पैंतीस साल बाद भी जेेहन में ताजा हैं भोपाल गैस त्रासदी के जख्म
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 3 दिसंबर। हजारों लोगों को मौत की नींद सुला देने वाले भोपाल गैस कांड की गवाह बनी 2 और 3 दिसंबर की दरमयानी रात आज भी रूह कंपा देती है। विश्व की इस भीषणतम औद्योगिक त्रासदी की 35वीं बरसी ने उन जख्मों को ताजा कर दिया,जो एक रात में कई पीढ़ियों को मिल गए। बरसी के मौके पर तमाम संगठनों ने शहर की सड़कों पर रैलियां निकालकर मृतकों की आत्माओं को भरोसा दिलाया कि उन्हें न्याया दिलाने का संघर्ष अभी थमा नहीं है।
राजधानी भोपाल में 2 और 3 की दरमियानी रात मौत का तांडव आज भी लोगों के जेहन से ताजा है। आज भी वह मनहूस रात याद आते ही लोगों की रूह कांप जाती है। जिस रात में हजारों लोग सोए थे तो मगर उठे नहीं और आज भी लाखों लोग उस रात का दर्द लिए दरबदर फिर रहे हैं। यूनियन कार्बाईड के गैस के रिसाव से भोपाल में लगभग 35 साल पहले जो मौत का तांडव हुआ था वह कभी न मिटने वाला जख्म दे गया। गैस कांड की बरसी के मौके पर शहर के तमाम संगठनों ने रैलियां निकालकर मृतकों को श्रद्धांजलि दी और न्याय के लिए लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया रैली में भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा, भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन आदि संगठन शामिल हुए। उनका कहना था कि गैस पीड़ित बस्तियों में भूमिगत जल प्रदूषित हो गया है और आसपास के हजारों नागरिक अब भी यही जल पीने को मजबूर हैं। इस वजह से उन्हें अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।कांग्रेस के नेता आशीफ़ जकी और सामाजिक कार्यकर्ता शमशुल हसन बल्ली के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों ने यूनियनकाबार्इड के मुखिया रहे एंडरसन की अर्थी निकाली। एंडरसन का पुतला बनाकर उसे शहर के इतवारा चौराहे पर फूंका गया। एंडरसन की अर्थी निकालने वालों का कहना था कि गैस पीड़ितों को 35 साल बाद भी न्याय नहीं मिल पाया है।
हजारों लोगों को मौत की नींद सुला देने वाली गैस त्रासदी के साढे तीन दशक बीत जाने के बाद भी पीड़ितों का न्याय के लिए भटकना सभ्य समाज पर तमाचे की तरह है। इस लंबी अवधि में राज्य और केंद्र मेंकई सरकारें बदल गईं लेकिन गैस पीड़ितों की पीड़ा कम नहीं हुई। गैस पीड़ितों के नाम तमाम लोगों ने लाखों रुपए कमा लिए और गैस पीड़ितों नेताओँ के लिए वोट बैंक बन कर रह गए। अभी भी सरकारें नहीं चेती तो आने वाली कई पीढ़ियों गैस त्रासदी का दंश झेलकर पैदा होंगी और बरसी के मौके पर रैलियां निकालकर न्याय मांगने का यह सिलसिला चलता रहेगा