिका डॉ. श्रीराम लागू ने निभाई थी। फफ

 

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